प्रभात तिवारी
Nepal News: नेपाल में एक बार फिर से राजतंत्र की मांग तेज हो गयी है। देश की जनता सरकार के कामकाज, बदहाल अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार से बुरी तरह नाराज है। जनता को पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह में एक उम्मीद नजर आई है, क्योंकि उन्होंने दोबारा से सक्रिय होकर जनता के बीच अपनी मौजूदगी से सियासी गलियारे में हलचल मचा दी है। युवाओं का एक बड़ा समूह ज्ञानेंद्र के समर्थन में सड़कों पर उतर चुका है।
युवाओं का समूह राजशाही का समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों के साथ मिलकर केंद्रीय नेतृत्व में बदलाव लाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है, जिसे गंभीरता से लेकर प्रधानमंत्री केपी ओली और नेपाली कांग्रेस के चीफ शेर बहादुर देउबा ने जनता के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया है कि नेपाल में फिर से राजशाही की ओर लौटना संभव नहीं है। यदि ज्ञानेंद्र सचमुच राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं, तो उन्हें अपना एक राजनीतिक संगठन बनाकर चुनाव लड़ना चाहिए। यदि जनता ने बहुमत दिया तो उन्हें दोबारा से जनता की सेवा करने का मौका मिल सकता है।
राजशाही का समर्थन करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी
नेपाल में राजशाही का समर्थन करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) ने काठमांडू में एक रैली निकाली। इस रैली में बड़ी संख्या में लोग नेपाल का राष्ट्रीय ध्वज लेकर शामिल हुए थे। यह घटना नेपाल में राजशाही की समाप्ति के 16 साल बाद घटी है, जिसे देखकर सत्ताधारी पार्टी के भी होश उड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री केपी ओली और नेपाली कांग्रेस चीफ शेर बहादुर देउबा का तो कहना है कि नेपाल का फिर से राजशाही की ओर लौटना संभव ही नहीं है। यहां अब लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार ही देश को चलायेगी।
सीपीए-माओवादी सेंटर के चेयरमैन पुष्पकमल दहल प्रचंड ने भी कहा है कि ज्ञानेंद्र शाह को जनता को मूर्ख बनाना छोड़ देना चाहिए। यदि उन्हें यानी पूर्व राजा को लगता है कि वह बहुत फेमस हैं, तो वह अपनी एक पार्टी बना सकते हैं। जनता अगर मौका देगी तो वह फिर से देश की सेवा कर सकते हैं। दूसरी तरफ आरपीपी के समर्थकों का कहना है कि नेपाल की सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर है। ऐसे में लोकतंत्र को हटाकर एक बार फिर राजशाही लागू कर देनी चाहिए।
दरअसल, 1 जून 2001 को नेपाल के शाही परिवार के 9 सदस्यों को उनके ही राजमहल में गोली मार दी गई थी। गोली चलाने वाला कोई और नहीं बल्कि उसी राज परिवार के राजा का बेटा था जो आने वाले वक्त में गद्दी का वारिस बनता। इस घटना के बाद नेपाल नरेश बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र नेपाल के तीसरे राजा बने, लेकिन नेपाल की जनता राजशाही परिवार के खात्मे को लेकर रचे गये षड्यंत्र के झटके से कभी उभर नहीं पाई और नेपाल ने राजशाही को त्यागकर गणतंत्र का रास्ता अपना लिया।
ज्ञानेंद्र शाह ने पूर्व राजा वीरेंद्र शाह की प्रतिमा का किया अनावरण
राजशाही खत्म होने के बाद काठमांडू के रॉयल पैलेस को म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया था। तब से लेकर अब तक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार ही सत्ता में काबिज रही है। हाल ही में पोखरा में ज्ञानेंद्र शाह ने पूर्व राजा वीरेंद्र शाह की प्रतिमा का अनावरण किया था। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। यहां उपस्थित लोगों ने ज्ञानेंद्र के समर्थन में नारेबाजी की और राजशाही का राष्ट्रगान भी गाया। रिपोर्ट्स की मानें तो राजशाही की मांग करने वालों में बड़ी संख्या युवाओं की है।
दूसरी तरफ जमीनी हकीकत यह है कि नेपाल में जब राजशाही का अंत हुआ था, तो जनता को लोकतंत्र में देश का और अपना भला होने की बड़ी उम्मीद थी, लेकिन अब नेपाल की जनता सत्ता में फैले भ्रष्टाचार और अराजकता से ऊब चुकी है। वह देश में व्यापक बदलाव लाने की कोशिशें कर रही है। वहीं पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की लोकप्रियता एक बार फिर बढ़ रही है। नेपाल की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच भी जनता का मोहभंग हो गया है। नेपाल में अर्थव्यवस्था बदहाली के दौर से गुजर रही है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी नेपाल की आर्थिक मदद रोकने का ऐलान कर दिया है। सरकार कर्ज तले दबी है और यह बोझ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इस वित्त वर्ष में नेपाल पर बाहरी कर्ज करीब 2 लाख करोड़ बढ़ चुका है। यही नहीं नेपाल की मौजूदा केपी ओली सरकार की विदेश नीति भी प्रभावी नहीं है, जिसकी वजह से नेपाल का सबसे बड़ा सहयोगी माने जाने वाले भारत के साथ भी रिश्ते मधुर नहीं रहे।
कम्युनिस्ट शासन में नेपाल की राजनीति में चीन का समर्थन और भारत विरोधी भावना स्पष्ट रूप से दिखाई दी है। नेपाल की सरकार में भारत की गोरखा रेजिमेंट में भर्तियां तक बंद करवा दीं। जनता को इसकी वजह से लगातार नुकसान हो रहा है। ऐसे में वह पुराने दिनों को याद कर रही है, क्योंकि राजशाही के वक्त भारत और नेपाल के बीच मैत्री संबंध ज्यादा अच्छे थे। इस हकीकत का लाभ राजशाही समर्थक उठाना चाहते हैं और वे जनता के आक्रोश को आंदोलन में बनदलने की फिराक में हैं।
जनता ने ‘सिंहासन खाली करो का नारा’ देकर चौंकाया
नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का स्वागत करने के लिए 10, 000 से अधिक उत्साही लोगों की भीड़ पहुंची थी। यहां भीड़ में गर्मजोशी थी, सब लोग एक शख्स की प्रतीक्षा कर रहे थे और उनकी झलक पाने को आतुर थे। यहां कुछ लोग हाथ मिलाना चाह रहे थे, तो कुछ नारेबाजी कर रहे थे। भीड़ आवाज लगा रही थी कि ‘नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन’ यानी कि नारायणहिती (राजा का महल) खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं। भीड़ फिर शोर करती है और नारा लगाती है कि ‘जय पशुपतिनाथ, हाम्रो राजालाई स्वागत छ’ यानी जय पशुपतिनाथ, हमारे राजा का स्वागत है।
राजशाही की मांग करने वाली आरपीपी की बात करें तो नेपाल की संसद में 275 में पार्टी की कुल संख्या 14 ही है। ऐसे में इस पार्टी का जनाधार मजबूत नहीं कहा जा सकता। यह सत्ता में बदलाव करने में अभी सक्षम भी नहीं है। नेपाल में 165 चुने हुए सांसद हैं और बाकी के 110 समानुपातिक प्रक्रिया से संसद भेजे गए हैं। दरअसल, पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के पर्यटन स्थल पोखरा में 2 महीने के प्रवास के बाद काठमांडू लौटे हैं। नेपाल में अभी ये चर्चा आम है कि ज्ञानेंद्र शाह राजनीति में वापसी करना चाह रहे हैं। इसके लिए वे लंबी तैयारी कर रहे हैं।
पोखरा प्रवास के दौरान ज्ञानेंद्र शाह दर्जन भर से ज्यादा मंदिरों और तीर्थ स्थलों के दौरे किए और जनता का मिजाज भांपने की कोशिश की है। 16 साल पहले नेपाल दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था। 2008 तक ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के राजा हुआ करते थे, लेकिन एक माओवादी आंदोलन और एक कथित वामपंथी क्रांति के बाद भारत के इस पड़ोसी देश में सत्ता परिवर्तन हुआ और ज्ञानेंद्र शाह को सिंहासन खाली करना पड़ा। अब नेपाल में राजशाही के समर्थक शासन की राजशाही व्यवस्था की वापसी की मांग कर रहे हैं।
बता दें कि 2008 में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने 575 सीटों वाली संसद में से संविधान सभा में 8 सीटें हासिल कीं. 2013 के चुनाव में, यह 13 सीटें हासिल करने में सफल रही। 2017 में, यह 1 सीट पर आ गई, लेकिन 2022 के चुनाव में 14 सीटों के साथ वापस आ गई। आरपीपी के नेताओं का कहना है कि नेपाल में अभी जो व्यवस्था चल रही है, उससे लोगों का मोहभंग हो गया है। अब लोग पुराने दिन याद कर रहे हैं।
2008 में सत्ता बदलाव के बाद से 17 सालों बाद अब किंग ज्ञानेंद्र नेपाल की भलाई के लिए सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार हैं। अब यहां कोई विलेन नहीं हैं। आम जनता का कहना है कि देश में अस्थिरता है, कीमतें बढ़ रही हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति बदतर है। गरीब के पास खाने को नहीं है, देश का नियम अमीरों पर लागू नहीं होता है, इसलिए हम अपने राजा को वापस चाहते हैं।
राजशाही की वापसी का रास्ता आसान नहीं
2008 में नेपाल में लोकतंत्र बहाली के बाद भारत के इस पड़ोसी देश में लगातार राजनीतिक अस्थिरता रही है। यहां 2008 के बाद से अब तक 13 सरकारें बदल चुकी हैं। नेपाल ने 240 वर्ष पुरानी राजशाही को बदलने में कई कुर्बानियां दी। आंदोलन की वजह से पर्यटन पर आधारित इस राज्य की अर्थव्यवस्था ठप हो गई। हिंसा में 16,000 लोगों की जानें गईं। गौरतलब है कि 2022 की जनगणना के अनुसार, हिमालय की गोद में स्थित नेपाल की जनसंख्या 30.55 मिलियन यानी कि लगभग 3.5 करोड़ है और यहां की 81.19 प्रतिशत जनता हिन्दू है। नेपाल में राजा आओ, देश बचाओ के नारे भले ही लग रहे हैं, लेकिन बिना संसदीय समर्थन के ऐसा होना मुश्किल लगता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नेपाल के लोगों में मौजूदा सरकार को लेकर निराशा तो है ही, लोग काफी गुस्से में भी हैं।
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जनता वैकल्पिक राजनीति की तलाश कर रही है, पर उसे कोई ठोस विकल्प नहीं दिख रहा है। ऐसे में राजतंत्र के समर्थक जनता के असंतोष को एकजुट कर राजशाही को वापस लाने की कोशिश में हैं। नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत रंजीत राय मानते हैं कि नेपाल के लोगों में निराशा है, सरकारें लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई हैं, लेकिन राजशाही नेपाल के लोगों को इस निराशा से निकाल पाएगी इसमें मुझे संदेह है, राजतंत्र के समर्थन में अभी उतने लोग नहीं है कि यहां इस आंदोलन को राजतंत्र के लिए खतरे के रूप में देखा जाएं।
नेपाल के प्रमुख राजनीतिक दल, जैसे नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का समर्थन करते हैं। संवैधानिक रूप से राजशाही की बहाली के लिए व्यापक संशोधन और जनसमर्थन की जरूरत होगी, जो फिलहाल मुश्किल लगता है। नेपाल ने प्रधानमंत्री केपी ओली ने कहा कि अगर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र राजनीति में आना चाहते हैं, तो वे उनका स्वागत करते हैं। उन्हें आना चाहिए और चुनाव लड़ना चाहिए।अगर वे संवैधानिक तरीके से राजनीति में आना चाहे हैं तो उनका स्वागत है।