रांचीः झारखंड की सोहराई-कोहबर चित्रकला की धमक अब विदेशों में भी है। दीपावली और शादी-विवाह के मौके पर की जानेवाली झारखंड की इस विशिष्ट चित्रकारी को पिछले साल ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग हासिल हुआ है। इस बार दीपावली पर सोहराई-कोहबर पेंटिंग वाली कलाकृतियों की मांग देश-विदेश से हो रही है।
झारखंड के हजारीबाग स्थित सोहराई आर्टिस्टों द्वारा तैयार किये गये इस चित्रकला वाले लैंप की मांग सबसे ज्यादा है। उन्हें जापान, इटली, फ्रांस और देश के कई हिस्सों से इस बार अच्छी संख्या में ऑर्डर मिले हैं। यह खास लैंप तैयार किया है सोहराई आर्टिस्ट जस्टिन इमाम,अलका इमाम, इवा इमाम, एडम इमाम की टीम ने। यह सोहराई लैंप नेपाली राइस पेपर से बनाया गया है। लैंप में कोई महत्वपूर्ण टेक्नॉलोजी नहीं है पर इसमें झारखंडी कला सोहराई की झलक है। बता दें कि यह पेंटिंग परंपरागत रूप से दीवारों पर की जाती है, लेकिन लेकिन जीआई टैग हासिल होने के बाद कपड़े और कागज पर भी इसे खूब उकेरा जा रहा है और ये कलाकृतियां बड़ी संख्या में देश-विदेश भेजी जा रही हैं।
झारखंड को अलग पहचान देनेवाली इस चित्रकला को लेकर विगत 17 सितंबर से 4 अक्टूबर तक फ्रांस के ऐतिहासिक शहर नॉमर्डी में झारखंड की सोहराई-खोवर पेंटिंग पर प्रदर्शनी भी लगायी गयी। यह प्रदर्शनी फ्रांस की महिला फोटोग्राफरडेइडी बॉब शॉवेन ने लगायी थी और इससे प्राप्त आमदनी का एक हिस्सा उन्होंने हजारीबाग के सोहराई कलाकारों के लिए भेजा है। असल में इस कला को लेकर डेइडीबॉब शॉवेन की दीवानगी ऐसी है कि वह इसके कलाकारों से मिलने और यहां से उनकी कलाकृतियां लेने चार बार फ्रांस से हजारीबाग आ चुकी हैं।
सोहराई आर्ट के लिए पिछले डेढ़ दशक से काम कर रहे जस्टिन इमाम बताते हैं कि हजारीबाग आदिवासी महिला विकास सहयोग समिति और फेमु डू हजारीबाग के परस्पर सहयोग से इस कला को प्रोत्साहित करने की मुहिम चल रही है। फेमु डू हजारीबाग नाम की संस्था फ्रांस की डेइडी बॉब शॉवेन ने ही बनायी है। फेमु डू फ्रेंच भाषा का शब्द है। यानी फेमु डू हजारीबाग का मतलब है हजारीबाग की महिलाएं। इसके माध्यम से फ्रांस, जर्मनी समेत दुनिया के कई देशों में सोहराई पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाती हैं। इससे जो आमदनी होती है उसका कुछ हिस्सा वह सोहराई कला को सहेजने में खर्च करती है।
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इस आदिवासी कला का 5000 साल पुराना इतिहास है। झारखंड के हजारीबाग जिले के पहाड़ी इलाकों में रॉक गुफा कला के रूप में सोहराई-कोहबर कला के प्रमाण मिलते हैं। पहले गुफाओं में इस तरह के चित्र बनाए जाते थे। भारत के मशहूर एंथ्रोपोलोजिस्ट शरत चन्द्र रॉय और ब्रिटिश जमाने में आसपास के इलाके में काम करने वाले अंग्रेज ऑफिसर डब्ल्यूजी आर्चर ने अपने किताबों और लेखों में इस कला का जिक्र किया था। यह पेंटिंग हजारीबाग रेलवे स्टेशन और रांची शहर की कई दीवारों पर भी बनायी गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात में इस पेंटिंग की तारीफ कर चुके हैं। चेन्नई में मौजूद ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री ने 12 मई, 2020 को इसे जीआई टैग दियाथा। यह झारखंड राज्य का पहला और देश का 370वां जीआई टैग है।
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