बढ़ता धर्मांतरण का खतरा और कानून की आस

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अपने-अपने धर्म, मजहब, संप्रदाय को लेकर आस्था, आसक्ति का होना जायज है। सभ्य समाज में ऐसा कतई नहीं सोचा जाता कि जिनकी आस्था दूसरे धर्म या संप्रदाय में है, उसका धर्मांतरण करा लिया जाए, पर ऐसी शिकायतें हालिया समय में देश में तेजी से बढ़ी हैं। देश में कई धर्मों के लोग निवास करते हैं। सारे धर्मों की अपनी-अपनी परंपरा है। इसका पालन कर उसके अनुयायी एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करते हैं, पर हालिया कई दशकों से देखा जा रहा है कि किसी खास धर्म के द्वारा किसी व्यक्ति या सैकड़ों लोगों का धर्मांतरण किया गया है। इससे डेमोग्राफी में भी बदलाव की खबरें आने लगी हैं। ऐसी खबरें क्षेत्र विशेष की नहीं हैं, उत्तर-पूर्वी राज्यों से लेकर कश्मीर तथा दक्षिणी राज्यों तक ऐसी सूचनाएं लगातार सामने आ रही हैं। लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे किस्से खूब सुनने को मिल रहे। यहां तक कि मोबाइल गेम के जरिए भी धर्म परिवर्तन का कारोबार शुरु हुआ है, जो कई चिंताएं व सवाल खड़े करने लगा है। ऐसे में देश में लगातार मांग उठ रही है कि केंद्र की ओर से ठोस पहल हो। कानून लाकर धर्मांतरण जैसे मर्ज का इलाज हो। एक मिनट को मान भी लें कि कोई अपने धर्म को छोड़ दूसरे धर्मों के अनुसार जीना चाहता है, तो वहां तक धर्मांतरण स्वीकार भी समझा जा सकता है। किसी खास धर्म के व्यक्ति को अगर कोई धर्म बेहतर लग रहा हो, तो वह उस धर्म को अपना सकता है। इसके लिए देश का संविधान भी उसे यह अधिकार देता है, लेकिन जब बात यहां जबरन धर्मांतरण की आती है तो कई बड़े सवाल खड़े होते हैं।

देश में अब तेजी से जबरन धर्मांतरण का मुद्दा खूब सामने आ रहा है। अब धर्म के ठेकेदार बने बैठे लोग जबरन धर्म परिवर्तन कराने के लिए मोबाइल गेम का सहारा भी ले रहे हैं। गेम के जरिए इन्हें इस्लाम धर्म की शिक्षा दी जाती है। इसमें तीन चरणों की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। पहले चरण में एप पर गेम जीतने के लिए कुरान की आयत पढ़ने के लिए उकसाते हैं। जो बच्चे आयत पढ़ने के बाद गेम में जीत जाता है, उसे इस्लाम के प्रति विश्वास करने के लिए प्रेरित करते हैं। तीसरे चरण में डिस्कॉर्ड चैटिंग एप किशोरों का ग्रुप बनाकर उसमें इस्लाम से जुड़ी जाकिर नाईक की या दूसरों की वीडियो देकर नमाज पढ़वाते हैं। ऐसे तरीकों को देखें तो कई लोगों को आशंका लग रही कि कुछ सालों के अंदर इस देश में धर्मों के आंकड़ों में काफी ज्यादा परिवर्तन देखने को मिलेगा। जबरन धर्मांतरण के ज्यादातर मामले आदिवासी इलाकों में देखने को मिलते हैं। यहां इन लोगों को लालच देकर भ्रम में रखा जाता है। जिस धर्म में उनका धर्मांतरण करवाना है, उस धर्म से जुड़े रीति-रिवाज उन्हें धोखे में रखकर करवाए जाते हैं या फिर किसी खास धर्म की विशेषता बताकर उसे धोखे में रखकर ऐसा किया जाता है। गरीबी को भी एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर यह सब करवाया जाता है। स्थिति ऐसी हो जाती है कि कुछ समय बाद इनका नाम पुराने नाम से नए धर्म के नाम में परिवर्तित हो गया होता है। इसके अलावा जबरन धर्मांतरण कराने के लिए बैठे लोग कई तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं।

धर्मांतरण को लेकर कोई कानून नहीं

सवाल यह उठता है कि इस देश में जबरन धर्मांतरण पर सरकार क्या कर रही है। क्या कोई कानून नहीं है, जिससे इसे रोका जाए। इस देश के अंदर जबरन धर्मांतरण को लेकर कोई कानून फिलहाल तो नहीं है लेकिन देश के कई ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने इसे रोकने के लिए अपने स्तर पर कानून बनाए हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक और हरियाणा शामिल हैं। जबरन धर्मांतरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है। यहां तक उसने एक सख्त टिप्पणी भी कि है कि अगर जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो देशभर में बेहद ही विकट परिस्थितियां सामने आ सकती हैं। जबरन धर्मांतरण न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है, बल्कि देश के सुरक्षा के लिए भी खतरा है। फिलहाल इस पर कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से अभी तक कोई कानून बनाने की बात सामने नहीं आई है जो कि पूरे भारत में लागू हो। फिलहाल केंद्र की तरफ से इसे राज्य के विषय पर थोपा गया है। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय में धर्म परिवर्तन के विषय पर याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। चर्चित वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने एक महत्वपूर्ण याचिका इस विषय पर डाल रखी है। याचिका में छल या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकारों से सख्त कदम उठाने की मांग की गई है। इस वर्ष जनवरी माह में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय के इशारे पर उनके हस्तक्षेप को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। इससे कुछ समय पहले कोर्ट ने बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए केंद्र से इस गंभीर मुद्दे पर कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए थे।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि से फरवरी के पहले सप्ताह के आखिर तक इस संबंध में सुझाव देने का अनुरोध करते हुए मामले का नाम बदलकर स्वतः संज्ञान लेने पर सहमति जताई थी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी से कहा था कि वे चाहते हैं कि अगर बलपूर्वक या फिर लालच से धर्म परिवर्तन हो रहे हैं, तो इस बात का पता लगाया जाए और अगर ऐसा हो रहा है तो हमें आगे क्या करना चाहिए। इसमें सुधार के लिए किया किया जा सकता है। अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका का तमिलनाडु सरकार ने विरोध किया था। उन्होंने याचिका को राजनीति से प्रेरित करार दिया। याचिका तमिलनाडु में पिछले साल (2022) की शुरुआत में एक कथित घटना के संदर्भ में दायर की गई थी, जहां एक 17 वर्षीय तंजावुर लड़की ने अपने माता-पिता के आरोप के बाद आत्महत्या कर ली थी कि उसे स्कूल द्वारा धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी चिंता जाहिर करते कहा था कि उन्हें पूरे देश की चिंता है। मामले में राजनीति लाकर अदालत की कार्यवाही को अलग दिशा की तरफ मोड़ने की कोशिश न करें। यह कहकर कि अदालत एक राज्य के खिलाफ निशाना साध रही है। इसका राजनीतिकरण न करें। अगर आपके राज्य में जबरन धर्मांतरण नहीं हो रहा है, तो अच्छा है। यह बहुत गंभीर मामला और हमें अटॉर्नी जनरल की सहायता की आवश्यकता है। अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जिसमें छल या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकारों से सख्त कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की गई थी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बलपूर्वक धर्म परिवर्तन को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए केंद्र से इस गंभीर मुद्दे पर कड़े कदम उठाने के निर्देश दिए थे।

थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है

किसी नागरिक द्वारा अपने धर्म को छोड़कर किसी नए धर्म को अपनाना धर्मांतरण कहलाता है। यह स्वेच्छा और जबरन, दोनों तरीकों से हो सकता हैं। भारतीय कानून के मुताबिक अपनी स्वेच्छा से धर्मांतरण कोई अपराध नहीं है। भारत के संविधान में धर्मांतरण को लेकर कोई स्पष्ट अनुच्छेद नहीं है, लेकिन अनुच्छेद 25 से लेकर 28 के बीच धार्मिक स्वतंत्रता का जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 25 में बताया गया है कि स्वेच्छा से भारत के हर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने, पालन करने और धर्म का प्रचार-प्रसार करने की आजादी है। हालांकि, धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मांतरण में अंतर है, इसलिए संविधान के यह प्रावधान यहां लागू नहीं होते हैं। जबरन, धोखे से अथवा लालच देकर धर्म परिवर्तन कराना कई राज्यों में आपराधिक श्रेणी में आता है। इसे देखते कई राज्यों ने समय-समय पर अपने यहां इसे रोकने संबंधी कानून भी बना रखे हैं। हालांकि, इनमें शामिल एक राज्य कर्नाटक में हाल में कांग्रेस सरकार आई है। उसने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा लाए गए कानून को निरस्त करने का कदम उठाया है। आजादी के पहले अंग्रेजों ने धर्मांतरण को लेकर कोई कानून नहीं बनाया था। हालांकि, कहा जाता है कि कुछ रियासतों ने इस पर नियम-कानून बनाए थे। इसमें उल्लेखनीय तौर पर रायगढ़ स्टेट कन्वर्जन एक्ट (1936), पटना फ्रीडम ऑफ रीलिजन एक्ट (1942), उदयपुर स्टेट एंटी कन्वर्जन एक्ट जैसे कुछ कानूनों को देखा जा सकता है। 1947 में देश की आजादी के बाद धर्म परिवर्तन विरोधी कानून पारित करने के लिए कई बार संसद में बहस हुई। हालांकि, इस पर कोई एकमत राय नहीं बनी। न कभी कोई बिल पास हो पाया। ऐसे में केंद्रीय स्तर पर फिलहाल कोई ऐसा कानून नहीं है, जिससे जबरन और लालच देकर हो रहे धर्मांतरण पर नकेल कसी जाए। वैसे पिछले एक-दो दशकों के अंदर कई राज्यों ने अपने यहां जबरदस्ती, फ्रॉड अथवा लालच देकर किए जाने धर्मांतरण रोक लगाने के लिए कानून बनाए हैं।

उत्तर प्रदेश में 27 नवंबर 2020 को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून लागू किया गया था। कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को अपराध की गंभीरता के आधार पर 10 साल तक की जेल हो सकती है, साथ ही 15 से 50 हजार रुपए तक का जुर्माने का प्रावधान भी है। अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को शादी से दो महीने पहले जिला मजिस्ट्रेट को प्रस्तावित शादी के बारे में सूचना देनी आवश्यक है। इस कानून के तहत एससी-एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर भी 3-10 साल की सजा का प्रावधान है, जबकि जबरन सामूहिक धर्मांतरण के लिए 3-10 साल की जेल और 50 हजार का जुर्माना रखा गया है। कानून के मुताबिक अगर विवाह का एकमात्र उद्देश्य महिला का धर्म परिवर्तन कराना सिद्ध हुआ, तो ऐसी शादियों को अवैध करार दिया जाएगा। जबरन धर्मांतरण कराने वालों को उत्तराखण्ड में अब और सख्त सजा दी जाएगी। इसके लिए 2018 के कानून को और सख्त कर दिया गया है। अब इस नए कानून के तहत, जबरन धर्मांतरण कराने वाले दोषी को 10 साल की जेल और 50 हजार रुपए के जुर्माने की सजा होगी, साथ ही पीड़ित को भी मुआवजा देना होगा। देश में सबसे पहले धर्मांतरण पर ओडिशा राज्य में ही कानून बनाए जाने की सूचना है। धर्मांतरण कानून साल 1967 में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम लागू किया गया। इस कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर एक साल तक की जेल और 5,000 रुपए तक का जुर्माना तय किया गया था। इस कानून के तहत एससी-एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर दो साल की सजा और 10,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। साल 1968 में धर्म परिवर्तन पर कानून बनाने वाला ओडिशा के बाद मध्य प्रदेश देश का दूसरा राज्य बना। यहां कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर एक साल तक की जेल और 5,000 रुपए तक का जुर्माना तय किया गया था। इस कानून के तहत एससी-एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर दो साल की सजा और 10,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। इस कानून में संशोधन भी किया गया है।

साल 2020 के दिसंबर में शिवराज सिंह कैबिनेट ने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2020 को मंजूरी दी थी। इस विधेयक में शादी या धोखाधड़ी से कराया गया धर्मांतरण अपराध माना जाएगा, जिसके लिए अधिकतम 10 वर्ष की कैद और एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीगढ़ ने मध्यप्रदेश में बने कानून को ही अपनाया। साल 2006 में इसे संशोधित भी किया। धर्मांतरण से पहले जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेने की अनिवार्यता की गई। साल 1978 में स्थानीय जनजातियों को प्रलोभन देकर कराए जाने वाले धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए अरूणाचल प्रदेश में यह कानून बनाया है। इस कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर दो साल की सजा और 10,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। साल 2003 में गुजरात पहला राज्य बना था, जिसने धर्म परिवर्तन को कानूनी मान्यता देने के लिए धर्मांतरण से पहले जिला प्रशासन की मंजूरी अनिवार्य की थी। इस कानून में अप्रैल 2021 में संशोधन किए गए थे, जिसे गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलीजन (अमेंडमेंट) एक्ट 2021 नाम दिया गया था। यह कानून 15 जून 2021 से लागू हुआ। इसके तहत किसी दूसरे धर्म की लड़की को बहला-फुसलाकर, धोखा देकर या लालच देकर शादी करने के बाद उसका धर्म परिवर्तन करवाने पर 05 साल की कैद और 02 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है। अगर लड़की नाबालिग है तो 07 साल की कैद और 03 लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है। साल 2006 में हिमाचल प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून बना, जिसका साल 2019 में संशोधन किया गया। इसके तहत बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी अन्य कपटपूर्ण तरीके से या शादी से और उससे जुड़े मामलों के लिये एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है। साल 2022 के अगस्त में ‘द फ्रीडम ऑफ रिलिजन (संशोधित)’ बिल पारित किया गया जिसमें सजा को और भी सख्त कर दिया गया। हिमाचल में अब सामूहिक धर्मांतरण पर 10 साल की जेल और 02 लाख रुपए का जुर्माने का प्रावधान है।

झारखण्ड में फैला है धर्मांतरण का जाल

साल 2017 में झारखण्ड में भाजपा की सरकार थी। रघुवर दास मुख्यमंत्री थे। उस समय धर्मांतरण विरोधी कानून बना। इसके तहत जबरन धर्मांतरण को गैर-कानूनी बताया गया है, साथ ही 03 साल तक की जेल या 50 हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों से दंडनीय किया जा सकता है। अपराध नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के प्रति किया गया है तो जेल की सजा 04 साल और जुर्माना 01 लाख रुपए तक होगा। 30 सितंबर 2022 को अधिसूचित किए गए कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण अधिनियम-2022 को लागू किया गया है। यह एक्ट भाजपा सरकार में इस राज्य में बना। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, लुभाने या किसी कपटपूर्ण तरीके से या शादी करके किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा। अगर ऐसा होता है, तो उसे अपराध माना जाएगा। इस कानून का उल्लंघन करने वालों को 3-5 साल की जेल और 25,000 रुपए तक का जुर्माना है। नाबालिग, महिलाओं और एससी और एसटी समुदायों के व्यक्तियों का धर्म परिवर्तित कराने वाले लोगों को 3-10 साल की जेल की सजा और 50,000 रुपए के जुर्माने की सजा का नियम है। हालांकि, अब इस राज्य में इस कानून को शिथिल करने या समाप्त ही कर दिए जाने की पहल कांग्रेस सरकार में पिछले दिनों हो चुकी है।

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मालूम हो कि साल 2020 के फरवरी महीने में दक्षिण के कई राज्यों में धर्मांतरण के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका में अपील की गई थी कि कोर्ट धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र सरकार को कानून बनाने के लिए कहे। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। उसका कहना था कि कानून बनाना संसद का काम है, कोर्ट का नहीं। बीते कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार ने धर्मांतरण पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वह धर्मांतरण के खिलाफ नहीं हैं। जबरन धर्मांतरण के खिलाफ हैं। पीठ ने केंद्र और राज्यों से जबरन धर्मांतरण को लेकर पूरा विस्तृत हलफनामा दायर करने को कहा था। झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और सांसद दीपक प्रकाश समेत कई नेता झारखण्ड में धर्मांतरण के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जाहिर करते रहे हैं। वे कह चुके हैं कि हेमंत सोरेन सरकार के सुस्त रवैये, उदासीनता के चलते राज्य में धर्मांतरण गंभीर समस्या का विषय बन चुका है। इसके चलते खासकर संतालपरगना के इलाकों में जनजाति समाज का अस्तित्व ही दांव पर है। बांग्लादेश से और पश्चिम बंगाल के रास्तों से अवैध तरीकों से घुसपैठ करने वाले मुस्लिम देवघर, पाकुड़, गोड्डा जैसे जिलों में धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं। स्थानीय प्रशासन, पुलिस को सब पता है, पर वह हाथ पर हाथ धरे रखे बैठी है। यह दिखाता है कि हेमंत सरकार राज्य में तुष्टिकरण की राजनीति को लगातार बढ़ावा दे रही है।

अमित झा