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Gyanvapi case: मस्जिद पक्ष ने राज्य और मंदिर पक्ष पर लगाए गंभीर आरोप

Gyanvapi case, प्रयागराजः बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंदिर पक्ष के ज्ञानवापी तहखाना में पूजा के अधिकार को सही ठहराया। वहीं, मस्जिद पक्ष ने इस मामले में मंदिर पक्ष और यूपी सरकार के बीच सांठगांठ का आरोप लगाया है। वहीं, मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने दोनों पक्षों से अपने दावे साबित करने को कहा।

मुलायम सिंह यादव ने लगाया प्रतिबंध

अंजुमने इंतजामिया कमेटी की ओर से दायर याचिका पर करीब सवा दो घंटे तक चली सुनवाई में मंदिर पक्ष की ओर से हरि शंकर जैन ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बहस की। उन्होंने कहा 1993 तक सोमनाथ व्यास और उनके परिवार द्वारा मस्जिद के तहखाने में पूजा और प्रार्थना की जाती रही। मुलायम सिंह यादव की सरकार ने दिसंबर में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। मुस्लिम पक्ष ने इस दावे का विरोध किया। कहा कि मस्जिद की इमारत पर हमेशा मुसलमानों का कब्जा रहा है। 31 जनवरी, 2024 का आदेश ज्ञानवापी परिसर के धार्मिक चरित्र पर परस्पर विरोधी दावों से जुड़े एक लंबित नागरिक मुकदमे के बीच पारित किया गया है। यह भी कहा गया कि ज्ञानवापी परिसर का धार्मिक चरित्र पहले ही 1942 के दीन मोहम्मद बनाम सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा तय कर दिया गया था।

व्यास परिवार के पास थी जिम्मेदारी

लेकिन, कोर्ट ने कहा कि इस आदेश में हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को सिर्फ नमाज पढ़ने का अधिकार दिया है। इस फैसले से किसी को मदद नहीं मिलेगी। दीन मोहम्मद के मामले में यह दर्ज है कि व्यास परिवार वहां पूजा कर रहा था और उसका उस पर कब्जा था। आप यह नहीं कह सकते कि ऐसा कोई दावा नहीं है। सरकार का रुख था कि तहखाना व्यास परिवार के कब्जे में था। वहीं मस्जिद पक्ष के वकील एसएफए नकवी ने कहा कि तहखाना का इस्तेमाल सिर्फ स्टोर रूम के तौर पर किया जा रहा था। मंदिर पक्ष ने अपना दावा दोहराया कि तहखाने में पहले भी हिंदू प्रार्थनाएं होती रही हैं। मुस्लिम पक्ष ने इस पहलू से इनकार नहीं किया है। जैन ने कहा कि एएसआई को मिले सबूतों से मुस्लिम पक्ष का दावा झूठा है। वकील विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट के सामने कुछ पुराने दस्तावेज भी पेश किए जिसमें बताया गया कि तहखाने की चाबी जितेंद्र व्यास के पास थी और रामचरित मानस के वार्षिक पाठ के लिए तहखाने से किताबें निकालकर रखी गई थीं। पुस्तकों को रखने और हटाने के लिए तत्कालीन अधिकारियों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती थी। जैन ने इस मामले से जुड़े दस्तावेज भी पेश किये। दूसरी ओर, वरिष्ठ वकील नकवी 31 जनवरी के आदेश की सत्यता पर विवाद करते रहे। क्योंकि इसे बिना किसी नये आवेदन के पारित कर दिया गया। उन्होंने तर्क दिया कि जिला न्यायाधीश ने यह मनमाना और अवैध आदेश पारित किया, जो मंदिर पक्ष की मौखिक मांग पर आधारित था। अदालत ने कहा कि 31 जनवरी का आदेश नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 151 के तहत सिविल अदालत की अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करके पारित किया गया था। इसे सीपीसी की धारा 152 के साथ पढ़ा जाना चाहिए। यह धारा न्यायाधीश को अपने आदेशों में त्रुटियों, चूकों या लोपों को ठीक करने की अनुमति देती है। नकवी ने कहा कि 31 जनवरी का आदेश स्वत: संज्ञान से की गई कार्रवाई नहीं है। न ही कोई आवेदन है। इसलिए यह आदेश अवैध है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि इस मामले में यूपी सरकार कोई पक्षकार नहीं है। फिर भी महाधिवक्ता इस सुनवाई के दौरान मौजूद हैं। यदि न्यायालय कोई आदेश या निर्देश देता है तो वह उपस्थित हुए बिना भी उसका पालन करा सकता है। यह भी पढ़ेंः-सीएम योगी का ऐलान, भव्य और दिव्य रूप से संपन्न कराएंगे महाकुंभ इसके आधार पर उन्होंने इस मामले में यूपी सरकार और मंदिर पक्ष पर आपसी सांठगांठ का आरोप लगाया। वहीं, महाधिवक्ता ने कहा कि वह मामले की सुनवाई के दौरान मौजूद हैं ताकि अगर अदालत इस मामले में कोई निर्देश देती है तो वह उसका अनुपालन सुनिश्चित करेंगे। फिलहाल कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को रिकॉर्ड से जुड़े दस्तावेज हलफनामे में दाखिल करने का समय दिया और सुनवाई के लिए 12 फरवरी की तारीख तय की है। (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)