चंडीगढ़ः हरियाणा भले ही क्षेत्रफल के आधार पर छोटा क्यों न हो लेकिन यहां भाषा अलग है तो होली (Holi) मनाने के तरीके भी अलग हैं। यहां दो तरह की होली मशहूर है। राजधानी दिल्ली के आसपास प्रदेश के दक्षिणी जिलों पलवल, फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात की बात करें तो यहां ब्रज की होली का मजा ले सकते हैं। बाकी हिस्से में बांगर की बोली और तीज त्योहार मनाने का तरीका दूसरा है।यहां कोड़े या कोरड़ा वाली होली होती है। करनाल, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर और अंबाला जिलों में कुछ पंजाबी कल्चर भी है। हालांकि होली पूजन करने का तरीका पूरे हरियाणा में एक जैसा ही है।
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पलवल, फरीदाबाद में मशहूर है ब्रज की होली
हरियाणा के होडल और पलवल इलाके में बंचारी के दर्जनों गांवों में ब्रज की होली (Holi) का प्रभाव है। ढोल और ताशे के साथ पारंपरिक ढंग से मनाई जाने वाली यहां की होली वृंदावन के नंदगांव और बरसाना की होली से मुकाबला करती है। सोनीपत जिले के गांव जागसी और पानीपत के गांव नौल्था की लट्ठमार_मार होली ब्रज के बरसाना की होली जैसी होती है। पलवल के निकटवर्ती गांव बंचारी की होली का नजारा देखने तो विदेश से भी लोग पहुंचते हैं। यहां युवक लंबी पिचकारियों में रंगीन पानी भरकर जब महिलाओं को भिगोते हैं तो मुरलीधर कृष्ण की रासलीला का दृश्य साकार हो उठता है।
ब्रज की तरह हुरियारों का स्वागत
बंचारी गांव में 12 गांवों में जाट अपने-अपने दलों के नगाड़ों के साथ आते हैं। इन्हें हुरियारे कहते हैं। ठीक ब्रज या वृंदावन की होली की तरह इन हुरियारों का स्वागत गांव की बहुएं करती हैं और नाच-गाना शुरू हो जाता है। बड़ा अंतर यह है कि ब्रज की होली की तरह यहां लड्डू मार या फूलों की होली नहीं होती पर नाच-गाना ज्यादा होता है।
अब गायब हुई कई दिन पहले की रौनक
बंचारी की होली का उत्साह अब पहले जैसा नहीं रहा। पहले युवा काफी दिन पहले से इसकी तैयारी में जुट जाते थे और चार -पांच दिन पहले से होली खेलनी शुरू कर दी जाती थी। कहा जाता है कि होली के दिनों में लोग इन गांवों में अपने रिश्तेदारों के घरों में नहीं आते थे, क्योंकि यहां एक सप्ताह तक खेली जाने वाली होली में हर किसी को रंगों में भिगोया जाता था। अब यह परंपरा खत्म हो रही है। यहां के बलदाऊ मंदिर में होली पर विशेष पूजा भी होती है। रात को जगह जगह होली के गीत सुनाई देते हैं। इसके अलावा भी बहुत से क्षेत्रों में महिलाएं रात को किसी खुले मैदान में नाच-गाना करती हैं।
रोहतक में देवरों को कोरड़े से पीटती है भाभियां
समय भले ही कितना बदल गया हो, लोगों के रहन-सहन में भले ही कितना भी अंतर क्यों न आ गया हो लेकिन रोहतक के गांव सुंडाना की कोरड़ा मार होली का चलन आज भी कायम है। यहां होली के दिन पानी के बड़े-बड़े कढ़ाहे भरे जाते हैं। महिलाएं चुन्नी से बने कोरड़े से पुरुषों की पिटाई करती हैं। गांव की लड़कियां कढाहे में पानी भरती हैं। पुरुष इन्हीं में से पानी लेकर उड़ेलते हैं। महिलाएं रिश्ते में देवरों के साथ ही होली खेलती हैं। आसपास के गांव से भी लोग सुंडाना का फाग देखने के लिए पहुंचते हैं।
फरीदाबाद की लट्ठमार होली
हरियाणा के फरीदाबाद के ब्रज क्षेत्र में लट्ठमार होली (Holi) खेली जाती है। इस दिन साकी व रसिया गाए जाते हैं। होली के रंगों के साथ महिलाएं पुरुषों पर लट्ठ बरसाती हैं। आखिरी साकी में पुरुष गाते हैं, होरी खेलन हारी, नौवें महीना में तोपे हुजो छोरा, धरियो नाम हजारी, जुग-जुग जिये होरी खेलन हारी। होली वाले दिन सुबह से ही महिलाएं एक तरफ और पुरुष दूसरी ओर खड़े हो जाते हैं। महिलाओं की ओर हाथ के इशारे करके उन्हें साकी व रसिया के माध्यम से नाचने पर विवश किया जाता है।
महिलाएं आज भी रखती हैं व्रत
देसां में देस हरियाणा जहां दूध दहीं का खाणा। अपने खान-पान व कृषि प्रधान परंपरा के लिए मशहूर हरियाणा में होली के रंग भी अलग-अलग हैं। बदलते हुए परिवेश में भी ग्रामीण महिलाएं होली के अवसर पर व्रत रखती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाते हुए समूहों में होलिका दहन के लिए जाती हैं और पूजा-अर्चना करती हैं। होलिका दहन के पश्चात व्रत खोलती हैं। यहां होली की आग में गेहूं तथा चने की बालें भूनकर खाना शुभ माना जाता है। शाम को गांवों में कबड्डी व कुश्ती प्रतियोगिताएं होती हैं। महिलाएं शाम को अपने लोक देवता की पूजा के लिए मंदिरों में जाती हैं और प्रसाद बांटती हैं।
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