लखनऊः किसानों के लिए बेहतर कमाई के रास्ते आज भी हैं, लेकिन इनकी लोेगों को जानकारी नहीं है। कुछ ऐसे पेड़ और फसलें हैं, जिनकी मांग हमारे यहां काफी है, लेकिन इन फसलों को तैयार करने के प्रयास किए ही नहीं जाते हैं। यदि किसानों को ऐसी प्रमुख फसलों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए, तो चीड़ और सागौत से मिलने वाली कमाई यहां के किसानों को मालामाल कर सकती है।
यह सही है कि पश्चिम यूपी का जलवायु में पूर्वी यूपी से 100 फीसदी समानता नहीं है, लेकिन इन क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की खेती होने के बाद भी कहीं न कहीं किस्मों का सामना भी होता है। अधिकांश किसान खेती छोड़ उद्योग-धंधो की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इनमें कुछ किसान दोनों क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। पारंपारिक तरीके से खेती करने वाले किसान जब उद्योगों से जुड़े तो उन्हें सागौन, तुलसी, चीड़ की खासियत और उसकी मांग से वास्ता पड़ा। इन किसानों ने मन बदला और अपने खेतों में पौधशाला तैयार कर डाली। ज्यादा कमाई वाली फसलें पाने की लालसा में ऐसे पेड़ तैयार हो गए, जिनसे रोज सैकड़ों क्विंटल लकड़ी निकल रही है।
बुद्धेश्वर से दुबग्गा और मौदा से कृष्णानगर तक करीब चार सौ लोगों का रोजगार लकड़ी से जुडा है। यह लोग चीड़, पाॅम और सागौन के चैखट पर पल्ले चढ़ाने का काम कर रहे हैं। इनमें कुछ लोगों ने सागौन के पेड़ लगा भी रखे हैं। सागौन के लिए अपने शहर की जलवायु अनुकूल है। काफी महंगा बिकने वाला सागौन अब लोगों की पसंद बनता जा रहा है। इसी तरह से तुलसी का भी औषधि के क्षेत्र में काफी महत्व है। डाॅ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में डाॅ. रविशंकर वर्मा हर्टिकल्चर विषय पर काफी काम कर चुके हैं। उनका कहना है कि तुलसी से बड़ी कमाई की जा सकती है। इसी तरह मशरूम की खेती का भी विस्तार हो रहा है। लखनऊ के मलिहाबाद और आलमबाग में उद्यान विभाग इसकी कार्यशालाएं चलाकर लोगों को उत्पादन के गुर सिखा रहा है। अभी इस क्षेत्र से अधिकतर लोग अनभिज्ञ हैं अन्यथा मशरूम की खेती के लिए खेत की भी जरूरत नहीं पड़ती है।
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अवध क्षेत्र में ईसबगोल के बारे में लोगों को जानकारी भी नहीं है कि यह औषधीय पौधा उगाने के लिए यहां की मिट्टी और जलवायु बेहद अनुकूल है। इसकी खेती करनें के लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी भी दी जाती है। इसकी भूसी में कई औषधीय गुण होने के कारण आसानी से बिक जाती है। कमाई की फसलों में एलोवेरा की खेती काफी महत्वपूर्ण है। धीरे-धीेरे लोग एलोवेरा का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं। सौंदर्य प्रसाधन की चीजों के निर्माण में इसका ज्यादा प्रयोग किया जाता है। दवा मार्केट में एलोवेरा की डिमांड काफी बढ़ रही है। अपार संभावनाएं होने के कारण इसकी खेती कर किसान धनवान बन सकता है। किसानों के पास और भी तमाम विकल्प हैं। वह अच्छी कमाई के लिए केसर, अश्वगंधा और फूलांे की खेती भी कर सकते हैं। कुछ किसान यहां मसालों का उत्पादन कर आमदनी बढ़ा उदाहरण बन रहे हैं।
– शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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