इंडिया बनाम भारत, पक्ष व विपक्ष में रार

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भारत के पक्ष और विपक्ष के बीच जिस तरह 36 का आंकड़ा है, उससे अक्सर नए-नए विवाद जन्म लेते रहते हैं। एक विवाद चल ही रहा होता है कि दूसरा आ जाता है। आमतौर पर इसकी पहल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तथा प्रधानमंत्री की ओर से होती है। विपक्ष चैतन्य भी नहीं हो पता कि उसके सामने एक नया मुद्दा दरपेश हो जाता है। इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने तथा उस पर हमला करने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते हैं। जैसे-जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव निकट आ रहा है, विवादों में भी तेजी आ रही है। किसी ने सोचा भी नहीं था कि संसद के विशेष सत्र की घोषणा हो गई। क्यों हुई, विचार-विर्मश के क्या मुद्दे होंगे? इसे लेकर अटकलें तेज हो गईं। एक देश-एक चुनाव अर्थात लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक समय कराने का मुद्दा, यूनिफॉर्म सिविल कोड, इंडिया बनाम भारत और यहां तक कि इस बात पर भी चर्चा गरम हो गई कि मोदी सरकार संविधान में कोई बड़ा परिवर्तन करने वाली है। 18 सितंबर को पुराने संसद भवन में विशेष सत्र की शुरुआत हुई। दरअसल यह पुराने संसद भवन की विदाई बैठक थी। दूसरे दिन 19 सितम्बर को नए संसद भवन में कार्रवाई की शुरुआत हुई। इसमें लंबे समय से महिला आरक्षण बिल जो लंबित रहा है, उसे पेश किया गया। यह मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक था। इससे नए संसद भवन का आगाज हुआ।

मोदी और आईएनडीआईए

2014 में भाजपा सत्तासीन हुई। तीस वर्ष बाद किसी सरकार को केंद्र में पूर्ण बहुमत मिला। नरेंद्र मोदी अटल जी से भिन्न प्रधानमंत्री साबित हुए। अपने विरोध को समायोजित करना, विरोधी दलों में टूट-फूट पैदा करना, जांच एजेंसियों द्वारा उनके नेताओं को घेरना आदि आज भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। इसमें उसे कामयाबी मिली है। पहले कांग्रेस मुक्त भारत से शुरुआत हुई। बाद में यह विपक्ष मुक्त भारत तक पहुंचा, लेकिन क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है। अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे कांग्रेस सहित 28 विपक्षी दलों को एक मंच पर आने का मौका मिला। ‘आईएनडीआईए’ यानी इंडिया नाम से गठबंधन बना। इसमें ऐसे दल भी शामिल हैं जो कभी भाजपा नीत एनडीए के घटक रहे हैं। भाजपा के लिए पहली बार ऐसी चुनौती मिली है। 2019 के चुनाव में ऐसी चुनौती नहीं थी। नरेंद्र मोदी कि यह विशेषता है कि विपक्ष जो सोच भी नहीं सकता, वह उनकी ओर से कर दिया जाता है। उसका विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं। इस राजनीतिक खेल में मोदी द्वारा ही पिच को तैयार किया जाता है, जिस पर विपक्ष को बैटिंग करनी होती है। ऐसे में उसका असफल होना स्वाभाविक है। साथ ही, भारतीय जनमानस पर भाजपा-संघ की अच्छी पकड़ है। उसकी रणनीति में राजनीतिक के साथ धर्म, देश, राष्ट्रवाद जैसे आस्था व भावनात्मक मुद्दों को मिला देने का कौशल है। सर्वापरि प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का जादुई व्यक्तित्व है। इसका विपक्ष के पास कोई तोड़ नहीं है, लेकिन मोदी सरकार के नौ साल के शासन में पहली बार ऐसा हुआ है जब आई.एन.डी.आई.ए यानी इंडिया गठबंधन ने खेल की नई पिच तैयार कर दी है और वह भी ठीक 2024 चुनाव से पहले। इसका असर ही कहा जाएगा कि भाजपा को अपने गठबंधन एनडीए को पुनर्जीवित करना पड़ा है। गठबंधन की तारीखों में उन्हें अपनी बैठकें करने पड़ी है। इसलिए जी20 के आयोजन के दौरान उसने एक नई बहस ‘इंडिया बनाम भारत’ की छेड़ दी है। इसमें ‘इंडिया’ को विदेशी दासता तथा ‘भारत’ को भारतीयता तथा राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में पेश किया गया है। इस पिच पर वह विपक्ष के गठबंधन को चित्त करना चाहती है। इस तरह कोशिश है कि पहल अपने हाथ में रहे।

जी20 से एक नई बहस

भारत में जी20 का आयोजन उपलब्धि है। यह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश के बढ़ते कद का भी उदाहरण है। इस दौरान एक घटना घटी जिसने विवाद पैदा कर दिया। जी20 के अवसर पर जो रात्रि भोज का आयोजन हुआ, उसके लिए राष्ट्रपति भवन से जो निमंत्रण पत्र जारी हुआ, उसे लेकर ‘इंडिया बनाम भारत’ के बहस की शुरुआत हुई। यह पत्र भारत के राष्ट्रपति की ओर से जारी हुआ था, जिसमें भारत के राष्ट्रपति के लिए ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया। इसमें ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ क्या लिखा गया, इंडिया और भारत को लेकर पक्ष और विपक्ष के बीच महाभारत शुरू हो गया। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे भारत के संघीय ढांचे पर हमला बताया। उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी और भाजपा उनके ‘इंडिया’ गठबंधन से इस कदर आतंकित हैं कि वे देश के नाम को ही बदल देने पर आमादा हैं। वहीं, भाजपा का कहना है कि कांग्रेस को देश के सम्मान और गौरव से जुड़े हर विषय से विरोध है। गौरतलब है कि, नरेंद्र मोदी ने भी 15 अगस्त को लाल किले से दिए अपने संबोधन में कहा था कि हमें गुलामी की छोटी से छोटी निशानी से मुक्त होना है। इसके बाद बदलाव देखने में आया। राजपथ का नाम कर्तव्य पथ किया गया। भारतीय सशस्त्र सेना ने भी कई प्रतीक चिन्ह बदले। इसी के साथ ही ‘इंडिया’ भी निशाने पर आ गया। भाजपा सरकार के केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद से मुगलकालीन तथा ब्रिटिश राज के प्रतीकों, स्थानों, शहरों के नाम आदि के बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन इंडिया का नाम बदलकर भारत करने की चर्चा तब गर्म हुई और इसे लेकर पक्ष व विपक्ष के बीच वाक् युद्ध की शुरुआत हुई, जब विपक्षी गठबंधन ने अपना नाम आई.एन.डी.आई.ए. यानी इंडिया रखा। यह सत्ता पक्ष के लिए चुभने तथा उनके राष्ट्रवादी एजेण्डे को हड़पने की बात थी। इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। इसे लेकर स्वयं नरेंद्र मोदी हमलावर हुए। इसे इंडिया नहीं घमंडियां कहना शुरू किया। यही नहीं इसे इस्ट इंडिया कंपनी के इंडिया से भी जोड़ा। भाजपा इस कवायद में लगी कि कैसे विपक्ष को पीछे धकेला जाए तथा पहल भाजपा के हाथ में रहे। इसलिए उसने ‘भारत’ को आगे किया तथा ‘इंडिया’ को गुलामी की संस्कृति के रूप में पेश करना शुरू कर दिया। यह भी चर्चा शुरू हुई कि मोदी सरकार संसद के विशेष सत्र में इस पर प्रस्ताव ला सकती है। इसे लेकर राजनीतिक व सामाजिक हलके में भी चर्चा हुई। राजनीति ही नहीं फिल्म, खेल और अन्य सामाजिक क्षेत्र से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों ने भी ‘भारत’ पर अपनी राय दी व ट्वीट किया। इसमें ‘भारत’ के प्रति उनका भावनात्मक लगाव देखने में आया।

इतिहास के झरोखे से

भारत के इतिहास को देखें तो यह भूखंड कई नामों से जाना जाता रहा है जैसे जम्बूद्वीप, भारत, भारतखण्ड, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिमवर्ष, हिंद, हिंदुस्तान, इंडिया आदि। विदेशियों को यह क्षेत्र आकर्षित करता रहा है। इसे ‘सोने की चिड़िया’ भी कहा जाता था। यूनानियों के आक्रमण के बाद इंडिया नाम आया। वे सिंधु नदी का उच्चारण ‘इंडस’ नदी के रूप में करते थे तथा सिंधु नदी के क्षेत्र को ‘इंडस वैली’ कहते थे। यही लैटिन में इंडिया हो गया। अंग्रेजों ने इस नाम को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दी। फारस की खाड़ी से इरानी हमलावर आए। उनकी भाषा में ‘स’ को ‘ह’ से जाना जाता था। उन्हीं के आने से ‘हिन्द’, ‘हिन्दू’ तथा ‘हिन्दुस्तान’ नाम आया। भारत नाम सर्वाधिक प्राचीन है तथा इसे लेकर कई कथाएं हैं। ‘भरत’ नाम के कई ऋषि, राजर्षि और महापुरुष हुए। उनसे भारत नाम को जोड़ा जाता है, लेकिन सर्वाधिक प्रचलित मान्यता है कि ‘भारत’ दुष्यंत-शकुंतला के पुत्र भरत से संबंधित है। कालिदास के महाकाव्य ‘अभिज्ञान शकुंतलम’ में इसका संदर्भ आता है। भरत चक्रवर्ती सम्राट थे। उन्होंने अश्वमेध यज्ञ करके बड़े भूभाग पर अपना आधिपत्य कायम किया तथा विशाल साम्राज्य का निर्माण किया। यही राज्य भारतवर्ष से जाना गया। वर्तमान में भारत, हिंदुस्तान और इंडिया का प्रयोग मुख्यतः होता है। यही आज आम प्रचलन में है। संविधान में भी इंडिया और भारत दोनों लिखा गया है। इस तरह जहां ‘इंडिया’ और ‘हिंदुस्तान’ बाहर से आए आक्रमणकारियों द्वारा दिया गया नाम है, वहीं ‘भारत’ इसी भू-भाग की उत्पत्ति है। इसीलिए इसके प्रति राष्ट्रीय गौरव और सम्मान का भाव है। भाजपा अपने को इस भाव का चैंपियन मानती है और वह ‘इंडिया’ को विदेशी दासता से जोड़ती है।

भाजपा का ‘इंडिया’ विरोध?

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने भी 05 सितंबर को दिए अपने भाषण में देश की पहचान ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ हो, की बात कही। वैसे मनमोहन सिंह काल में भी ‘इंडिया बनाम भारत’ की बहस तेज थी। वह देश के पहचान से जुड़ी नहीं थी ,बल्कि भारतीय समाज के आर्थिक जीवन से उसका संबंध था। वह नवउदारवाद का काल था। अमीरी-गरीबी के बीच बढ़ती खाई की बात थी। ‘भारत’ से आशय गरीबी में जीने वाली बड़ी आबादी से था। वहीं, ‘इंडिया’ का संबंध समाज के संपन्न समुदाय से था, जो अमेरिका और पश्चिमी देशों में अपना भविष्य देखा करता है। मोदी शासन काल में इस बहस ने नया तूल पकड़ा है। सरकार अपने राष्ट्रीय गौरव और सम्मान का पक्ष पोषण करना चाहती है। देश को आत्मनिर्भर बनना चाहती है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की नयी छवि को पेश करना चाहती है। इस दिशा में उसके प्रयत्न भी हैं। फिर भी यह सवाल उठता है कि उसे 10 साल के अपने शासन के आखिरी वर्ष में ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ नाम की याद क्यों आई? जिस तरह कई शहरों का नाम बदलने का काम हुआ, इसी तरह इसका प्रारूप भी तैयार होता। तथ्य क्या कहते हैं? इसे देखा जाना चाहिए। सच्चाई तो यह है कि भाजपा की सरकारों का इंडिया नाम से कोई परहेज नहीं रहा है। अटल जी को लें, तो उनकी सरकार ने ‘शाइनिंग इंडिया’ का नारा दिया था। मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही ‘इंडिया’ नाम से अनेक योजनाएं शुरू की जैसे- मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, डिजिटल इंडिया आदि। 2016 और 2020 में सुप्रीम कोर्ट में ‘इंडिया’ नाम बदल कर ‘भारत’ करने से संबंधित जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। उस वक्त मोदी सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जो हलफनामा दिया गया था, वह गौरतलब है। 2004 में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया था। उस वक्त मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। प्रस्ताव में था कि संविधान में परिवर्तन कर ‘इंडिया दैट इज भारत’ को बदलकर इसे ‘भारत दैट इज इंडिया’ किया जाए। वह प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन भाजपा ने सदन से वॉकआउट किया। उस वक्त भाजपा का कथन था कि संविधान में दोनों नाम मौजूद है। ऐसे में इसे लेकर उलझन क्यों? लेकिन आज लगता है मोदी सरकार इसी में उलझ गई है। कहीं विपक्ष के आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन ने इंडिया को लेकर उसे उलझा तो नहीं दिया? उसका प्रयत्न 2024 के चुनाव की पिच इंडिया बनाम भारत तैयार करने की तो नहीं?

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विशेषज्ञों की राय

‘इंडिया’ नाम में गुलामी की गंध है। ‘भारत’ का संबंध प्राचीन संस्कृति से है। उसका लंबा इतिहास है। इसलिए भारतीयों का उससे भावनात्मक जुड़ाव है। वर्तमान में यह एक आधुनिक राज्य है। इसका ढांचा संघीय है। देश संविधान से चलता है। स्वतंत्रता उपरांत संविधान सभा में भी ‘इंडिया’ और ‘भारत’ को लेकर बहस हुई थी। उक्त सभा में एचबी कामथ का मत था कि ‘भारत’ का अंग्रेज़ी अनुवाद ‘इंडिया’ माना जाए। इसे अस्वीकार कर दिया गया था। बहस के बाद आर्टिकल-1 में लिखा गया ‘इंडिया दैट इज भारत’। इसका अर्थ है कि इंडिया जो कि भारत है। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट एम.एल. लाहोटी के मत से ‘इंडिया’ और ‘भारत’ दोनों का इस्तेमाल हो सकता है। ऐसा व्यवहार में होता भी है। भारत सरकार को गवर्नमेंट आफ इंडिया भी कहा जाता है। इस संबंध में अनेक विधि विशेषज्ञों का यही मत है। उनके अनुसार जी20 के रात्रि भोज का जो आमंत्रण पत्र जारी हुआ, जिसमें ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया, वह कहीं से गलत नहीं है।

कौशल कशोर