नई दिल्लीः कोरोना महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर पड़े नकारात्मक असर की वजह से भारतीय परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है। कोरोना संक्रमण काल में भारतीय परिवारों की बचत में कमी आई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान भारतीय परिवारों की बचत घटकर 10.4 फीसदी के स्तर तक पहुंच गई है।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय परिवारों पर कर्ज का दबाव बढ़कर जीडीपी के 37.1 फीसदी के उच्च स्तर तक पहुंच गया, वही परिवारों की बचत लुढ़ककर 10.4 फीसदी के निचले स्तर तक गिर गई। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना की महामारी के कारण देश में बड़ी संख्या में असंगठित क्षेत्र के लोग बेरोजगार हुए। संगठित क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में कर्मचारियों के वेतन में कटौती हुई। इसकी वजह से अपना खर्च चलाने के लिए लोगों को कर्ज लेने का रास्ता अपनाना पड़ा या फिर बड़ी संख्या में लोगों ने घर चलाने के लिए पहले से बचा कर रखी गई राशि का ही इस्तेमाल किया। आंकड़ों के मुताबिक कर्ज लेने की जरूरत बढ़ने के कारण दूसरी तिमाही में ऋण बाजार (डेट मार्केट) में भारतीय परिवारों के हिस्सेदारी सालाना आधार पर बढ़कर 51.5 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई।
आरबीआई की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि कोरोना काल की शुरुआत में बीमारी से डरे लोगों का रुझान पहले बचत की ओर बढ़ा था। इसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष की पहली तिमाही में फेमिली डिपॉजिट जीडीपी के 21 फीसदी तक पहुंच गई थी। दूसरी तिमाही में ही महामारी के लंबा खिंचने और लोगों का कामकाज छूटने के कारण फेमिली डिपॉजिट में कमी आई। इस कारण पारिवारिक बचत घटकर जीडीपी की 10.4 फीसदी ही रह गई। दूसरी ओर खर्च चलाने की मजबूरी के कारण देश के ऋण बाजार में परिवार की हिस्सेदारी बढ़ती चली गई।
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सभरवाल सिक्योरिटीज के डिप्टी चेयरमैन वाईएस सभरवाल का कहना है कि आमतौर पर जब भी कम अवधि के लिए अर्थव्यवस्था में ठहराव आता है या अर्थव्यवस्था की चाल मंद पड़ती है, तो परिवारों में बचत के प्रति रुझान बढ़ता है। जब अर्थव्यवस्था तेज होती है तो लोगों के मन में खर्च करने को लेकर भरोसा बढ़ता है। लोग खुलकर खर्च करते हैं, जिससे बचत घटती है। यही बात पहली तिमाही में दिखी, जब कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था में आए ठहराव के कारण बचत में बढ़ोतरी हुई। जब दूसरी तिमाही में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां गई और वेतन में कटौती होने लगी तो लोगों को अपना खर्च निकालने के लिए अपने बचत से पैसे निकालने पड़े। कई बार कर्ज का भी सहारा लेना पड़ा, जिससे बचत घटता चला गया। इस वजह से पारिवारिक कर्ज लगातार बढ़कर पचास फीसदी से भी ऊपर 51.5 फीसदी के स्तर तक पहुंच गया।