Wednesday, December 18, 2024
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बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन होता है ‘हरि’ और ‘हर’ का मिलन, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

उज्जैनः कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के रूप में जाना जाता है। इसी दिन को हरि-हर मिलन भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार मान्यता है कि चार माह देवशयनी एकादशी से लेकर देवप्रबोधिनी एकादशी तक भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान भोलेनाथ को सौंपकर क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं। इस दौरान भगवान भोलेनाथ ही धरती और धरतीवासियों को संभालते हैं। संभवतः यही कारण है कि इन चार माह के दौरान पूरा शिव परिवार पूजा जाता है। बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यह सत्ता भगवान विष्णु को सौंपकर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं। जब सत्ता भगवान विष्णु के पास आती है तो संसार के कार्य शुरू हो जाते हैं। उज्जैन में मध्य रात्रि को भगवान महाकाल (हर) का भगवान विष्णु (हरि) से मिलन होगा। भगवान महाकाल की सवारी मध्य रात्रि को शहर के प्राचीन गोपाल मंदिर पहुंचेगी।

बैकुण्ठ चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 17 नवंबर, दिन बुधवार को प्रातः 9 बजे 50 मिनट से होगा, जिसका समापन 18 नवंबर को दोपहर 12 बजे होगा। कार्तिक पूर्णिमा या देवदीपावली के एक दिन पहले बैकुंठ चतुर्दशी मनाया जाता है।

उज्जैन में धूमधाम से मनाया जाता है बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व
उज्जैन में बुधवार को बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। ज्योतिर्लिंग भगवान महाकाल की सवारी महाकालेश्वर मंदिर के सभामंडप से हरिहर मिलन के लिए बुधवार को रात्रि 11 बजे रवाना होगी, जो कि महाकाल चौराहा, गुदरी बाजार, पटनी बाजार होते हुए गोपाल मंदिर पहुंचेगी। यहां भगवान महाकाल और भगवान द्वारकाधीश (विष्णु अवतार) का पूजन होगा। इस दौरान जहां भगवान महाकाल का पूजन विष्णुप्रिया तुलसीदल से किया जाएगा, वहीं भगवान विष्णु को शिवप्रिय बिल्वपत्र अर्पित किये जाएंगे। इस प्रकार दोनों की प्रिय वस्तुओं का एक-दूसरे को भोग लगाया जाएगा।

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वैष्णव एवं शैव मार्गी भक्तों के लिए परस्पर सौहार्द का प्रतीक
दरअसल, हरि-हर मिलन के इस दुर्लभ दृश्य को देखकर अपना जीवन धन्य करने के लिए भक्त पूरे वर्ष उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा करते हैं। यह अनूठी परंपरा वैष्णव एवं शैव मार्ग के समन्वय व परस्पर सौहार्द का प्रतीक है। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु तथा शिव के ऐक्य का प्रतीक है। जगत के पालक विष्णु और कल्याणकारी शिव की भक्ति में भी यही संकेत है। इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था।

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