गुप्तकाशीः केदारघाटी का प्रसिद्ध जाख मेला (jakh-mela) नर पश्वा ने धधकते अंगारों पर नृत्य करने के साथ ही संपन्न हुआ। इस दौरान हजारों भक्तों ने भगवान यक्ष के प्रत्यक्ष दर्शन करके सुख समृद्धि की कामना की। इस बार नए नर पश्वा ने एक ही बार अग्निकुंड में नृत्य किया। दहकते अंगारों पर जाख देवता के नृत्य की परंपरा सदियों पुरानी है। हर वर्ष आयोजित होने वाले इस मेले में हजारों की संख्या में भक्त जाख राजा के दर्शन करने आते हैं। मेला शुरू होने से दो दिन पहले कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्त नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में गोठी बिठाना कहा जाता है।
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जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से भव्य अग्निकुण्ड तैयार किया जाता है। वैशाखी के दूसरे दिन गुप्तकाशी से 5 किलोमीटर दूर जाखधार में जाख मेले का आयोजन होता है। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा और नारायणकोटी के भक्तजन नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं। जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से भव्य अग्निकुण्ड तैयार किया जाता है। जाख मेले से एक दिन पहले की रात अग्निकुण्ड व मंदिर की पूजा की जाती है। फिर अग्निकुण्ड में रखी लकड़ियां प्रज्वलित की जाती हैं। यहां नारायणकोटी और कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण करते हैं। दूसरे दिन जाख देवता इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं। 11वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा आज भी उत्साह के साथ मनाई जाती है। मंत्रोच्चार से अग्निकुण्ड में रखी लकड़ियां प्रज्वलित की जाती हैं। यहां पर नारायणकोटी और कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण करते हैं। दूसरे दिन जाख देवता इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं।
शुक्रवार को यह देवयात्रा भेत से कोठेड़ा गांव होते हुए देवशाल पहुंची। जहां पर विंध्यवासिनी मंदिर में देवशाल के ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के साथ भगवान शिव की स्तुति की। जिसके बाद देवशाल से भगवान जाख के पश्व और ग्रामीण जलते दिए और जाख की कंडी के साथ श्रद्धालुओं के साथ देवस्थल पहुंचे। यहां पर 4 जोड़ी ढोल दमाऊं की स्वर लहरी और पौराणिक जागरों के साथ मानव देह में देवता अवतरित हुए, फिर जाख देवता ने दहकते हुए अंगारों के अग्निकुंड में प्रवेश कर भक्तों को साक्षात यक्ष रूप में दर्शन दिये। गत दिनों पुराने नर पश्वा के असामयिक मौत के बाद यह संदेह जताया जा रहा था, कि अब आखिरकार किस पर जाख अवतरित होंगे, लेकिन जैसे ही देवशाल मंदिर में मंत्रोच्चार हुआ, नए पशवा सच्चिदानंद पर देव अवतरित हुए। नए अवतरण के साथ ही श्रद्धालुओं ने पूरे जोश के साथ भगवान यक्ष के जयकारे लगाए।
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