Monday, January 13, 2025
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Homeदेशड्रोन से 'आक्रामक क्षमता' हासिल करने की तैयारी में भारतीय सेना

ड्रोन से ‘आक्रामक क्षमता’ हासिल करने की तैयारी में भारतीय सेना

नई दिल्ली: सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने गुरुवार को कहा कि भविष्य में होने वाले सभी प्रकार के युद्ध में ड्रोन का तेजी से उपयोग किया जाएगा। इसलिए भारतीय सशस्त्र बल ड्रोन से लगातार बढ़ते खतरे से निपटने के लिए क्षमता विकसित कर रहे हैं। हालांकि पहले से भी कुछ जवाबी उपाय किए गए हैं लेकिन अब भारतीय सेना ड्रोन से ‘आक्रामक क्षमता’ हासिल करने की तैयारी में है।

सेना प्रमुख ने आज एक आभासी संगोष्ठी में कहा कि हम ड्रोन का उपयोग सुरक्षात्मक और आक्रामक दोनों तरह से करने की तैयारी कर रहे हैं। महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों पर किसी भी तरह का हमला रोकने के लिए ड्रोन विरोधी तकनीकों के माध्यम से रक्षात्मक उपायों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। जनरल नरवणे की यह टिप्पणी 27/28 जून की रात को जम्मू वायु सेना स्टेशन पर देश में पहली बार ड्रोन आतंकी हमले के बाद आई है, जिसने व्यावसायिक रूप से उपलब्ध छोटे ड्रोन से निपटने में परिचालन अंतराल को उजागर किया है। यह छोटे ड्रोन बड़े मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी), विमान और हेलीकॉप्टरों की दिशा में तैयार मिसाइल सिस्टम के साथ सैन्य रडार द्वारा पता लगाने से बच सकते हैं।

उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों को छोटे ड्रोन का पता लगाने और उन्हें ट्रैक करने के लिए विशेष रडार की आवश्यकता होती है, जो सिर्फ 30 सेमी. से लेकर एक मीटर तक की चौड़ाई में हो सकते हैं। इसका उपयोग जैमर ड्रोन के उपग्रह या वीडियो लिंक को बाधित या खराब करने के साथ-साथ लेज़रों जैसे निर्देशित ऊर्जा हथियारों को नीचे गिराने के लिए हो सकता है। जनरल नरवणे ने माना कि ड्रोन की ‘आसान उपलब्धता’ ने भारत के सामने सुरक्षा चुनौतियों की जटिलता को निश्चित रूप से बढ़ा दिया है। हम इस मुद्दे से पूरी तरह से अवगत हैं, इसलिए कुछ जवाबी उपाय किए गए हैं, साथ ही सैनिकों को भी बढ़ते खतरे के प्रति संवेदनशील बनाया गया है।सशस्त्र बल इस खतरे से निपटने के लिए क्षमताओं का विकास कर रहे हैं और ड्रोन हमलों को विफल करने के लिए जवाबी उपायों के बीच एक ‘देखा-देखी लड़ाई’ जारी रहेगी।

आधुनिक समय के युद्ध में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), क्वांटम कंप्यूटिंग, स्वायत्त और मानव रहित प्रणालियों जैसी ‘आला प्रौद्योगिकियों’ की भूमिका पर जोर देते हुए जनरल नरवणे ने कहा कि हमारी उत्तरी सीमा पर चीन इस बात की कड़ी याद दिलाता है कि भारतीय सशस्त्र बलों को देश की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए आधुनिक युद्धों की अनिवार्यताओं के अनुकूल होने की जरूरत है। डिजिटल युग में इस संक्रमण को सुविधाजनक बनाने के लिए सशस्त्र बलों को ‘सरलीकृत’ रक्षा खरीद प्रक्रियाओं की आवश्यकता है। दुर्भाग्य से यह हमारे सबसे बड़े अवरोधों में से एक रहा है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी विशिष्ट तकनीकों का दोहन करने और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए हमें पुरानी मानसिकता को छोड़ने और अपनी प्रक्रियाओं को अधिक लचीला और अनुकूल बनाने की आवश्यकता है।

जनरल नरवणे ने कहा कि ड्रोन के ‘आक्रामक उपयोग’ ने पहले इदलिब (सीरिया) में और फिर आर्मेनिया-अजरबैजान में युद्ध के पारंपरिक सैन्य हार्डवेयर टैंक, तोपखाने और पैदल सेना को चुनौती दी है। एआई आज सबसे आधुनिक प्रौद्योगिकी है, जिसका भू-राजनीति और भू-रणनीति की प्रकृति पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। संक्षेप में कहा जाये तो भविष्य में होने वाले युद्ध ड्रोन आधारित होंगे, इसलिए हमें अपने युद्ध लड़ने और जीतने के लिए एआई की आवश्यकता है।

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