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साहब मेहरबान, मानकों को दरकिनार कर संचालित हो रहे होटल

लखनऊः राजधानी के व्यस्ततम इलाकों में शामिल चारबाग, हुसैनगंज, नाका, गोमती नगर, आशियाना, कानपुर रोड, जानकीपुरम विस्तार व लालबाग ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हे भ्रष्टाचार का अड्डा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां पर गली-गली मानकों को ताक पर रखते हुए होटल, कोचिंग सेंटर, हॉस्पिटल, व्यवसायिक प्रतिष्ठान बेधड़क बिना डर के संचालित हो रहे हैं। ऐसा नहीं कि जिम्मेदारों को इसकी जानकारी नही हैं, बल्कि वह सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं।

इन व्यस्ततम इलाकों के कुछ भवन तो 1,000 वर्ग फीट से ज्यादा के एरिया में चार से पांच मंजिला बने हुए हैं। नाका, चारबाग के होटलों का हाल तो यह है कि यहां पर बमुश्किल मोटरसाइकिल ही जा सकती है। कल्पना की जा सकती है कि किसी अनहोनी की दशा में फायर ब्रिगेड की गाड़ियां इन होटलों तक कैसे पहुंचेगी। इन होटलों के फायर एनओसी तो क्या आवासीय भवन तक के मानक पूरे नहीं हैं। राजधानी में ऐसे होटलों की संख्या कुल 1,400 से अधिक मानी जा रही है। ऐसा नहीं है कि सरकारी विभागों ने नोटिस जारी ही न की हो, लेकिन इनता तो तय है कि ज्यादातर नोटिस भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं। 2018 में विराट होटल व एसएसजे में आग लगने के बाद चारबाग के होटलों की जांच हुई थी, नोटिस भी जारी हुए थे, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा।

एपीसेन रोड, पान दरीबा या नाका के होटलों को देखकर लगता है कि यह किसी का आवासीय भवन है। सामान्य आवासीय भवनों से भी छोटे होटलों में सुरक्षा के मानकों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं लेकिन एलडीए, अग्निशमन दल, नगर निगम सभी की आंखें भ्रष्टाचार ने बंद कर रखी हैं। राजधानी लखनऊ में कई होटल तो ऐसे हैं, जहां पर होटल परिसर में ही ट्रांसफार्मर लगा हुआ है। जिसमें शार्ट सर्किट से कभी भी बड़ी दुर्घटना हो सकती है। यही नहीं कई होटलों में किसी भी अप्रिय घटना के समय प्रवेश व निकास द्वार दो हैं लेकिन शार्ट-सर्किट का क्लीयरेंस देने वाले विद्युत सुरक्षा निदेशालय से जो हर तीन साल पर एनओसी लेनी होती है, वह उनके पास नहीं हैं। गोमती नगर में स्थित दर्जनों होटलों के हाल कुछ ऐसे ही हैं।

बिना बीमा के चल रहे कई होटल

लेवाना होटल में हुए हादसे में जान गंवाने वाले गुरनूर आनंद, साहिबा कौर, अमान व श्रीविका सिंह के परिजनों को किसी प्रकार की कोई आर्थिक मदद नहीं मिल पाएगी, ऐसा इसलिए क्योंकि लेवाना होटल ने अपने ग्राहकों की जान-माल के लिए कोई बीमा नहीं करवाया था। यह नहीं सूत्रों के मुताबिक, शहर के 98 प्रतिशत होटलों ने लाइबिलिटी बीमा नहीं करवा रखा है। लेवाना अग्निकांड के बाद गोमती नगर क्षेत्र के दो होटलों ने अपने भवन से होटल का बोर्ड उतार दिया है। बाहर से देखने पर यह कोई सामान्य सा भवन ही लग रहा है, लेकिन इसके अंदर पूरा होटल व्यवसाय फल-फूल रहा है। यहां के कर्मचारियों ने बताया कि बोर्ड में पानी चले जाने की वजह से खराबी आ गई थी, इसलिए इन्हें बनवाने के लिए भिजवाया गया है। होटल पैंथम इन और होटल रेडियन के हाल कुछ ऐसे ही है।

बिना अनुमति कार्रवाई का नहीं है अधिकार

विद्युत सुरक्षा निदेशालय के अधिकारियों और अभियंताओं के पास अपनी तरफ से कोई एक्शन लेने का अधिकार नहीं है। यहां तक वह बिना डीएम की अनुमति के किसी भवन के परिसर में भी अधिकारी प्रवेश नहीं कर सकते हैं। निदेशालय का कार्यालय गोमती नगर में ही है और उसके आस-पास भी दर्जनों होटल चल रहे हैं, लेकिन निदेशालय मूकदर्शक बना हुआ है।

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भवन के मानचित्र को सशर्त मंजूरी पर लगी रोक

लेवाना अग्निकांड के बाद चेती राज्य सरकार ने भविष्य में किसी भी भवन के नक्शे को सशर्त मंजूरी देने पर रोक के आदेश जारी कर दिए हैं। इतना ही नहीं पूर्व में जिन भवनों को सशर्त मंजूरी मिली थी, उनका निरीक्षण भी किया जाएगा। अगर आवश्यक शर्तें पूरी नहीं मिलीं, तो नक्शे की मंजूरी को निरस्त कर दिया जाएगा। इस तरह भवन अवैध घोषित हो जाएगा और फिर इसे ध्वस्त भी किया जा सकता है।

राजधानी के ज्यादातार होटल अवैध, सिर्फ 90 हैं रजिस्टर्ड

राजधानी लखनऊ में जिला प्रशासन की अनदेखी का हाल यह है कि शहर में बिना अनुमति और बिना सुरक्षा नियमों को पूरा किए सैकड़ों होटल और लॉज बेधड़क संचालित हो रहे हैं। जानकारी के अनुसार, सराय एक्ट के तहत महज 35 बड़े और 55 छोटे होटलों को मिलाकर कुल 90 होटलों का ही पंजीकरण हुआ है। गेस्ट हाउस, लॉज, धर्मशाला के रूप में करीब 700 पंजीकरण हुए हैं। लेवाना होटल में लगी आग के बाद से जिला प्रशासन ने राजधानी के होटलों का ब्यौरा जुटाना शुरू कर दिया है। गैर-कानूनी रूप से चलाए जा रहे होटलों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है और 200 से ज्यादा होटलों को नोटिस जारी किया जा चुका है।

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