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सिद्ध एवं बुधादित्य योग में करें अनंत गुण शालिनी देवी मां सरस्वती की वंदना, जानें इस पर्व का इतिहास

नई दिल्लीः माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन को सरस्वती और लक्ष्मी देवी का जन्म दिवस भी माना जाता है। इसीलिए पंचमी को वसंत पंचमी भी कहा जाता है। क्योंकि वसंत पंचमी के दिन से ही वसंत ऋतु का आगमन होता है, जो सभी ऋतुओं का राजा होता है। सनातन धर्म में वसंत पंचमी मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं। वसंत ऋतु और वसंत पंचमी का महत्व भी अलग है।

वसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त
पंचांगों के अनुसार पंचमी तिथि 5 फरवरी को तड़के 3.47 पर लग जायेगी। जो 6 फरवरी को तड़के 3.46 बजे तक रहेगी। पर्व पर सिद्ध योग 4 फरवरी को शाम 7.08 बजे से 5 फरवरी शाम 5.40 बजे तक रहेगा। साध्य योग 5.40 से अगले दिन 6 फरवरी को सायं 4.52 तक रहेगा। रवि योग सायं 4.09 बजे से प्रारंभ होगा। अर्थात् सूर्यास्त से पूर्व तीन योगों का खास संयोग बन रहा है। वसंत पंचमी पर्व सिद्ध एवं बुधादित्य योग में मनाई जाएगी। इस दिन सिद्ध योग सुबह से लेकर शाम 5.42 बजे तक है। मकर राशि में बुध और सूर्य मिलकर बुधादित्य योग का निर्माण कर रहे हैं। नवग्रह चार राशियों में मौजूद होकर केदार शुभ योग बना रहे हैं।

वसंत पंचमी का इतिहास
माघ माह की शुक्ल पंचमी के दिन कामदेव मदन का जन्म हुआ था। लोगों का दांपत्य जीवन सुखमय हो इसके लिए लोग रति मदन की पूजा और प्रार्थना करते हैं। देवी सरस्वती का जन्म वसंत पंचमी को हुआ था। इसलिए उस दिन उनकी पूजा की जाती है और इस दिन को लक्ष्मी का जन्मदिन भी माना जाता है। इसलिए इस तिथि को श्री पंचमी भी कहा जाता है। इस दिन सुबह अभ्यंग स्नान किया जाता है और पूजा की जाती है। वसंत पंचमी पर वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा और प्रार्थना का बहुत महत्व है। ब्राह्मण शास्त्रों के अनुसार, वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और सभी देवताओं की प्रतिनिधि हैं। वह विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी देवी सरस्वती की पूजा और आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। इस दिन को देवी के रहस्योद्घाटन का दिन माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती का आह्वान कर कलश की स्थापना की जाती है और उसकी पूजा की जाती है। जब ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्मा ने जीवों और मनुष्यों की रचना की। और जब उन्होंने सृजित सृष्टि को देखा, तो उन्होंने महसूस किया कि यह निस्तेज है। वातावरण बहुत शांत था तथा उसमें कोई आवाज या वाणी नहीं थी। उस समय, भगवान विष्णु के आदेश पर, ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। धरती पर गिरे जल ने पृथ्वी को कम्पित कर दिया तथा एक चतुर्भुज सुंदर स्त्री एक अद्भुत शक्ति के रूप में प्रकट हुई। उस देवी के एक हाथ में वीणा दूसरे हाथ में मुद्रा तथा अन्य दो हाथों में पुस्तक व माला थी। भगवान ने महिला से वीणा बजाने का आग्रह किया। वीणा की धुन के कारण पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों, मनुष्यों को वाणी प्राप्त हुई। उस क्षण के बाद, देवी को सरस्वती कहा गया। देवी सरस्वती ने वाणी सहित सभी आत्माओं को ज्ञान और बुद्धि प्रदान की। ऐसा माना जाता है कि इस पंचमी को सरस्वती की जयंती के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यह घटना माघ महीने की पंचमी को हुई थी। इस देवी के वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादिनी और वाग्देवी जैसे अनेक नाम हैं। संगीत की उत्पत्ति के कारण, उन्हें संगीत की देवी के रूप में भी पूजा जाता है।

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नए कार्य के लिए शुभ दिन
वसंत पंचमी का दिन सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। पुराणों में भी वसंत पंचमी को मुख्य रूप से नई शिक्षा और गृह प्रवेश के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। वसंत पंचमी को शुभ मानने के अनेक कारण हैं। यह त्योहार आमतौर पर माघ महीने में आता है। माघ मास का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। इस महीने तीर्थ क्षेत्र में स्नान का विशेष महत्व माना गया है। उन्होंने बताया कि इस दिन का उद्देश्य, सृष्टि में नव चेतना और नव निर्माण के कारण हुए आनंद को व्यक्त करना और आनंदित होना है। वसंत पंचमी का कृषि संस्कृति से संबंध है, ऐसा ध्यान में आता है। इस दिन नवान्न इष्टी यह एक छोटा यज्ञ किया जाता है। इस दिन खेतों में उगाई गई नई फसल को घर में लाया जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है। कुंभ मेले के अवसर पर वसंत पंचमी का दिन खास माना जाता है। इस दिन कुंभ मेले में शाही स्नान होता है।

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