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इन राष्ट्रवादी ईसाइयों पर है भारत को नाज

क्रिसमस को आने में अब गिनती के दिन शेष हैं। गिरिजाघरों से लेकर सभी ईसाई परिवारों के घर सजने लगे हैं। मान्यता है कि भारत में ईसाई धर्म की शुरुआत सबसे पहले केरल से हुई थी। माना जाता है कि ईसा मसीह के 12 प्रमुख शिष्यों में से एक सेंट थॉमस केरल में आए थे। भारत आने के बाद सेंट थॉमस ने 7 चर्च बनावाए। बहरहाल, यह क्रिसमस इस तरह का अनुपम अवसर है, जब हम जीवन के अलग-अलग भागों में भारत में उत्कृष्ट कार्य करने वाले राष्ट्रवादी ईसाइयों की बात करें।

इस लिहाज से पहला नाम डॉ. टेसी थॉमस का जेहन में आता है। उन्हें भारत में मिसाइल वुमन के नाम से जाता है। वह अग्नि मिसाइल प्रोग्राम की अहम जिम्मेदारी संभालने वालीं देश की पहली महिला साइंटिस्ट हैं। अभी वह रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ( डीआरडीओ) में महानिदेशक एयरोनॉटिकल प्रणाली हैं। टेसी मिसाइल के क्षेत्र में महिलाओं के लिए पथप्रदर्शक साबित हुई हैं। टेसी थॉमस 1988 में डीआरडीओ में शामिल हुईं। यहां उन्होंने नई पीढ़ी की बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि के डिजाइन और विकास पर काम किया। उन्हें पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अग्नि परियोजना के लिए नियुक्त किया था। टेसी 3,000 किमी रेंज की अग्नि-III मिसाइल परियोजना की सहयोगी परियोजना निदेशक भी रहीं। वह मिशन अग्नि IV की परियोजना निदेशक थीं, जिसका 2011 में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था। इसके बाद उन्हें 2009 में 5,000 किमी रेंज अग्नि-V के परियोजना निदेशक बनाया। इसका 19 अप्रैल 2012 को सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। साल 2018 में वह डीआरडीओ में वैमानिकी प्रणाली की महानिदेशक बनीं। देश को भरोसा है कि टेसी थॉमस के नेतृत्व में देश का मिसाइल कार्यक्रम लगातार नई बुलंदियों को छूता रहेगा।

यह जानकारी कम लोगों को ही है कि प्रख्यात वकील हरीश साल्वे का संबंध भी एक ईसाई परिवार से है। वे बेहद प्रखर वक्ता भी हैं। जिरह के दौरान उन्हें इसका भरपूर लाभ मिलता है। अंग्रेजी जुबान पर उनके नियंत्रण पर किसी गोरे को भी रश्क हो सकता है। वे जब कोर्ट रूम में जिरह करते हैं तो एक बार तो उनके खिलाफ खड़ा वकील भी उनका कायल होने लगता है। वे कान्स्टिटूशनल लॉ और कॉरपोरेट लॉ से जुड़े मामलों पर खासतौर पर महारत रखते हैं। हरीश साल्वे को इस समय देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों में एक माना जाता है। वे लगभग उसी स्थान पर विराजमान है, जिस पर कभी नानी पालकीवाला, सोली सोराबजी या फली नरीमन जैसे दिग्गज विद्यामान रहे थे। उनकी खासियत यह है कि वे हर केस को जीतने के लिए इतनी मेहनत करते हैं मानो वे केस हार गए तो दुनिया इधर से उधर हो जाएगी। वे मुकेश अंबानी से लेकर रतन टाटा के लिए सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर चुके हैं। वे टैक्स विवाद में वोडाफोन के लिए भी लड़े। साल्वे ने इतालवी सरकार के लिए दो इतालवी मरीनों के हक में भी सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ा था। पर जब इतालवी राजदूत ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे का उल्लंघन किया है तो उन्होंने आगे केस को लड़ने से मना भी कर दिया था। आपको याद होगा कि इतालवी सरकार ने दो भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोपी दो इतालवी मरीनों को सुनवाई के लिए भारत वापस भेजने से मना कर दिया था । इसके बाद साल्वे ने इतालवी सरकार के वकील का पद छोड़ा था।

भारत के हरेक शब्दों के शैदाइयों के लिए रस्किन बॉण्ड का कालजयी काम उन्हें विशेष बना देता है। वे अंग्रेजी भाषा के विश्वप्रसिद्ध भारतीय लेखक हैं। बॉन्ड ने बच्चों के लिए सैकड़ों लघु कथाएँ, निबंध, उपन्यास और किताबें लिखी हैं। बच्चों में उनकी जान बसती है। वे कभी कोई पुरस्कार ग्रहण करने के लिए नहीं लिखते हैं। वर्ना बहुत से कथित लेखक तो पुरस्कार पाने के लिए ही लिखते हैं। लिखना रस्किन बॉण्ड के जीवन का अभिन्न अंग है। उन्हें 1999 में पद्मश्री और 2014 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। रस्किन बॉण्ड के पिता भारत में तैनात रॉयल एयरफोर्स के अधिकारी थे। वे चाहते तो भारत से बाहर जाकर कहीं भी बस सकते थे। पर भारत की मिट्टी के प्रति अगाध प्रेम के चलते उन्होंने इसे कभी नहीं छोड़ा। उनकी लेखनी अपूर्व और अप्रतिम है। उनके वाक्य छोटे-छोटे रहते हैं जिन्हें पाठक आराम से समझ लेता है। रस्किन बॉण्ड मसूरी के पहाड़ों पर रहकर बच्चों के लिये सरल अंग्रेजी भाषा में कहानियां लिखते रहे हैं।

अगर बात खेल जगत की करें तो लिएंडर पेस को आजाद भारत के सबसे सफल खिलाड़ियों की सूची में रखा जाएगा। लिएंडर पेस के पिता वीस पेस भारत की हॉकी टीम में रहे और मां जेनिफ़र पेस भारत की बास्केटबॉल टीम का हिस्सा रहीं। उन्होंने 1990 जूनियर विंबलडन जीता था। उन्होंने 1996 के अटलांटा ओलंपिक में कांस्य का पदक जीता। इसके बाद पेस ने महेश भूपति के साथ भारतीय टेनिस के इतिहास में कुछ यादगार पल जोड़ दिए। वे एक इस तरह के खिलाड़ी हैं जो कहते हैं कि वे जब भारत का तिरंगा देखते हैं तो उनका प्रदर्शन और बेहतर हो जाता है। तिरंगा उन्हें बेहतर खेल दिखाने को प्रेरित करता है।

मीडिया की सुर्खियों से दूर रहने वाले जॉर्ज सोलोमन राजघाट, विजय घाट, शांतिवन और सरकार द्वारा आयोजित होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का अनिवार्य अंग हैं। महात्मा गांधी के शांति और सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत को जीवन में आत्मसात कर चुके जॉर्ज सोलोमन कहते हैं कि गांधीजी की सर्वधर्म प्रार्थनाओं में ईसाई प्रार्थना पहले दिन से ही आरंभ हो गई थीं। उनका ईसाई धर्म, बाइबिल और मिशनरियों के कामकाज से साक्षात्कार तब हुआ जब वे दक्षिण अफ्रीका में रहते थे। जॉर्ज सोलोमन राजधानी की कई चर्चों में पादरी भी रहे हैं। जॉर्ज सोलोमन मानते हैं कि भारत में सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का सरकारी आयोजनों में भी होना इस बात की गवाही है कि भारत सरकार सब धर्मों का आदर करती है और यहां किसी भी धर्म को मानने वाले शख्स के साथ भेदभाव नहीं होता। जो इससे इतर बातें करते हैं वे भारत विरोधी ताकतों के हाथों में खेलते हैं। जॉर्ज सोलोमन कहते हैं कि कि गांधीजी को बाइबिल और ईसाई धर्म के संबंध में करीब से जानने का अवसर मिला दीनबंधु सी.एफ.एन्ड्रूज से। दीनबंधु एन्ड्रूरज राजधानी के सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ाते थे। उन्हीं के प्रयासों से गांधीजी पहली बार 1915 में दिल्ली आए थे। सेंट स्टीफंस कॉलेज की स्थापना दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी ने की थी। इससे ही दीनबंधु एन्ड्रूरज जुड़े थे और अब जॉर्ज सोलोमन इसका हिस्सा हैं।

पूर्वोत्तर भारत से आने वाली मैरी कॉम की उपलब्धियों पर सारा देश गर्व महसूस करता है। उन्होंने मुक्केबाजी की दुनिया में अनेक बड़ी उपलब्धियां दर्ज की। मैरी कॉम ने 2012 में हुए ओलंपिक खेलों में ब्रोंज मेडल हासिल किया था। उन्होंने 5 बार वर्ल्ड बॉक्सर चैम्पियनशिप जीती है। खेल की दुनिया में इनके कोच चार्ल्स अत्किनसन, गोपाल देवांग, रोंगमी जोसिया, एम् नरजीत सिंह रहे है, जिन्होंने मैरी कॉम को शिखर तक पहुंचाने में योगदान दिया।

भारत में ईसाइयों की आबादी हिन्दू और मुसलमानों के बाद सबसे अधिक है। देश ईसाई समाज से उम्मीद करता रहेगा कि वहां से देश का चौतरफा विकास करने वाली शख्सियतें निकलती रहें। अगर बात स्वाधीनता के बाद की करें तो ईसाई समाज से जॉर्ज फर्नाडीज, भारतीय वायु सेना के चीफ अनिल ब्राउन, चुनाव आयुक्त जेम्स माइकल लिंग्दोह, पुलिस अफसर जूलियस रिबेरो, भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल एस.एन. रोडग्रिस जैसी शानदार शख्सियतों ने देश को समृद्ध किया। आशा की जानी चाहिए कि ये आगे भी चलता रहेगा।

और अंत में बात कर लें फादर कामिल बुल्के की। फादर बुल्के के अंग्रेजी-हिंदी शब्द कोष को कौन नहीं जानता ? जिन्दगी भर रांची के सेंट जेवियर कॉलेज में हिंदी पढ़ाते रहे। “रामचरित-मानस” के महान विद्वान थे। प्रतिवर्ष तुलसी जयंती पर देशभर के अनेकों लोग तुलसीदास और उनकी कालजयी कृति रामचरितमानस पर फादर कामिल बुल्के की गूढ़ विवेचनात्मक व्याख्यान को सुनने रांची पहुंचते थे। कई वर्ष मैं भी गया हूँ।

भारतीय संस्कृति में रचे-बसे इन महान ईसाई हस्तियों को सलाम !

आर.के. सिन्हा