Thursday, March 27, 2025
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Jitiya Vrat 2023: नहाय-खाय के साथ जितिया व्रत की शुरुआत, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

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नई दिल्लीः आज से नहाय खाय के साथ जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत (Jitiya Vrat 2023) की शुरुआत हो चुकी है। महिलाएं कल पूरा दिन व्रत रखकर 07 अक्टूबर को व्रत का पारण करेंगी।

यह व्रत महिलाएं संतान की लंबी आयु व सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं, साथ ही नवविवाहित महिलाएं भी संतान प्राप्ति के लिए जितिया का व्रत (Jitiya Vrat 2023) रखती हैं। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक महिलाएं जीवित्पुत्रिका का निर्जला व्रत रखकर पूजा करती हैं। ज्योतिष गणना के मुताबिक इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण भी हो रहा है।

इस समय तक रहेगी अष्टमी तिथि 

अष्टमी तिथि 06 अक्टूबर 2023 को सुबह 6ः34 बजे से 7 अक्टूबर को सुबह 8ः08 बजे तक रहेगी।

पूजन मुहूर्त

जितिया व्रत (Jitiya Vrat 2023) पूजन का पहला मुहूर्त सुबह 7ः45 बजे, 9ः13 बजे, 10ः41 बजे तक। इसके बाद दोपहर 12ः09 से 1ः37 बजे तक रहेगा। वहीं, शाम को पूजा का शुभ मुहूर्त 4ः34 बजे से लेकर 6ः02 बजे तक रहेगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि

जीवित्पुत्रिका व्रत (Jitiya Vrat 2023) के पहले दिन यानी नहाय खाय को माताएँ प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में जगकर पूजा-पाठ करती हैं और एक बार भोजन करने के बाद पूरे दिन कुछ नहीं खाती हैं। व्रत के दूसरे दिन को खर-जितिया कहा जाता है। यह जितिया व्रत का मुख्य दिन होता है। इस दिन माताएँ जल भी ग्रहण नहीं करती हैं और पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। आश्विन माह के कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में माताएँ जीमूत वाहन की पूजा करेंगी। पूजन के लिए जीमूत वाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल व पुष्पादि अर्पित कर पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय की गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है। जिसके माथे पर सिन्दूर का टीका लगाया जाता है। पूजा सम्पन्न होने के तत्पश्चात जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है।

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जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक जंगल में चील और लोमड़ी घूम रहे थे। वहीं, कुछ दूरी पर कुछ माताएँ जीवित्पुत्रिका का व्रत रखकर कथा के बारे में बातें कर रही थीं। चील ने सभी बातों को ध्यान से सुना जबकि लोमड़ी चुपचाप वहाँ से चली गईं। चील ने इस व्रत को सुनने के बाद पूर्ण श्रद्धा से पूजा पाठ किया। जिसके फलस्वरूप उसकी संतानें सही सलामत रहीं, जबकि लोमड़ी की एक भी संतान जीवित नहीं रही। इसी कारण माताएँ इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ संतान के मंगलकामना के लिए करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चील देखना भी बेहद शुभ माना जाता है।

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