मथुराः श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक को लेकर 27 सितम्बर 2020 को दायर पहले वाद की सुनवाई गुरुवार जिला जज राजीव भारती की अदालत में हुई। पिछले कई महीनों से प्रतिवादी पक्ष की बहस गुरुवार पूरी होने के बाद 19 मई को अगली सुनवाई तय की गई है।
वादी पक्ष ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान द्वारा शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी से किए गए समझौते को रद करने की मांग की। जबकि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने भी अपने तर्क प्रस्तुत कर वाद खारिज करने की मांग की। सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित कर लिया। डीजीसी शिवराम सिंह तरकर ने बताया कि अदालत 19 मई को ये फैसला सुनाएगी कि ये वाद आगे चलने लायक है या नहीं।
गौरतलब हो कि, श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर से शाही मस्जिद ईदगाह को हटाकर पूरी 13.37 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपने की मांग को लेकर दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरीशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने मथुरा में सीनियर सिविल जज छाया शर्मा की अदालत में 27 सितम्बर 2020 को पहली याचिका दाखिल की। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर अपने मालिकाना हक का दावा करते हुए भगवान श्रीकृष्ण विराजमान ने अपने भक्तगण एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री, प्रवेश कुमार, राजेशमणि त्रिपाठी, करुणेश कुमार शुक्ला, शिवाजी सिंह और त्रिपुरारी तिवारी के माध्यम से यह याचिका दाखिल कराई है।
गुरुवार को इस मामले में जिला जज की अदालत में करीब दो घंटे तक सुनवाई की गई। इस दौरान शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के सचिव तनवीर अहमद भी मौजूद रहे। वादी पक्ष का तर्कवादी पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने कहा कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान की जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम है। जबकि शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी से श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने 1968 में समझौता किया था। जमीन ट्रस्ट के नाम पर होने से संस्थान को समझौता करने का अधिकार ही नहीं है, ऐसे में ये समझौता रद किया जाए और पूरी जमीन ट्रस्ट को दी जाए।
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से अधिवक्ता जीपी निगम ने कहा कि जिला जज की अदालत में वादी पक्ष को वाद के रूप में रिवीजन नहीं दाखिल करना था, बल्कि अपील दाखिल करनी थी। पहले अपील दाखिल की गई, लेकिन उसे रिवीजन में कन्वर्ट कर दिया गया, ये न्याय संगत नहीं है। इसलिए ये वाद चलने योग्य नहीं है।
शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी के सचिव तनवीर अहमद अधिवक्ता ने बताया कि गुरुवार को जिला जज की कोर्ट में श्री कृष्ण जन्मभूमि मामले को लेकर सुनवाई हुई। जिसमें पिछले कई महीनों से बहस चली आ रही थी, आज पूरी हो गई है। 19 मई को न्यायालय इस पर फैसला करेगा कि ये वाद चलने लायक है या नहीं। जबकि हम लोगों ने न्यायालय में जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि वादी ने जो प्रार्थना पत्र दाखिल किया है वह अनुरूप नहीं है, क्योंकि वो श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के पदाधिकारी या कर्मचारी नहीं हैं। भगवान श्रीकृष्ण के करोड़ों भक्त हैं, वह भी न्यायालय में प्रार्थना पत्र दे सकते हैं। इसलिए इस मामले को खारिज कर देना चाहिए, क्योंकि समय पूरा होने के बाद न्यायालय में प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया। 1968 में समझौता हुआ और 1974 में जमीन डिक्री कर दी गयी जो कि कानून के दायरे में सही है।
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