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परिवर्तित और मजबूत होती भारत की अर्थव्यवस्था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल ने पिछले 10 वर्षों में आर्थिक विकास की जो दिशा निर्धारित की थी उसी के अनुरूप चलते हुए देश की आर्थिक दशा को परिवर्तित करने की ओर प्रयास कर रही है। सरकार का ध्यान एक तरफ अपनी बड़ी-बड़ी परियोजनाओं पर है, तो दूसरी तरफ सरकार की योजनाओं और नीतियों का लाभ समाज के निचले स्तर तक पहुंचाने पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

कृषि और किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए अनेक बड़ी योजनाओं को सरकार ने शुरू किया है और कृषि क्षेत्र में तकनीकी को बढ़ावा देने की अपनी कोशिशों में तेजी लाई है। केंद्र सरकार ने किसानों के लिए खेती में सुधार करने की दिशा में 07 बड़ी योजनाओं को मंजूरी प्रदान की है, जिनकी लागत लगभग 14,000 करोड़ रूपये है। प्रधानमंत्री किसान निधि के तहत किसानों को दिए जाने वाली राशि हो या खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि किए जाने से किसानों को लाभ पहुंचाना हो या फिर डिजिटल कृषि मिशन सहित बड़ी योजनाओं की स्वीकृति हो, यह सभी कदम कृषि क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।

रोजगार बढ़ाने पर सरकार ने इस बार विशेष ध्यान दिया है, जिसमें कौशल विकास मिशन के तहत 04 करोड़ से अधिक युवाओं को 02 लाख करोड़ की पैकेज और एक करोड़ युवाओं के लिए 500 कंपनियों में इंटर्नशिप की योजनाएं अहम हैं। बढ़ता कर संग्रह अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है। इस वित्त वर्ष में अब तक शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में 16 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है और यह लगभग 10 लाख करोड़ से अधिक हो गया है। शुद्ध व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि निगम कर में 10.30 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। अग्रिम कर संग्रह में 22.5 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जबकि व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 39 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। कॉर्पोरेट कर में 18 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। इस वित्त वर्ष में सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह 12 लाख करोड रुपए से अधिक हो गया है, जो कि पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले लगभग 21.5 प्रतिशत अधिक है।

भारत पर बढ़ता भरोसा

राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन ने हाल ही में प्रस्तुत सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों में अनुमान जताया कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2024-25 में 07 प्रतिशत के लगभग रहेगी। इस वर्ष का मानसून अच्छा रहने के कारण कृषि की समृद्धि दर अच्छी रहने की संभावना है। लोकसभा चुनावों के बाद अब भारतीय अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय में भी वृद्धि और तद्नुरूप निजी निवेश में वृद्धि से आगे वृद्धि दर और बेहतर होगी। निजी उपभोग व्यय में, विशेष रूप से ग्रामीण निजी उपभोग व्यय में, वृद्धि भी एक सकारात्मक संकेत है।

विश्व की लगभग सभी रेटिंग एजेंसियां इस बात से सहमत हैं कि वैश्विक अनिश्चितता भरे परिदृश्य में भी भारत वर्तमान आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने में सफल रहेगा और 2030 तक यह सात ट्रिलियन डॉलर से अधिक की जीडीपी के साथ विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। एस&पी ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने चालू वित्त वर्ष में भारत के विकास दर का 6.8 प्रतिशत, मूडीज़ ने 7.5 प्रतिशत का अनुमान लगाया है। यह भी अनुमान है कि अक्टूबर में रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती कर सकता है, जिससे विकास दर तेज होने में मदद होगी।

निवेश सलाहकार फर्म डिलाइट साउथ एशिया के सीईओ रोमल शेट्टी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इस समय मुद्रास्फीति नियंत्रण में है, ग्रामीण मांग और उपभोग में तेजी आई है, वाहनों की बिक्री में सुधार हो रहा है, वैश्विक परिदृश्य निराशाजनक बना हुआ है, परंतु भारत में वर्तमान वित्त वर्ष में 07 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की उम्मीद है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शशिकांत दास ने हाल ही में अपने एक वक्तव्य में कहा कि देश की समृद्धि का परिदृश्य इस समय बृहद आर्थिक बुनियाद की मजबूती को दर्शाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था अब कोरोना महामारी से उत्पन्न गंभीर आर्थिक संकट से पूरी तरह से उभर गई है। निजी उपभोग और निवेश की इसमें प्रमुख भूमिका है।

सकल घरेलू उत्पाद में 7.5 प्रतिशत से अधिक की गति से बढ़ने की पूरी क्षमता है। भारतीय अर्थव्यवस्था की राजकोषीय स्थिति काफी मजबूत है। मध्यम अवधि में सरकारी ऋण के स्तर में कमी आ रही है। कंपनियों के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ है, उनके लाभ में वृद्धि हुई है और ऋण में कमी आई है। बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं की स्थिति भी काफी मजबूत है। मुद्रास्फ़ीत की स्थिति में भी काफी सुधार हुआ है, यह अप्रैल 2022 के 7.8 प्रतिशत से कम होकर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा (4 से 6 प्रतिशत) के भीतर है। 2024-25 में मुद्रास्फ़ीति की दर लगभग 4.5 प्रतिशत रही और 2025-26 में भी 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 689 अरब डॉलर से ऊपर हो गया है।

विनिर्माण क्षेत्र पर फोकस

पिछले 10 वर्षों में सरकार के प्रयासों से इलेक्ट्रॉनिक्स फार्मा जैसे कई उभरते हुए क्षेत्र में भारत और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का की महत्वपूर्ण कड़ी बनने की ओर अग्रसर है। सरकार के मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम, एक जिला एक उत्पाद, कौशल विकास जैसी अनेकों योजनाओं और कार्यक्रमों से औद्योगिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। सरकार द्वारा लगातार बड़े निवेशों के चलते आधारिक संरचना मजबूत हुई है।

भविष्य में आधारिक संरचना तथा विनिर्माण क्षेत्र में और बड़े पैमाने पर निवेश की संभावना है। विनिर्माण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश को आकर्षित करने के लिए आधारिक संरचना का विस्तार और मजबूत होना आवश्यक है। स्मार्ट सिटी मिशन, औद्योगिक गलियारा विकास, राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली और एक जिला एक उत्पाद जैसी योजनाएं भी इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण हैं। अभी हाल ही में सरकार ने आर्थिक समृद्धि को तेज करने और भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत फैसला लिया है।

इससे विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन तो बढ़ेगा ही, रोजगार और निर्यात में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी। सकल घरेलू उत्पादन में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा लगभग 15 प्रतिशत है, जिसे बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 25 प्रतिशत तक ले आने का लक्ष्य है। सरकार जानती है कि देश के निर्यात को बढ़ाने के लिए विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन को तेजी से बढ़ाना, उसके लिए आधारिक संरचना को मजबूत करना, लॉजिस्टिक सम्बन्धी दिक्कतों को दूर करना, एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला बनाना, उत्पादन लागत में कमी करना आवश्यक है।

पिछले बजट में सरकार ने आधारिक संरचना के लिए 11.11 ट्रिलियन रुपए आवंटित किए, जो कि देश के कुल जीडीपी का 3.4 प्रतिशत है। राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (एनआईसीडीपी) के अंतर्गत 12 नए औद्योगिक शहर बनाए जाने की योजना काफी महत्वपूर्ण है। इस पर केंद्र सरकार ने 28,600 करोड़ से अधिक निवेश की मंजूरी दी है, जो कि देश के औद्योगिक आधारिक संरचना को मजबूत करेगा। इससे देश में 40 लाख से अधिक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होगा और डेढ़ लाख करोड़ रुपए से भी अधिक का निवेश आकर्षित होगा।
विनिर्माण क्षेत्र में भारत को वैश्विक उत्पादन केंद्र बनाने की दृष्टि से यह योजना बेहद महत्वाकांक्षी और महत्त्वपूर्ण है। इससे निवेशकों को भारत में बड़े पैमाने पर निवेश करने का परिवेश मिलेगा और भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने में मदद मिलेगी। इससे देश में लॉजिस्टिक लागत को कम करने और परिवहन सुविधाओं को बढ़ाने में मदद मिलेगी, वस्तुओं की उत्पादन लागत में कमी आयेगी, भारतीय उत्पाद वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी होंगे, निर्यात बढ़ेगा। वर्तमान में 4,400 से अधिक औद्योगिक पार्क या क्षेत्र हैं, परंतु राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम एक व्यापक दृष्टि के साथ सामने आया है, जो कि देश में विनिर्माण क्षेत्र के लिए आधारिक संरचना को मजबूत करने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।

उपभोग प्रवृत्ति में बदलाव: भोजन पर घरेलू व्यय में कमी

देश में उपभोग की प्रवृत्ति में व्यापक परिवर्तन हो रहा है। अभी प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि भारतवर्ष में भोजन पर औसत घरेलू व्यय में कमी आ रही है। यह अर्थव्यवस्था और देश की बड़ी जनसंख्या के जीवन शैली में हो रहे परिवर्तनों का सूचक है। सर्वेक्षण में घरेलू उपभोग में खानपान, कपड़ा, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी 350 श्रेणियों में होने वाले व्यय को सम्मिलित किया जाता है। परिवारों के व्यय में होने वाला यह परिवर्तन भारत में गरीबी की स्थिति में होने वाले परिवर्तन को भी रेखांकित करता है।

भारत में शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति उपभोग में 146 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र के उपभोग में 164 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार भारतीयों के कुल व्यय में भोजन पर होने वाले घरेलू व्यय का हिस्सा 50 प्रतिशत से भी कम हो गया है। महत्वपूर्ण यह है कि समाज के आर्थिक रूप से सबसे नीचे के 20 प्रतिशत के लोगों के उपभोग व्यय की प्रवृत्ति में यह परिवर्तन देखने को मिला है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसी योजनाओं के कारण लोगों के अनाज पर होने वाले व्यय में काफी कमी आई है और इस हिस्से को लोग अन्य मदों में व्यय कर रहे हैं। लोगों के भोजन में अब डेयरी उत्पाद, फल, सब्जियां व अन्य पोषक तत्व की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ रही है।

जब व्यक्ति की आय कम होती है, तो आय का बहुत अधिक हिस्सा खाद्य पदार्थों पर व्यय हो जाता है, लेकिन आय बढ़ने के साथ-साथ खाद्य पदार्थों पर होने वाले व्यय में कमी आती जाती है। जब एक बड़े वर्ग की आय कम रहती है, अर्थव्यवस्था में बाज़ार का आकार काफी सिकुड़ा होता है, विनिर्मित वस्तुओं के लिए मांग कम रहती है, औद्योगीकरण को गति नहीं मिल पाती। अब जबकि निचले आय वर्ग के लोग भी अपनी आय का 50 से अधिक व्यय अनाजों या कृषि भोज्य पदार्थों के इतर वस्तुओं पर कर रहे हैं, तो यह गरीबी में कमी और लोगों के जीवन स्तर में सुधार का संकेत है। एक तो भारतीय परिवारों की औसत आय पिछले कुछ दशकों से बढ़ी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, साथ ही मनोरंजन जैसे मद पर पहले की अपेक्षा औसत व्यय बढ़ा है।

1991 के बाद अर्थव्यवस्था में जो बदलाव हुआ है, औद्योगीकरण और शहरीकरण में वृद्धि हुई है, तकनीकी का जिस तरह से प्रचार और प्रसार हुआ है, उसका भी असर लोगों की आय और उपभोग पर दिख रहा है। पुरुषों और महिलओं दोनों के रोजगार में आने की प्रवृत्ति बढ़ने से प्रसंस्कृत और डिब्बा बंद भोजन की भी हिस्सेदारी बढ़ी है, विशेषकर शहरों में, हालांकि पोषण और स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ठीक नहीं है। लोगों की आय में वृद्धि हो रही है, अनाजों पर व्यय कम हो रहा है और भोजन में विविधता आ रही है।

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो यह एक सकारात्मक संरचनात्मक परिवर्तन है। यह लोक कल्याण, खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य तीनों के लिहाज से महत्वपूर्ण है, जिसको तेज करने के लिए प्रयास होने चाहिए, लेकिन इसका वास्तविक लाभ अर्थव्यवस्था को तब होगा, जब समाज के सबसे निचले वर्ग की आय में तेजी से वृद्धि होगी। परिवारों के उपभोग व्यय की प्रवृत्ति में होने वाला यह परिवर्तन, भारत की कृषि नीति और पोषण नीति में परिवर्तन की ओर भी संकेत करता है।

अब कृषि संबंधी नीतियों की दिशा फसल विविधिकरण को और प्रोत्साहन देने की ओर होनी चाहिए। बागवानी और पशुपालन जैसे क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाया जा सकता है, यह टिकाऊ और संपोषित विकास का भी मार्ग सुनिश्चित करेगा, यह कृषि क्षेत्र में लोगों की आय बढ़ाने की दृष्टि से भी अहम है।

वित्तीय परिसम्पत्तियों में बढ़ता निवेश

अब लोग, विषेकर युवा, प्रॉपर्टी और सोना जैसे पारंपरिक भौतिक परिसम्पतियों और बैंक जमाओं में निवेश की जगह वित्तीय परिसंपत्तियां, विशेष रूप से शेयर बाजार और म्युचुअल फंड में पैसा लगा रहे हैं। म्युचुअल फंड में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी), एकमुश्त निवेश और नए फंड ऑफर के माध्यम से लगातार पैसा आ रहा है। शेयर बाजार में घरेलू निवेशक लगातार निवेश कर रहे हैं। वैश्विक अनिश्चितताओं और उथल-पुथल के बीच भारतीय शेयर बाजार और म्युचुअल फंड में घरेलू प्रवाह लगातार मजबूत बना हुआ है। हाल के महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में भी तेजी से वृद्धि हुई है।

भारत में म्यूचुअल फंड उद्योग की परिसम्पत्ति (एयूएम) 2024 में बढ़कर 66.7 लाख करोड़ रुपये हो गई और इस वर्ष जल्दी ही 05 करोड़ निवशकों का आंकड़ा पार कर जायेगा। आगे शेयर बाजार में निरंतर उछाल और नए म्यूच्युअल फंड ऑफरिंग (एनएफओ) में उछाल के कारण शानदार वृद्धि की उम्मीद है। उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार, 2030 तक निवेशकों की संख्या 10 करोड़ तक पहुंच सकती है, जिससे म्यूचुअल फंड उद्योग की परिसम्पत्ति बढ़कर एयूएम 100 ट्रिलियन रुपये हो जाएगी। बाजार का लचीलापन, मजबूत खुदरा भागीदारी, अनुकूल बाजार स्थितियों और विविध निवेश रणनीतियों के कारण म्युचुअल फंड में निवेश में वृद्धि हो रही है।

अब भारत के छोटे शहरों के निवेशक पहले से कहीं ज़्यादा म्यूचुअल फंड में निवेश कर रहे हैं और पिछले चार वर्षों में छोटे शहरों में ऐसे निवेशकों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पिछले 04 वर्षों में शेयर बाजार में उत्तर भारत के निवेशकों की संख्या चार गुना ज्यादा बढ़ गई है, उत्तर भारत में वित्त वर्ष 2020 में शेयर बाजार में कुल 88.4 लाख लोगों ने निवेश किया, जबकि जुलाई 2024 तक इनकी संख्या बढ़कर 3.57 करोड़ हो गई। पश्चिम भारत के निवेशकों की संख्या इस बीच 1.008 करोड़ से बढ़कर 3.5 करोड़ हो गई, जबकि दक्षिण भारतीय निवेशकों की संख्या 75 लाख से बढ़कर 1.89 करोड़ पहुंच गई है।

पूर्वी भारत में इस समय 1.019 करोड़ निवेशक हैं। कोरोना काल के बाद शेयर बाजार में निवेशकों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है। हाल ही में सेंट्रल इंस्टीट्यूशन रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 10 करोड़ रुपए से अधिक कमाने वालों की संख्या पिछले 5 वर्षों में 63 प्रतिशत, 5 करोड़ से ज्यादा कमाने वालों की संख्या 50 प्रतिशत, 50 लाख से ज्यादा कमाने वालों की संख्या इस दौरान 25 प्रतिशत बढ़ी है। भारत में मात्र 15 प्रतिशत वित्तीय संपत्ति का ही प्रबंधन पेशेवर लोग करते हैं, जबकि विकसित देशों में 75 प्रतिशत वित्तीय संपत्ति का प्रबंधन पेशेवरों द्वारा किया जाता है। हालांकि शेयर बाजार में तेजी का नेतृत्व घरेलू निवेशकों ने किया है, लेकिन इक्विटी में घरेलू भागीदारी अभी भी 5-6 प्रतिशत है, जो अन्य उभरते बाजारों की तुलना में काफी कम है।

स्पष्ट है कि अभी घरेलू निवेशकों के निवेश में वृद्धि के लिए पर्याप्त जगह है। भारत में आय में वृद्धि मजबूत बनी हुई है, हालांकि यह अभी कुछ खास क्षेत्रों तक ही सीमित है। आगे भारत में आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव से बुनियादी ढांचे और निर्माण जैसे क्षेत्रों में वृद्धि को बढ़ावा मिलने की आशा है, जिससे आय में सुधार होगा। इसलिए आने वाले महीनों में विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजार में भारी निवेश की सम्भावना ने इंकार नहीं किया जा सकता है। इस वर्ष अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में लगभग 10 अरब डॉलर का निवेश किया है। भारत भाग्यशाली है कि यहां घरेलू उपभोक्ताओं का एक बड़ा आधार है, जोकि एक हद तक वैश्विक मांग में कमी से अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान से बचा लेता है।

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इसीलिए निर्यात में थोड़ी बहुत कमी आने के बाद भी भारत में आर्थिक समृद्धि दर में अधिक कमी नहीं आई है और शेयर बाजार उछाल पर है। परंतु भारत में विनिर्माण के निर्यात में हाल के वर्षों में कमी आई है, जबकि सेवा निर्यात बेहतर स्थिति में है। यदि भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि की दर को आगे तेज करना है, तो वैश्विक मांग और निवेश दोनों पर ध्यान देना होगा और अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए नए तरीके ईजाद करने होंगे।

डॉ.उमेश प्रताप सिंह

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