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राज्यसभा में पास हुआ होम्योपैथी विधेयक, जानिए किस नेता ने क्या कहा...

नई दिल्ली: राज्यसभा ने शुक्रवार को दो विधेयकों को पारित किया है, जिसमें भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक, 2020 और होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक, 2020 शामिल हैं। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने विधेयकों पर चर्चा के दौरान जवाब देते हुए कहा, "अध्यादेश की आवश्यकता थी, क्योंकि संसद सत्र में नहीं थी।"

मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद मनोज झा की मांग के अनुसार, योग और नेचुरोपैथी चिकित्सा को भी उचित तरीके से बढ़ावा दिया जाएगा। बीजू जनता दल (बीजद) के सांसद प्रसन्न आचार्य ने चर्चा के दौरान विधेयक का समर्थन किया, लेकिन अध्यादेश की आवश्यकता पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि केवल असाधारण स्थितियों में ही अध्यादेश का रास्ता अपनाया जाना चाहिए।

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भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने विधेयक को लेकर कहा कि नई चीजों का हमेशा पहले विरोध किया जाता है, लेकिन कोविड के समय में होम्योपैथी चिकित्सा को एक प्रतिरक्षा बूस्टर के रूप में निर्धारित किया गया था। वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) के सदस्य राम गोपाल यादव ने कहा कि सरकार को आयोग के गठन में देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि होम्योपैथी गरीबों के लिए आवश्यक है, इसका कारण है कि एलोपैथी महंगी है और कोविड के दौर में निजी अस्पतालों में प्रतिदिन एक लाख से अधिक शुल्क लिया जाता है। द्रमुक सांसद टी. शिवा ने कहा, "सरकार राज्यों की शक्तियों को छीन रही है" और आरोप लगाया कि संघवाद को कमजोर किया जा रहा है।

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केंद्र द्वारा लाया गया यह विधेयक होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल एक्ट, 1973 में संशोधन है। अधिनियम बनने के बाद केंद्रीय होम्योपैथी परिषद होम्योपैथिक शिक्षा और अभ्यास को विनियमित करेगी। विधेयक को होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) अध्यादेश, 2020 से रिप्लेस किया गया है, इसे 24 अप्रैल, 2020 को घोषित किया गया था। सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्योपैथी के अधीक्षण के लिए 1973 अधिनियम 2018 में संशोधन किया गया था। केंद्रीय परिषद को अपने सप्रेशन की तारीख से एक वर्ष के भीतर इसे पुनर्गठित करने की आवश्यकता थी।

दो सालों में केंद्रीय परिषद के पुनर्गठन की आवश्यकता के मद्देनजर इस अवधि को देखते हुए इसे 2019 में संशोधित किया गया था। केंद्रीय परिषद की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए केंद्र सरकार ने एक बोर्ड ऑफ गवर्नर्स का गठन किया। विधेयक से अधिनियम में संशोधन कर केंद्रीय परिषद की अवधि को दो साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है।