Sunday, January 19, 2025
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Independence Special: बंगाल के तारा पद ने भर दिया था इतना खौफ, अंग्रेजों ने बंद कर दिया था अनाज छीनना

Independence Special: कोलकाताः

लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा

मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा,

मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है मेरा तुमसे

कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा

ये पंक्तियां देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले 7 लाख 32 हजार क्रांतिकारियों के देश के प्रति जज्बे को बयां करती हैं। कुछ क्रांतिकारियों को पूरा देश बड़े गर्व के साथ याद करता है, लेकिन कई ऐसे गुमनाम लोग भी थे, जो मां भारती की महानता की नींव में खुद को अंधेरे और गुमनामी की चादर ओढ़कर सो गए। आज उसी नींव पर विश्व पटल पर महान भारत का दर्जा कायम है। ऐसे ही एक सपूत थे पश्चिम बंगाल के तारा पद गुइन।

जबरन अनाज छीनकर अत्याचार करते थे अंग्रेज

1942-43 के दौरान जब पूरे देश में अकाल पड़ा हुआ था, तब द्वितीय विश्व युद्ध का सामना कर रही ब्रिटिश सेना भारत से किसानों की मेहनत से उगाए गए अनाज को लूटकर विदेश ले जा रही थी। इधर, देशवासी भूख से मरने लगे थे। जो मुट्ठी भर अनाज उगाते थे, उसे जबरन छीनने के लिए अंग्रेज उन पर बर्बर अत्याचार करते थे और अनाज को ट्रेनों के जरिए विदेश भेज देते थे अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता और क्रूरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि निहत्थे क्रांतिकारियों पर गोलियां चलाई गईं और तारा पद के शरीर का एक-एक कतरा गोलियों से छलनी हो गया। उन्होंने मातृभूमि के चरणों में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए लेकिन ट्रेन को रवाना नहीं होने दिया।

उनके साथ सैकड़ों क्रांतिकारी घायल हुए, जो बाद में अंग्रेजों के ताबूत में आखिरी कील बन गए। इस हिंसक क्रांति का खौफ अंग्रेजी हुकूमत में इतना फैल गया कि उसके बाद बोलपुर स्टेशन से भारत का एक दाना भी विदेश नहीं भेजा गया। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में तारा पद इतने गुमनाम हैं कि उनकी एक भी तस्वीर उपलब्ध नहीं है। बोलपुर में एक सड़क का नाम उनके नाम पर है, यह जीर्ण-शीर्ण तस्वीर उसी सड़क की है। भारत सरकार ने बाद में इन क्रांतिकारियों की याद में 2006 में बोलपुर स्टेशन परिसर में एक स्मारक बनवाया, जिसका अनावरण तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने किया था।

भारतीय रेलवे ने इन क्रांतिकारियों के नाम पर हूल एक्सप्रेस शुरू की है, जो हावड़ा स्टेशन से शुरू होकर बीरभूम के सिउरी तक जाती है, जो क्रांतिकारियों का गढ़ था। इतिहासकार नागेंद्र सिन्हा अपनी पुस्तक अगस्त क्रांति के बलिदानियों में लिखते हैं कि तारापद इतिहास में गुमनाम रह गए और शायद इसीलिए यह पता नहीं चल पाया कि उनका जन्म कब और किस वर्ष हुआ था। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के अंतर्गत बोलपुर में हुआ था। यहां रेलवे के बर्धमान खंड में बोलपुर नाम से प्रसिद्ध रेलवे स्टेशन है। यहां से तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर विश्व प्रसिद्ध शांति निकेतन भी है, जहां कभी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप वैश्विक शिक्षा के लिए विश्व भारती की स्थापना की थी।

निहत्थे क्रांतिकारियों पर चलाई थी अंधाधुंध गोलियां

1942 में जब क्रांतिकारियों ने आजादी के लिए पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ अगस्त क्रांति का बिगुल फूंका था, तो बंगाल भी इससे अछूता नहीं रहा था। बोलपुर में क्रांतिकारियों का नेतृत्व तारापद कर रहे थे। उसी समय अंग्रेज अपने विशाल साम्राज्य को बचाने के लिए पूरी दुनिया में द्वितीय विश्व युद्ध लड़ रहे थे और इधर भारत में 1942-43 के दौरान भयंकर अकाल पड़ा था, जिसके कारण भारतीय बिना भोजन के मर रहे थे। देशवासियों को एक बार खाना खाने के बाद दो दिन तक भूखे रहना पड़ता था। इसके बावजूद अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न हिस्सों से अनाज एकत्रित किया और बोलपुर रेलवे स्टेशन के माध्यम से दुनिया के विभिन्न देशों में मोर्चे पर तैनात अपने सैनिकों को भेजना शुरू कर दिया।

एक तरफ भारतीय कड़ी मेहनत से अनाज उगाते थे और अंग्रेज उसे बर्बर और क्रूर तरीके से लूट कर अपने सैनिकों को भेज रहे थे। क्रांतिकारी तारा पद गुइन देशवासियों की यह हालत नहीं देख पा रहे थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ बोलपुर रेलवे स्टेशन पर हमला करने की योजना बनाई। 29 अगस्त 1942 को पूरे बोलपुर क्षेत्र में आम हड़ताल की गई जो पूरी तरह सफल रही। तारा पद के नेतृत्व में हजारों ग्रामीणों ने रेलवे स्टेशन पर हमला किया और अंग्रेजों के लिए अनाज की ढुलाई रोक दी। कई क्रांतिकारियों ने आस-पास की सड़कें बंद कर दी थीं, जिससे वहां मौजूद अंग्रेज सैनिकों को बाहर से मदद नहीं मिल पा रही थी। इसके बाद ग्रामीणों पर बर्बर लाठीचार्ज शुरू हो गया, जिसके बाद हमलावरों ने जवानों की पिटाई शुरू कर दी। जब यह सूचना मुख्यालय तक पहुंची तो वहां से बिना किसी देरी के निहत्थे क्रांतिकारियों पर गोली चलाने के आदेश दिए गए। अंधाधुंध गोलीबारी शुरू हो गई और सैकड़ों ग्रामीण घायल हो गए।

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तारापद ने देखा कि कई लोग मारे जाएंगे। इसके बाद उन्होंने अकेले ही गोलीबारी कर रहे अंग्रेजों से भिड़ गए और इस दौरान उन्हें कई गोलियां लगीं। वे खून से लथपथ होकर गिर पड़े। तारापद को इस हालत में देखकर ग्रामीण और उग्र हो गए और स्टेशन पर तोड़फोड़ और आगजनी शुरू कर दी, जिससे विदेश में अनाज भेजने का काम रुक गया। दूसरी ओर, स्टेशन पर खून से लथपथ हालत में पड़े तारापद ने अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था।

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