Friday, November 15, 2024
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeछत्तीसगढ़Nag Panchami: नागों के नाम पर पड़ा इस अनोखे गांव का नाम,...

Nag Panchami: नागों के नाम पर पड़ा इस अनोखे गांव का नाम, नागपंचमी पर लगेगा मेला

दंतेवाड़ा : नाग पंचमी (Nag panchami) हिंदुओं का एक खास त्योहार है, जिसे प्रति वर्ष श्रावण मास की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 02 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन लोग सांपों को दूध अर्पण कर उनकी पूज-अर्चना करते हैं। बस्तर के अपने अनोखे रीति-रिवाज, परंपराओं के अनुसार शताब्दियों से नाग पंचमी की पूजा किये जाने का प्रमाण मिलता है।

दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर मार्ग पर जिला मुख्यालय से 20 किमी की दूरी पर स्थित नागफनी मंदिर पर प्रतिवर्ष यहां नाग पंचमी (Nag panchami) के अवसर पर जात्रा मेला का आयोजन किया जाता है, जिसमें आस-पास के हजारों ग्रामीण शामिल होते हैं। विदित हो कि बारसूर छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग का एक छोटा-सा गांव है। इन्द्रावती नदी के किनारे बसा बारसूर जगदलपुर से 95 और दंतेवाड़ा से सिर्फ 33 किमी की दूरी पर स्थित है। समृद्ध वन संपदा से परिपूर्ण को बारसूर को गंगवंशी राजाओं ने बसाया था, बाद में इस पर नागवंशी राजाओं ने शासन किया। इसी दौरान नागवंशी राजाओं ने नागफनी मंदिर का निर्माण करवाया। यहां पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित 10वीं-11वीं शताब्दी के प्राचीन मंदिर आज भी दर्शनीय है।

अनोखा है नागफनी गांव –

उल्लेखनीय है कि दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 33 किमी दूर बसा नागफनी गांव अपने आप में अनोखा है। गांव का नाम तो नागफनी (Nagfani) है ही, यहां रहने वाले अधिकतर लोगों का सरनेम भी नाग ही है। गांव में एक ही मंदिर है, वह भी नाग देवता का है। यहां के लोगों का सर्प से विशेष लगाव है। नागपंचमी (Nag panchami) पर यहां विशाल जात्रा मेला लगता है, जिसमें आस-पास के 36 गांवों के लोग देवी-देवताओं के प्रतीक चिह्न लेकर शामिल होते हैं। नाग मंदिर की पूजा गांव का अटामी परिवार करता है। मंदिर के प्रमुख पुजारी प्रमोद अटामी बताते हैं कि उनका उपनाम अटामी का आशय लंबी पूछ वाला या लंबा जीव से है। अर्थात सर्प ही अटामी है, अटामी परिवार नागफनी गांव के अलावा आस-पास के दर्जनों गांव में निवास करते हैं। यह स्वयं को बस्तर के आदिवासियों की नाग उपजाति का मानते हैं। बस्तर में आदिवासियों की मुरिया और हल्बा जाति के सदस्य भी नाग उपनाम लगाते हैं।

ये भी पढ़ें..श्रीनगर के दो गांवाें में देर रात बादल फटने से खेतों…

नागवंशीय राजाओं का था शासन –

नागफनी गांव बारसूर के नजदीक है, जो कभी बस्तर के नागवंशी शासकों की राजधानी था। नागवंशीय राजाओं का शासन बस्तर में दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक माना जाता है। बस्तर में आज भी नागों की बहुत सी प्रतिमायें एवं मंदिर मिलते है जो कि तत्कालीन छिंदक नागों के शासन में निर्मित माने गये है। बस्तर आदिवासियों के गोत्र जीव-जंतु पर आधारित होते हैं। बस्तर की कई जनजातियों का गोत्र नाग है। इसलिए वे अपना उपनाम नाग लिखते हैं। विशेषकर हल्बा, मुरिया, महारा समुदाय के लोग। उनका कहना है कि नाग देवता कुल देवता के रूप में भी पूजते हैं। इस समुदाय के लोग शरीर पर सर्प का गोदना भी गुदवाते हैं।

बंद हो गए अखाड़े, नहीं होता दंगल –

नाग पंचमी (Nag panchami) के अवसर पर शहर में पहले अखाड़ों में दंगल प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था, लेकिन अब यह देखने को नहीं मिलता। युवाओं में कुश्ती के प्रति कोई रुझान नहीं दिखता। अखाड़े प्राय: बंद हो चुके हैं, तथा अब जीम का जमाना आ गया है, जहां कुश्ती का कोई स्थान नहीं रह गया। इसके अलावा सपेरे नाग पंचमी के पहले से ही शहर में देखे जाते रहे हैं, लेकिन अब सपेरों की संख्या नहीं के बराबर रह गयी है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सांपों की पूजा करने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है,और सर्पकाल से क्षति होने का भय नहीं रहता है। इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा सांप की बांबियों पर भी पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अलावा घर की दीवारों पर भी नाग चित्र अंकित कर पूजा किये जाने की प्रथा है।

अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें…

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें