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जातिगत जनगणना की काट बनेगा हिन्दुत्व

भारतीय जनता पार्टी अपने मूल मुद्दे “हिन्दुत्व” को लेकर काफी मुखर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्वा सरमा खुलकर हिन्दुओं से जुड़े मुद्दों को सार्वजनिक मंचों से उठाने और हिन्दुओं से जातियों में विभक्त न होकर एकजुट होने का आह्वान कर चुके हैं। भाजपा की हिन्दुत्ववादी रणनीति को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का भी खुला समर्थन है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी स्पष्ट तौर पर हिन्दुओं को जातियों में विभाजित होने वाले खतरों से अवगत करा दिया है। उन्होंने कहा कि हिन्दू जातियों में विभाजित होने की जगह एकजुट रहकर अपनी तथा अपने समाज की सुरक्षा के लिए मजबूती से खड़े हों। हिन्दू एकजुट नहीं होगा और अपनी सुरक्षा के लिए प्रबंध नहीं करेगा, तो उसे बचाने के लिए कोई दूसरा सामने नहीं आयेगा।

बीजेपी और आरएसएस के बीच मदभेद ने बिगाड़ी बात

भाजपा और आरएसएस की इस रणनीति का सीधा-सीधा असर हरियाणा विधानसभा चुनाव में दिखा है। यहां एग्जिट पोल में बुरी तरह हार रही भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बना चुकी है। यही नहीं भाजपा ने लंबे समय से जातिगत जनगणना के मुद्दे को लेकर हिन्दुओं को जातियों में बांटने की राजनीति करने वाले विपक्षी राजनीतिक दलों की काट भी निकाल ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिन्दुओं की तरह ही मुस्लिमों में भी मौजूद अनेकों जातियों का जिक्र छेड़ दिया है।

उनका कहना है कि यदि जातियों के आधार पर गणना होगी तो मुस्लिम धर्म में मौजूद जातियों को भी गिना जाएगा, मुस्लिम समाज में भी जातिगत आधार पर विकास की मुख्यधारा से किस जाति के लोग वंचित रह गए हैं, उसका आंकड़ा भी सामने आयेगा। भाजपा की इस रणनीति से हिन्दू वोटों को बांटने की राजनीति करने वाले विपक्षी दलों कांग्रेस, टीएमसी, एआईएमआईएम और सपा की मुश्किलें बढ़ गयी हैं, क्योंकि विपक्षी दलों को अच्छे से पता है कि हिन्दुत्व के मुद्दे पर हिन्दू एकजुट हो गये और मुस्लिमों को जातियों में विभाजित कर दिया गया तो इंडिया गठबंधन के लिए सत्ता में वापसी कर पाना संभव नहीं है। भारतीय जनता पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनावों में 400 से अधिक सीटों पर जीत मिलने की उम्मीद थी, लेकिन चुनावी नतीजों में पार्टी 240 के आंकड़े पर ही सिमट गयी।

इन नतीजों से भाजपा को बड़ा झटका लगा, क्योंकि 240 सीटें मिलने का मतलब है कि हिंदू वोटर्स ने भी भाजपा का साथ नहीं दिया, जिसके चलते पार्टी को लोकसभा चुनावों में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को जनता दल यूनाइटेड, टीडीपी, एलजेपी, अपना दल (एस) समेत अन्य सहयोगी दलों के समर्थन से केंद्र में सरकार बनानी पड़ी। लोकसभा चुनाव में आंशिक मतभेद की वजह से आरएसएस के चुनाव से दूरी बना लेने के कारण भी पार्टी का मूल संदेश उसके कोर वोटर तक नहीं पहुंच पाया। लोकसभा चुनाव परिणामों का आंकलन करने के दौरान भाजपा समर्थकों ने खुलकर कहा कि जब भाजपा को मुसमानों का वोट नहीं मिलता है, तो सरकार की सबका साथ-सबका विकास की नीति का कोई मतलब नहीं है।

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भाजपा को दोबारा से अपने पुराने मुद्दे हिन्दुत्व पर लौटना होगा। जनता ने देश में तेजी से बढ़ रही मुस्लिमों की आबादी और उसकी वजह से देश की जनसांख्यिकी में होने वाले बड़े बदलावों से उत्पन्न खतरों की ओर भी इशारा किया है। लोकसभा चुनाव परिणामों के मूल्यांकन के बाद से ही भाजपा और आरएसएस दोनों ने मिलकर अपने मूल मुद्दे हिन्दुत्व को पुनः धार देना शुरू कर दिया है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा समेत पार्टी के सभी हिन्दुत्ववादी फायर ब्रांड नेता खुले मंच से हिन्दुत्व का मुद्दा उठाने में जुट गये हैं, इसका मकसद बिखरे हुए हिंदुओं को फिर से अपने पाले में लाना है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरा के दिन हिंदू समाज से एकजुट होकर आपस में मतभेद और विवाद मिटाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को भाषा, जाति और प्रांत के मतभेद तथा विवाद मिटाकर अपनी सुरक्षा के लिए एकजुट होना होगा। समाज ऐसा होना चाहिए, जिसमें एकता, सद्भावना और बंधन का भाव हो। समाज में आचरण का अनुशासन, राज्य के प्रति कर्तव्य और लक्ष्य-उन्मुख होने का गुण जरूरी है। उन्होंने कहा कि समाज सिर्फ मेरे और मेरे परिवार से नहीं बनता, बल्कि हमें समाज के प्रति सर्वांगीण चिंता के जरिए अपने जीवन में ईश्वर को प्राप्त करना है। भागवत ने कहा कि संघ का काम यांत्रिक नहीं, बल्कि विचार आधारित है। इस बीच आरएसएस के नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने एक समाज के तौर पर सभी से भेदभाव खत्म करने और एकजुट होने की अपील की।

उन्होंने कहा कि जाति जन्म से तय होती है। यह एक सामाजिक बुराई है, इसे खत्म करने की जरूरत है। जहां भी आपस में भेदभाव होता है, वह समाज समाज नहीं रहता है। समाज के सभी अंग महत्वूर्ण हैं। कोई कमतर नहीं होता है। यह भी कहा कि जन्म के आधार पर जातियां तय होती हैं, हमको हमारा नाम मिलता है, भाषा मिलती है। हमको भगवान मिलते हैं। धर्म के ग्रंथ मिलते हैं। हम कई प्रकार के महापुरुषों के वंशज कहलाते हैं। क्या वो किसी एक जाति के कारण हैं, क्या कोई कह सकता है कि हरिद्वार किस जाति का है, क्या हमारे 12 ज्योतिर्लिंग और देश के कोने-कोने के 51 शक्तिपीठ किसी जाति के हैं? इस देश के चारों दिशाओं में रहने वाला, जो अपने आपको हिंदू मानता है। वो सब इन बातों को अपना मानता है फिर भेद कहां पर है।

भैयाजी ने कहा कि जैसे राज्य की सीमाएं हमारे अंदर भेद निर्माण नहीं कर पाती, वैसे ही जन्म के आधार पर प्राप्त स्थिति हमारे अंदर भेद का निर्माण नहीं कर सकती है इसलिए हमें मिलकर गलत धारणा को समाप्त करना चाहिए। कोई भ्रम होगा तो दूर करना चाहिए। यदि अनावश्यक अंहकार पनपता है, तो उस अहंकार के बीज को नष्ट करते हुए हम सबको एक समाज कहते हैं। सुरेश भैयाजी ने कहा कि पुरुष सूक्त में सहस्त्र शीर्ष, सहस्त्र बाहु, सहस्त्र पाद के बारे में बताया गया। यह क्या एक व्यक्ति का वर्णन है? पुरुष सूक्त में जिसके बारे में कहा गया है, वह पुरुष कौन है? यही समाज पुरुष है। राष्ट्र पुरुष है। यह सब एक अंग है।

अंग के अलग-अलग हिस्से होंगे, लेकिन अंग से अलग नहीं होगा। शरीर का कोई भी हिस्सा कम महत्व का नहीं है, अगर हाथ-पांव आपस में भेदभाव करने लगे तो शरीर शरीर नहीं रहेगा। समाज समाज नहीं रहेगा, इसलिए इन बुराइयों को दूर करना होगा। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने महाराष्ट्र दौरे पर महाविकास आघाड़ी यानी इंडिया अलायंस पर जोरदार हमला बोला, उन्होंने कांग्रेस पार्टी का जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस जानती है कि उनका वोट बैंक तो एक रहेगा, लेकिन बाकी लोग आसानी से बंट जाएंगे। कांग्रेस और उनके साथियों का एक ही मिशन है, समाज को बांटो और सत्ता पर कब्जा करो इसलिए हमारी एकता को ही देश की ढाल बनाना है, हमें याद रखना है कि अगर हम बंटेंगे तो बांटने वाले महफिल सजाएंगे।

हमें कांग्रेस और अघाड़ी वालों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने देना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक वर्चुअल कार्यक्रम में कांग्रेस को लेकर तीन बड़ी बातें कही हैं, जिनमें पहला मुद्दा है कि हिन्दुओं को जातियों में बांटने वाली कांग्रेस कभी मुसलमानों की जातियां क्यों नहीं देखती? कांग्रेस ने आज तक मुसलमानों की जातियों का कभी कोई जिक्र क्यों नहीं किया? दूसरा यह कि कांग्रेस अपनी साम्प्रदायिक और जातिवाद की राजनीति से हिन्दू समाज को जातियों में तोड़ना चाहती है और तीसरी बड़ी बात यह है कि हिन्दू जितना बंटेगा, कांग्रेस को उतना ही फायदा होगा। मोदी के इस बयान में बीजेपी की एक नई रणनीति छिपी है, जो कांग्रेस के जातिगत जनगणना के मुद्दे को कमजोर करने में भाजपा को सफलता दिला सकती है।

अब तक कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी तथा इंडिया अलायंस में शामिल कई दल लगातार हिन्दुओं की जातियों की बात करते थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार मुसलमानों की जातियों का मुद्दा उठाकर देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ज्यादातर लोग ऐसा मानते हैं कि हिन्दू धर्म की तरह इस्लाम धर्म में जातियां और जातियों के आधार पर भेदभाव नहीं होता, लेकिन हकीकत ये है कि भारत का जो मुस्लिम समाज है, वो कई जातियों में बंटा हुआ है और ये जाति व्यवस्था काफी हद तक वैसी ही है, जैसी हिन्दू धर्म में होती है।

योगी आदित्यनाथ ने हिन्दुत्व के मुद्दे को दी धार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार के मुद्दे पर खुलकर हिन्दुओं से एकजुट होने की अपील की। उन्होंने आगरा में वीर दुर्गादास राठौर की प्रतिमा का अनावरण करते हुए कहा कि राष्ट्र सर्वोपरि है, राष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब हम सब एक साथ रहेंगे। हम बंटेंगे तो कटेंगे। एक रहेंगे तो नेक रहेंगे। मुख्यमंत्री ने देश की जनता से कहा कि बांग्लादेश में देख रहे हो न क्या हो रहा है। ऐसी गलती यहां नहीं होनी चाहिए। एक रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे। इसके बाद विधानसभा चुनावों के दौरान हरियाणा की जिन 14 सीटों पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रचार किया था, उनमें से नौ सीटों पर बीजेपी को जीत मिली। यहां योगी ने हिंदुओं को एकजुट होकर राष्ट्र के लिए वोट देने की अपील की थी। उन्होंने भाजपा के हिन्दुत्ववादी एजेंडा को धार देते हुए नारा दिया कि “बंटेंगे तो कटेंगे”। परिणास्वरूप हरियाणा में भाजपा की बंपर सीटों के साथ वापसी हुई। भाजपा ने 90 में से 48 सीटों पर जीत हासिल की।

यहां भाजपा ने लगातार तीसरी बार सत्ता में बने रहने का रिकॉर्ड बनाया है, जबकि कांग्रेस 10 साल बाद भी अपने वनवास को खत्म नहीं कर पाई। योगी आदित्यनाथ ने हरियाणा में हिंदू वोट बैंक का ध्रुवीकरण करने के लिए “बंटेंगे तो कटेंगे” का जो एजेंडा सेट किया था, वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ इसलिए भारतीय जनता पार्टी आने वाले समय में अपने मूल एजेंडा “हिन्दुत्व” को ही धार देती नजर आयेगी। इसी प्रकार असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने हिंदू आबादी में गिरावट और मुस्लिम आबादी में वृद्धि पर चिंता व्यक्त की, जिससे राज्य की जनसांख्यिकी प्रभावित हो रही है। सरमा ने कहा कि असम में हिंदू आबादी घटकर 57 प्रतिशत रह गई है, जबकि मुस्लिम आबादी बढ़कर 41 प्रतिशत हो गई है। यह हमारे लिए बहुत चिंता की बात है। राज्य सरकार असम में जनसांख्यिकी संतुलन बनाए रखने को प्राथमिकता दे रही है और हम स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की दिशा में काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अविभाजित ग्वालपाड़ा जिला, बारपेटा और कुछ अन्य स्थानों पर स्थानीय लोगों की जमीन अन्य धर्मों के लोग नहीं खरीद सकते। यह भी कहा कि स्वदेशी संस्कृति की रक्षा के लिए ऐसे स्थानों पर अंतर-धार्मिक भूमि हस्तांतरण को रोका जाएगा। राज्य सरकार आगामी विधानसभा सत्र में इस संबंध में एक नया अधिनियम लाएगी। हिमंता ने झारखण्ड में मुस्लिमों की आबादी बढ़ने और वहां के मूल निवासियों की जनसंख्या घटने को लेकर भी चिन्ता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल के बाद झारखण्ड बांग्लादेशी घुसपैठियों का अगला निशाना है, इसकी वजह से राज्य की जनसांख्यिकी तेजी से बदल रही है।

मुस्लिमों में भी है जातियों का मकड़जाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस्लाम धर्म के अनुयायी मुस्लिमों की जातियों का जो जिक्र किया है, उससे विपक्ष बुरी तरह से बौखला गया है क्योंकि मुस्लिम समुदाय के लोग जातियों में बंट गये तो इंडिया अलायंस का एकमुश्त वोट बैंक बिखऱ जायेगा। दरअसल, इस्लाम धर्म को मूल रूप से दो संप्रदाय में बांटा गया है- इसमें एक सुन्नी समाज, तो दूसरा शिया समाज कहलाता है। इन दोनों ही समाजों में अभी मुस्लिमों की कुल तीन जातियां देखी गई हैं-पहली जाति का नाम अशराफ, दूसरी जाति का नाम अजलाफ और तीसरी जाति को अरजाल कहते हैं। अशराफ समूह में सैयद, शेख, पठान और मुगल जैसी जातियां आती हैं, इन्हें अगड़ी जाति का माना जाता है। इसके अलावा जो लोग दूसरे देशों से आकर भारत में बस गये थे, वही अलजाफ समूह मुस्लिम सम्प्रदाय में मध्यम वर्गीय कहलाता है।

अजलाफ मुसलमान में अंसारी, मंसूरी, राइन, कुरैशी, सिद्दीकी जैसी जातियां शामिल हैं, जो दर्जी, धोबी, धुनिया, गद्दी, फाकिर, बढई-लुहार, हज्जाम (नाई), जुलाहा, कबाड़िया, कुम्हार, कंजरा, मिरासी, मनिहार, तेली समाज से आते हैं। इसी समाज को पसमांदा भी कहते हैं, जो मुसलमानों का ओबीसी वर्ग है, जिन्हें आरक्षण मिलता है। इसके अलावा तीसरा वर्ग अरजाल होता है, जो मुस्लिमों में सबसे ज्यादा पिछड़ा है, इसी जाति के लोगों को दलित समाज कहा जा सकता है। हवारी, रज्जाक, भंगी, सहनती, लालबेगी, मेहतर, नट, गधेरी जैसी जातियां अरजाल के अंतर्गत ही आती हैं। अब आपको यह जान हैरानी होगी कि मुस्लिमों की यह जातियां भी उसी तरह से बंटी हुई हैं, जैसे हिंदू समाज में तरह-तरह की जातियां देखने को मिलती हैं।

देश में अगड़ी जाति वाले मुसलमान 15 फीसदी हैं, हिंदुओं में सवर्णों की संख्या भी इसी के आस-पास बैठती है। इसी तरह मध्य वर्ग वाले मुसलमान और ओबीसी श्रेणी वाले मुसलमानों की संख्या 50 फीसदी है। सबसे पिछड़े मुसलमानों की आबादी 35 प्रतिशत है। इसका आशय है कि देश में 85 फीसदी मुसलमान पिछड़े समाज से आते हैं। अब सवाल यह है कि इंडिया गठबंधन में शामिल दल हिंदुओं को तो जातियों में बांटने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं, लेकिन मुसलमानों को जातियों में नहीं बांटना चाहते। देश में कांग्रेस, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल जैसे तमाम दलों की नजर सिर्फ हिन्दुओं के जातिगत जनगणना पर है क्योंकि मुस्लिमों का एकमुश्त वोट कांग्रेस व इंडिया गठबंधन को तो पहले से ही मिल रहा है।

ऐसे में इनका मकसद भाजपा के कोर वोट बैंक हिन्दुओं को बांटना और उनका वोट लेकर 10 साल से केंद्र की सत्ता से दूर रहने की छटपटाहट को खत्म करना और भाजपा को सत्ता से बेदखल करना है। राजनीति में अभी तक मुस्लिमों को कभी भी जाति में बांटकर नहीं देखा गया। बीजेपी ने भी कभी इस मुद्दे को इतनी प्रमुखता से नहीं उठाया था, लेकिन अब प्रधानमंत्री ने मुस्लिमों में मौजूद जातियों का मुद्दा उठाकर विपक्ष के जातीय जनगणना की काट निकाल दी है। गौरतलब है कि अब अगर मुस्लिम जातियों में बंटने लगे, तो निश्चिततौर पर देश की राजनीति हमेशा के लिए बदल जाएगी।

पीएम मोदी का मास्टरस्ट्रोक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम संप्रदाय में जातियों की बात करके विपक्षी दलों को मिलने वाले वोट बैंक पर कड़ा प्रहार किया है, इसे मोदी के एक बड़े मास्टरस्ट्रोक के रूप में भी देखा जा रहा है। यह तो सभी को पता है कि भाजपा को आगे भी मुस्लिमों का ज्यादा वोट नहीं मिलेगा, लेकिन अगर कांग्रेस के इस वोट बैंक को भाजपा ने अपनी सोची-समझी रणनीति से दूसरी पार्टियों में बांट दिया, तब भी फायदा भाजपा को ही होने वाला है। इसी वजह से हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह मुद्दा उठाया गया। आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य की मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर जिस तरह से एकतरफा वोट कांग्रेस को पड़ा है, यह बताने के लिए काफी है कि मुस्लिम समाज अभी भी एकजुट है। हरियाणा के लोहारू क्षेत्र में 99.4 फीसदी हिंदू हैं, लेकिन वहां पर कांग्रेस की जीत का अंतर मात्र 792 वोटों का रहा, क्योंकि यहां हिंदू वोट बंट गये।

यहां की फिरोजपुर झिरका सीट पर 80 फीसदी मुसलमान वोटर हैं और कांग्रेस ने 98 हजार वोटों से जीत हासिल की है। इससे पता चलता है कि मुस्लिमों का एकतरफा वोट किसी भी सीट पर कितना असर डाल सकता है, लेकिन यही अगर मुस्लिम का वोट इंडियन नेशनल लोकदल, दुष्यंत की पार्टी जननायक जनता पार्टी और आप में बंट जाता, उसकी अलग-अलग जातियां हो जाती तो निश्चित तौर पर कांग्रेस की जीत का अंतर कम हो जाता। यहां कांग्रेस को हार का सामना भी करना पड़ सकता था। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मुस्लिम समाज में भी निचले तबके की जातियों के साथ काफी भेदभाव होता है। यहां भी पिछड़ों को कई तरह के हक नहीं मिल पाते, ऊंची जाति वाले कई बार मनमानी कर जाते हैं। ऐसे में मुस्लिम समाज में जातियों का मुद्दा प्रमुखता से उठाया जायेगा, तो एकमुश्त मुस्लिम वोट पाने वाली पार्टियों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

भारत में जातिगत जनगणना का इतिहास

दरअसल, भारत में जनगणना की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान साल 1872 में हुई थी। इसके बाद साल 1931 तक लगातार जितनी बार जनगणना कराई गई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज़ किया गया था। हालांकि, साल 1951 में जब आजाद भारत की पहली जनगणना हुई, तब जाति के नाम पर केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को वर्गीकृत किया गया था।

इसे गंभीरता से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के हिसाब से जातिगत जनगणना नहीं की जा सकती। इसके बाद 1980 के दौर में भारत में कई राजनीतिक दलों का उदय हुआ, जिनकी राजनीति का केंद्र जाति थी। इस दौर में जातिगत आरक्षण को लेकर कई अभियान भी शुरू किए गये, इसके बाद साल 2010 में यूपीए-2 के शासन में सांसदों ने जातिगत जनगणना की मांग की, फिर साल 2011 में सामाजिक, आर्थिक, जातिगत जनगणना करवाई गई। हालांकि, इसके आंकड़े सार्वजानिक नहीं किए गए। इसका कारण बताया गया कि जाति के आंकड़ों में कई विसंगतियां थीं। जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में भी इस बारे में जानकारी दी थी।

सरकार ने कहा था कि 2011 की जातिगत जनगणना के आंकड़ों को जारी करने की कोई योजना नहीं है। दरअसल, कांग्रेस, सपा, राजद, द्रमुक समेत कई विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव 2024 में जातिगत जनगणना को एक बड़ा मुद्दा बनाया। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में एक बार फिर से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन चुनाव परिणाम पर इस मुद्दे का खासा असर दिखा। विपक्षी दलों की सीटों में 2019 के मुकाबले बड़ा इजाफा देखा गया। मोदी सरकार की सहयोगी नीतीश कुमार की जदयू, चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) और अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) भी जातिगत जनगणना के समर्थन में है।

भाजपा ने जातिगत जनगणना की मांग पर विपक्ष को घेरा

लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना को लेकर जोरदार भाषण दिया था, जिस पर भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने जवाब देते हुए कहा कि जिनकी खुद की जाति का पता नहीं, वो जातिगत जनगणना की बातें करते हैं। भाजपा सांसद के इस बयान का कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दलों ने विरोध किया था, तब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मामले को गंभीरता से लेकर अनुराग ठाकुर से इस बयान को सदन की कार्यवाही से हटा दिया था। इसी क्रम में भाजपा नेता संबित पात्रा ने राहुल गांधी के संसद भवन में दिए गए भाषण पर जोरदार हमला किया था।

उन्होंने कहा कि राहुल को खुद से और अपने साथी उत्साही लोगों से यह महत्वपूर्ण सवाल पूछने की जरूरत है कि जातिगत जनगणना का अंतिम लक्ष्य क्या है? क्या इसका उद्देश्य जाति आधारित आरक्षण को और बढ़ाना है? कई राज्य पहले ही इंदिरा साहनी के फैसले में निर्धारित 49 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन कर चुके हैं या उल्लंघन करने के करीब हैं। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत कोटा के लिए न्यायिक मंजूरी, जो कि पहली मोदी सरकार के अंतिम दिनों में कानून बनाया गया था, वैसे भी मौजूदा संभावित कोटा सीमा को 59 प्रतिशत तक बढ़ा देता है, जबकि तमिलनाडु में यह सीमा वैसे भी 69 प्रतिशत है।

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क्या जाति जनगणना के बाद इसे 75 प्रतिशत तक ले जाने का इरादा है या इससे भी ज्यादा करना चाहते हैं, क्योंकि उच्च जातियां आबादी में 20 प्रतिशत से अधिक नहीं हैं? क्या 49 प्रतिशत की सीमा के काम करने के तरीकों के बारे में किसी भी तरह के अध्ययन के बिना आरक्षण नीति को आगे बढ़ाना और विस्तारित करना समझदारी है? इस बात के सबूत हैं कि अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के बीच क्रीमी लेयर को आरक्षण से अनुपातहीन रूप से लाभ मिला है। इसका मतलब है कि असली चुनौती पहले से ही पात्र लोगों के बीच कोटा को फिर से बांटना है। यदि सात दशक के कोटा-मोचन ने जाति की अक्षमताओं को दूर करने में पर्याप्त रूप से मदद नहीं की है, तो कोटा को 10-15 प्रतिशत और बढ़ाने से क्या मदद मिलेगी?

प्रभात तिवारी

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