रांची: झारखंड सरकार को अदालत से बड़ा झटका लगा है। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस नियमावली को खारिज कर दिया है, जिसमें तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की नौकरियों के लिए झारखंड के शैक्षणिक संस्थानों से मैट्रिक और इंटर उत्तीर्ण होने की शर्त अनिवार्य की गई थी। राज्य सरकार ने इस नियुक्ति नियमावली का नोटिफिकेशन 2021 में जारी किया था। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन की अध्यक्षता वाली तीन जस्टिस की वृहद पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया।
7 सितंबर को अदालत ने दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी होने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रखा था। राज्य सरकार की ओर से अधिसूचित झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली 2021 को रमेश हांसदा एवं अन्य की ओर से चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस नियमावली के तहत जितने भी विज्ञापन जारी हुए हैं या फिर नियुक्तियों की प्रक्रिया चल रही है, उन्हें भी खारिज माना जाएगा। याचिका पर चल रही सुनवाई के वक्त ही कोर्ट ने कह दिया था कि उसके अंतिम फैसले से इस नियमावली के तहत होने वाली नियुक्तियां और विज्ञापन प्रभावित होंगे। हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया है कि अब नए सिरे से नियुक्तियों से संबंधित विज्ञापन निकाले जाएं।
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क्या है पूरा मामला –
पूर्व की सुनवाई में प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार और अधिवक्ता कुमार हर्ष ने कोर्ट को बताया कि भाषा के पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को हटाया जाना अनुचित है, क्योंकि राज्य में सबसे ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं। यह भी कहा गया गया कि राज्य सरकार की ओर से संशोधित नियुक्ति नियमावली में लगाई गई शर्तों के कारण वैसे अभ्यर्थी आवेदन नहीं कर पा रहे हैं जिन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा दूसरे राज्यों से पास की है। दूसरी तरफ राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा था कि जेएसएससी स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली संवैधानिक रूप से सही है। यह भी बताया गया कि जेएसएससी ने नियमावली में संशोधन के माध्यम से यहां की रीति रिवाज और भाषा को परखने के लिए एक मापदंड तैयार किया है। हिंदी और अंग्रेजी को क्वालिफाइंग पेपर वन में रखा गया है। स्थानीय भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए भाषा के पेपर दो से हिंदी या अंग्रेजी को हटाया गया है।
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