प्यासी धरती की बात को क्यों अनसुना कर रहा इंसान ?

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रिकार्ड तोड़ भीषण गर्मी विदा हो रही है। इस साल तपती धरती ने हमें आने वाले कल की झलक दिखला दी है। सभी पैरामीटर्स ध्वस्त से हो गए थे। हम फिर भी नहीं चेते तो त्रासदी का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। गर्मी के साथ तीन चौथाई हिस्से में पानी का संकट खड़ा हुआ है। जितना पानी उपयोग के लिए चाहिए उससे दस गुना हम बर्बाद कर रहे हैं। प्रकृति ने पानी की प्रचूर उपलब्धता सुनिश्चित की है, वर्षा और भूजल के माध्यम से। मानसून तटों से लेकर शहरों तक दस्तक दे चुका है। लेकिन क्या हम इस वर्षा जल को सहेजने के लिए तैयार हैं? सरकारें हर साल अभियान चलाकर जल संग्रहण के प्रयास करती हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने “कैच द रेन” जैसे अभियान शुरू कर वर्षा जल को सहेजने का आह्वान किया। इसके बावजूद भारत में वर्षा जल संग्रहित नहीं हो रहा है। सब कुछ सरकार पर छोड़ने की दुर्भाग्यजनक मानसिकता ने भारत के परम्परागत लोकजीवन को पूरी तरह विस्थापित कर दिया है। न केवल जल संचय बल्कि इसकी बर्बादी के भी सभी रिकॉर्ड हम भारतीय तोड़ने में अग्रणी हैं।

भारत में 70 फीसदी लोग पी रहे दूषित पानी

सवाल यह कि जब हम वर्षा जल संग्रहण में सदियों से पारंगत रहे हैं तब हमें सरकारी तंत्र की आवश्यकता क्यों पड़ने लगी है? असल में उपभोक्तावाद और प्रकृति के साथ अलगाव की जीवनशैली ने हमारा तानाबाना ही बिगाड़ कर रख दिया है। यही कारण है कि प्रकृति के साथ जिस समाज का रिश्ता पिता-पुत्र सा था, आज वही समाज प्रकृति के रौद्र रूप को झेल रहा है। आज आवश्यकता है जल, जमीन और जंगल के साथ हमारे सनातन प्रावधित रिश्तों को जीवित करने की। इस वर्षा ऋतु के साथ ही हम इसकी शुरुआत कर सकते हैं।

आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 970 लाख लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है।हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में भी पेयजल की हालत अधिक अच्छी नहीं है। वहां भी लगभग 70 फीसद लोग प्रदूषित पानी पीने और 33 करोड़ लोग सूखे वाली जगहों में रहने को मजबूर हैं। भारत में कुल मिलाकर लगभग 70 फीसदी जल प्रदूषित है। देश में पहले से ही सीमित मात्रा में जल उपलब्ध है, बावजूद इसके जल की बर्बादी निरंतर जारी है। यह प्रवृत्ति खतरनाक है। जिस रफ्तार से पानी की बर्बादी हो रही है, उसके चलते हमारा आने वाला कल बेहद भयावह हो सकता है। भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। नदियां सूख रही हैं। दलदली भूमि यानी वेटलैंड भी खतरे में हैं। एक सौ पचास करोड़ की जनसंख्या वाला हमारा देश जल संरक्षण को लेकर गंभीर भी नहीं है, देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले अकेले मुंबई में ही वाहनों को धोने में हर रोज लगभग पचास लाख लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। दिल्ली, मुंबई और चेन्नई आदि महानगरों में पाइप लाइनों में रिसाव के चलते प्रतिदिन 17 से 44 फीसद पानी बेकार बह जाता है।

क्या कहती है रिपोर्ट

नीति आयोग की हालिया भूजल पर जारी एक अध्ययन रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार 21 बड़े शहरों में भूजल खत्म होने के कगार पर है इससे करीब 15 करोड़ आबादी सीधे पानी के लिए तरसने पर विवश होगी। नीति आयोग के इस अध्ययन से पता चलता है कि भारत किस तरह जल संकट से घिरता जा रहा है। वर्षा और भूजल प्रबंधन में नाकामी ने भारत में भविष्य के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। आज धरती के 17 प्रतिशत लोग भारत में निवास करते हैं। 15 प्रतिशत जानवर हैं लेकिन मानक अनुसार साफ पानी के संसाधन केवल 04 प्रतिशत ही शेष है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 03 मीटर तक भूजल कम हो रहा है। यानी पाताल का पानी भी हर साल घटता जा रहा है। इसका सबसे अहम कारण है खेती के पारंपरिक तरीकों को छोड़कर कथित आधुनिक खेती जो 80 फीसदी जमीन के अंदर उपलब्ध पानी पर ट्यूबवेलों पर निर्भर है।

भारत में हर साल 3880 बिलियन क्यूबिक मीटर (एक बिलियन यानी एक अरब) जल वर्षा में आता है। इसमें से केवल 699 बिलियन क्यूबिक मीटर जल ही हम शुद्ध रूप में उपयोग कर पाते हैं।असल में ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने विकास के नाम पर पुरानी जल संग्रहण व्यवस्था को नष्ट कर दिया है। 70 साल पहले गांवों और शहरों में अनगिनत तालाब और ऐसे ही अन्य जल संग्रहण इकाइयां थी आज बढ़ती आबादी के दबाब ने इन सभी को नष्ट कर दिया है। आधुनिक जल संग्रहण के प्रयास नेताओं और अफसरों के हवाले छोड़ दिये गए है इसमें जनभागीदारी नहीं के बराबर है। नतीजतन वर्षा जल संग्रहण में हम नाकाम हो चुके हैं।

पीने से ज्यादा बर्बाद हो रहा पानी

1947 तक हर भारतीय के लिए करीब 60 लाख लीटर पानी सहजता से उपलब्ध था। 2011 में यह घटकर 15 लाख लीटर रह गया। 2031 में यह 13.50 लाख लीटर रह जायेगा। अनुमान है कि 2051 में यह घटकर करीब 11 लाख लीटर ही रह जायेगा। विशेषज्ञों के अनुसार जब प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 17 लाख लीटर से कम हो जाती है तो यह गंभीर जल संकट की श्रेणी में माना जाता है। स्पष्ट है कि हम भविष्य में विकराल जल संकट की ओर बढ़ चुके हैं। केंद्रीय जल आयोग का अध्ययन बताता है कि हर भारतीय औसतन 45 लीटर पानी हर दिन बर्बाद कर रहे हैं। यह बर्बादी घर, बाथरूम और अन्य माध्यमों से हो रही है। पहले हमारे घरों में जरूरत के अनुरूप पानी संग्रहित होता था क्योंकि स्रोत कुँए बाबड़ी थे और स्नान,शौच में भी आज की तरह विदेशी व्यवस्था नही थीं। घरों में लगे आरओ एक लीटर पानी को शुद्ध करने के लिए चार लीटर पानी बर्बाद करता है। बोतलबंद पानी बनाने वाली कम्पनियां हर घण्टे 15 हजार लीटर पानी जमीन से निकाल रही हैं। एनजीटी के अनुसार देश में हर दिन सम्मिलित रूप से 49 अरब लीटर पानी बर्बाद किया जा रहा है।

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नीति आयोग के अध्ययन से पता चलता है कि आने वाले दो तीन दशकों में भारत की 60 प्रतिशत जनसंख्या के सामने पेयजल का गंभीर संकट आने वाला है। भोपाल, इंदौर,रतलाम, दिल्ली, नोयडा, गुरुग्राम, आगरा, पटियाला, अमृतसर, बीकानेर, गाजियाबाद, चेन्नई, बेंगलुरु, अजमेर, मोहाली, चंडीगढ़ जैसे शहरों में तो 2030 तक ही भयावह हालात निर्मित होने वाले हैं।

भारत में उपलब्ध जल की उतनी कमी नहीं है। हमारे देश की मुख्य नदियों के अलावा हमें औसतन सालाना 11.70 करोड़ घनमीटर बारिश का पानी मिल जाता है। इसके अलावा, नवीकरणीय जल संरक्षण से भी 1608 अरब घनमीटर पानी हर साल मिल जाता है। दुनिया का नौवां सबसे बड़ा ‘ताजा जल संग्रह’ हमारे पास है। उसके बाद भी भारत में व्याप्त पानी की समस्या स्पष्टत: जल संरक्षण को लेकर हमारे कुप्रबंधन को दर्शाती है, न कि पानी की कमी को। जल संरक्षण आज की जरूरत है।

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इसके लिए उपयुक्त जल निकासी, साफ और सुरक्षित तरीके से अपशिष्ट जल के निपटान की व्यवस्था जरूरी है। इस व्यवस्था के अंतर्गत गंदे पानी को पुनर्चक्रित कर उसे उपयोग लायक बनाया जा सकता है, ताकि उसे वापस लोगों के घरों में पीने और घरेलू कार्यों में इस्तेमाल हेतु भेजा जा सके। सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अच्छी गुणवत्ता वाली सिंचाई प्रणाली सुनिश्चित की जा सकती है। इन प्रणालियों को इस प्रकार प्रबंधित किया जा सकता है ताकि पानी बर्बाद न हो। अनावश्यक रूप से पानी की आपूर्ति की कमी से बचने के लिए इसके पुनर्नवीनीकरण या वर्षा जल का भी उपयोग किया जा सकता है।

– डॉ. अजय खेमरिया