Thursday, December 26, 2024
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न्यायिक व्यवस्था में मिसाल बनेंगे न्यायमूर्ति रमना !

महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की स्वीकृति के बाद न्यायमूर्ति नथालापति वेंकट रमना भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) होंगे। 64 वर्षीय जस्टिस रमना 24 अप्रैल को देश के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेंगे। दरअसल मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े का कार्यकाल 23 अप्रैल को पूरा हो रहा है और अपने उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने पिछले महीने न्यायमूर्ति एनवी रमना के नाम की सिफारिश की थी। नियमानुसार मौजूदा मुख्य न्यायाधीश अपनी सेवानिवृत्ति से एक महीने पहले केन्द्रीय कानून मंत्री को एक लिखित पत्र भेजकर नई नियुक्ति के लिए सिफारिश करते हैं। कानून मंत्री सही समय पर मौजूदा मुख्य न्यायाधीश से उनके उत्तराधिकारी का नाम मांगते हैं और मुख्य न्यायाधीश नियमानुसार प्रायः उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ जज के नाम की सिफारिश भेजते हैं। अनुशंसा पत्र मिलने के बाद कानून मंत्री इसे प्रधानमंत्री के समक्ष रखते हैं, जिनकी सलाह पर राष्ट्रपति नए मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। चीफ जस्टिस ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को लिखे पत्र में जस्टिस एनवी रमना को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के लिए सबसे उपयुक्त बताया था।

न्यायमूर्ति रमना की नियुक्ति को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि उनके नाम की अनुशंसा जस्टिस बोबड़े द्वारा उस दिन की गई, जिस दिन उच्चतम न्यायालय के पैनल ने जस्टिस रमना के खिलाफ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज करने के फैसले को सार्वजनिक किया था। बहरहाल, राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात अब जस्टिस एनवी रमना देश के अगले मुख्य न्यायाधीश होंगे। उनका कार्यकाल डेढ़ वर्ष से भी कम समय का होगा, वे 26 अगस्त 2022 को इस पद से सेवानिवृत्त होंगे। इस प्रकार वे महज 16 महीने तक इस महत्वपूर्ण पद पर रहेंगे। दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके न्यायमूर्ति रमना 17 फरवरी 2014 से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं और वरिष्ठता के आधार पर वह सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीशों में जस्टिस बोबड़े के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं।

27 अगस्त 1957 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पोन्नवरम गांव के एक किसान परिवार में जन्मे न्यायमूर्ति रमन्ना ने विज्ञान और वकालत में स्नातक किया है। वकालत करने के बाद जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने करीब दो साल तक एक तेलुगु दैनिक अखबार में संपादकीय कार्य किया और वकालत कैरियर की शुरुआत 10 फरवरी 1983 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में वकील के तौर पर की। उसके बाद वे आंध्र प्रदेश के अतिरिक्त एडवोकेट जनरल भी बने। 27 जून 2000 को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के स्थायी जज के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई। 13 मार्च 2013 से 20 मई 2013 के दौरान न्यायमूर्ति रमना आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश भी रहे और 2 सितम्बर 2013 को पदोन्नति के बाद उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 17 फरवरी 2014 को न्यायमूर्ति एन वी रमना सर्वोच्च न्यायालय के जज बने। जस्टिस रमना आंध प्रदेश हाईकोर्ट के पहले ऐसे न्यायाधीश होंगे, जो भारत के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। हालांकि तेलुगू भाषियों की बात की जाए तो वे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनने वाले दूसरे ऐसे न्यायाधीश होंगे। जस्टिस एनवी रमना से पहले के सुब्बा राव भारत के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 15 जुलाई 1902 को मद्रास प्रेसीडेंसी में जन्मे सुब्बा राव 30 जून 1966 से 11 अप्रैल 1967 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे थे।

जस्टिस रमना अपने अबतक के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसलों को लेकर काफी चर्चित रहे हैं लेकिन सर्वाधिक चर्चा में वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर रहे हैं। दरअसल मुख्यमंत्री रेड्डी ने उनपर आरोप लगाया था कि वह आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के साथ मिलकर सरकार गिराने का प्रयास कर रहे हैं। रेड्डी ने अमरावती जमीन घोटाले में भी जस्टिस रमना के परिवार के कुछ सदस्यों की भूमिका का आरोप लगाया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आंतरिक जांच के बाद मुख्यमंत्री की इस शिकायत को खारिज करते हुए उनके आरोपों को झूठा, तुच्छ, आधारहीन और गलत करार देते हुए इसे न्यायपालिका को धमकाने का प्रयास बताया।

न्यायमूर्ति रमना ने अपने अभीतक के कार्यकाल में देश की शीर्ष अदालत में कई हाई प्रोफाइल मामलों को सुनवाई की और उनके कई फैसले काफी चर्चित रहे। ऐसे ही कुछ फैसलों में जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट की बहाली, सीजेआई कार्यालय को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण बताना, जम्मू-कश्मीर प्रशासन को प्रतिबंध के आदेशों की तत्काल समीक्षा करने का निर्देश देना इत्यादि शामिल थे। गृहणियों को लेकर दिए गए अपने बहुत ही महत्वपूर्ण निर्देश में उन्होंने कहा था कि गृहणियों को भी उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए ताकि वे सभी घरेलू श्रम पर मुआवजा पाएं। उनका कहना था कि ग्रामीण महिलाओं को तो पशु चराना, खेत में हल चलाना, पौधारोपण इत्यादि कार्य भी करने पड़ते हैं और वे इस श्रम के पारिश्रमिक की सुंसगत हकदार हैं।

शीर्ष अदालत ने नवम्बर 2019 में अपने फैसले में कहा था कि जनहित में सूचनाओं को उजागर करते हुए न्यायिक स्वतंत्रता को भी दिमाग में रखना होगा और जस्टिस रमना पांच जजों की उस संवैधानिक पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने उस दौरान अपने फैसले में कहा था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण है। वे शीर्ष अदालत की पांच जजों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने अरुणाचल प्रदेश में वर्ष 2016 में कांग्रेस की सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था। उन्होंने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को प्रतिबंध के आदेशों की तत्काल समीक्षा करने का निर्देश भी दिया था। विगत कुछ वर्षों में उनका सबसे चर्चित फैसला जम्मू कश्मीर में इंटरनेट बहाली का था। उनकी अध्यक्षता में शीर्ष अदालत की वाली पीठ ने जनवरी 2020 में अपने फैसले में कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर कारोबार करना संविधान के तहत संरक्षित है। न्यायमूर्ति एनवी रमना ने कर्नाटक के दलबदलू विधायकों वाली याचिका पर संविधान के 10वें अनुच्छेद को कारगर बनाने का सुझाव दिया था। उनका कहना था कि विधानसभाध्यक्ष के पक्षपातपूर्ण रवैये से मतदाताओं को ईमानदार सरकार नहीं मिल पा रही है।

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उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने नवम्बर 2019 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सदन में बहुमत साबित करने के लिए शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था और उस याचिका पर भी सुनवाई की थी, जिसमें पूर्व और मौजूदा विधायकों के खिलाफ अपराधिक मामलों के निस्तारण में अत्यधिक देरी का मुद्दा उठाया गया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि शांत और मृदुभाषी स्वभाव के लिए पहचाने जाते रहे जस्टिस एनवी रमना अपने 16 माह के कार्यकाल में देश के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर लिए जाने वाले अपने फैसलों से देश की न्यायिक व्यवस्था में अलग मिसाल कायम करेंगे।
-योगेश कुमार गोयल

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