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ISRO ने अपना सबसे छोटा रॉकेट SSLV-D2 किया लॉन्च, 3 उपग्रहों को लेकर भरी अंतरिक्ष की उड़ान

ISRO-rocket-SSLV-D2 श्रीहरिकोटाः भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। इसरो शुक्रवार यानी आज सुबह सतीश धवन स्पेस सेंटर से अपने नए और सबसे छोटे रॉकेट (SSLV-D2) को अंतरिक्ष में लॉन्च कर दिया। SSLV-D ने अपने साथ तीन उपग्रहों को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरी। इनमें अमेरिकी कंपनी अंतारिस का सैटेलाइट Janus-1, चेन्नई के स्पेस स्टार्टअप स्पेसकिड्ज की सैटेलाइट आजादी सेट-2 और इसरो का सैटेलाइट EOS-07 शामिल हैं। ये तीनों सैटेलाइट्स 450 किलोमीटर दूर सर्कुलर ऑर्बिट में स्थापित कर दिया गया। ये भी पढ़ें..UP Global Investors Summit 2023: पीएम मोदी ने किया ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का उद्घाटन ISRO के अनुसार, एसएसएलवी 500 किलोग्राम तक की सैटेलाइट को लोअर ऑर्बिट में लॉन्च करने में काम में लाया जाता है। यह रॉकेट ऑन डिमांड के आधार पर किफायती कीमत में सैटेलाइट लॉन्च की सुविधा देता है। 34 मीटर लंबे SSLV रॉकेट का व्यास 2 मीटर है। यह रॉकेट कुल 120 टन के भार के साथ उड़ान भर सकता है। इस रॉकेट की पहली उड़ान पिछले साल अगस्त में विफल हो गई थी। बता दें कि इसरों को SSLV की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए पीएसएलवी के बनने का इंतजार करना पड़ता था। वो महंगा भी पड़ता था। उन्हें बड़े उपग्रहों के साथ असेंबल करके भेजना होता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं। उनकी लॉन्चिंग का बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए ISRO ने यह रॉकेट बनाया। SSLV रॉकेट के एक यूनिट पर सिर्फ 30 करोड़ रुपये का ही खर्च आएगा। जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपये आता है। ISRO के मुताबिक इस परीक्षण की विफलता की जांच से यह भी पता चला था कि रॉकेट के दूसरे चरण के अलगाव के दौरान इक्विपमेंट बे डेक पर एक छोटी अवधि के लिए कंपन भी हुआ था। वाइब्रेशन ने रॉकेट के इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS) को प्रभावित किया। फॉल्ट डिटेक्शन एंड आइसोलेशन (FDI) सॉफ्टवेयर का सेंसर भी प्रभावित हुआ था। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)