बीकानेर: स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग द्वारा शनिवार को विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया गया। विभागाध्यक्ष डॉ. हनुमान देशवाल ने बताया कि यह दिवस वर्ष 2018 से प्रत्येक वर्ष 20 मई को मनाया जाता है। वर्ष 2023 में इस दिवस का विषय ‘परागण अनुकूल कृषि उत्पादन में संलग्न मधुमक्खियां’ है।
विश्व मधुमक्खी दिवस मनाकर, हम मधुमक्खियों और अन्य परागणकों द्वारा लोगों और ग्रह को स्वस्थ रखने में निभाई जाने वाली आवश्यक भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत शहद उत्पादन में विश्व में आठवें स्थान पर है और राजस्थान में प्रतिवर्ष 5000 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हो रहा है। डॉ. विजय शंकर आचार्य ने बताया कि मधुमक्खी पालन के प्रणेता एंटोन जानसा का जन्म 20 मई को हुआ था, इसीलिए यह 20 मई को मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि शहद में सिर्फ 1.8 फीसदी सुक्रोज होता है। चींटियां शुद्ध शहद नहीं खाती हैं। शुद्ध शहद की पहचान करने के लिए एक कांच के गिलास में शहद की एक बूंद डालें, अगर वह सीधे उसके तले में बैठ जाए तो मान लें कि वह शुद्ध है।
इसी तरह अगर सफेद कपड़े पर शहद की एक बूंद डाल दी जाए और उसे हटाने पर कोई निशान न बने तो वह शहद शुद्ध है। राजस्थान में शहद उत्पादकों को 40 फीसदी स्वीकृत धनराशि दी जा रही है। डॉ. आचार्य ने मधुमक्खी पालन के दौरान मधुमक्खियों की विभिन्न प्रजातियों, उनके जीवन चक्र और मधुमक्खियों के प्रबंधन पर प्रकाश डाला। इस मौके पर प्लांट पैथोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. दाता राम इंजी। जितेंद्र गौर, डॉ. सुरेंद्र यादव, डॉ. अर्जुन यादव, डॉ. विक्रम योगी, डॉ. शिरीष शर्मा व छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।
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