जीएसटी थाम सकती है डीजल-पेट्रोल की रफ्तार, जानिए कैसे भरता है सरकार का खजाना

0
54
gst.( sOURCE: ianstwitter)

लखनऊः आम जनता पर इस समय महंगाई की मार लगातार जारी है। आए दिन महंगाई का कोई न कोई बम जनता पर फटता रहता है, लेकिन इस समय सबसे बड़ा सिरदर्द बना है पेट्रोल और डीजल। लगातार बढ़ती पेट्रोल-डीजल की कीमतों से पूरे देश में त्राहि-त्राहि मची है, लेकिन सरकारों के कान में कोई जूं तक नहीं रेंग रहा है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें पिछले 13 दिनों से लगातार बढ़ रही हैं, जिसके चलते पेट्रोल की कीमतें कई राज्यों में 90 से 92 रुपये तक पहुंच गई हैं।

एक ओर जहां आम आदमी लगातार बढ़ती कीमतों से परेशान होकर सरकार की तरफ उम्मीद की नज़रों से देख रहा है, वहीं सरकार ने ये कहते हुए किनारा कर लिया कि वो लगातार बढ़ती कीमतों में कुछ नहीं कर सकती है। क्या ये कहना सही है कि सरकार लगातार बढ़ रही इन पेट्रोल-डीजल की कीमतों के बारे में कुछ नहीं कर सकती। वास्तविकता ये है कि अगर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें चाहें तो पेट्रोल-डीजल के दामों में भारी कटौती हो सकती है। ये चाहें तो पेट्रोल-डीजल पर लगाने वाले टैक्सों में कटौती करके जनता को राहत दे सकती हैं। यही नही यदि पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में ला दिया जाए तो एक झटके में कीमतों में 30 फीसदी की भारी कटौती हो सकती है और जनता को एक बड़ी राहत मिल सकती है।

जीएसटी के दायरे में आने पर होगी भारी कटौती

पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों और पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की लगातार हो रही मांग के बीच बीते सप्ताह 23 फरवरी को पेट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान ने कहा कि वे पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए जीएसटी काउंसिल से लगातार गुज़ारिश कर रहे हैं, ताकि आम लोगों को इससे फायदा हो लेकिन यह फैसला जीएसटी काउंसिल को करना होगा। इन बातों को कहकर एक बार फिर सरकार ने किनारा कर लिया है। वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी 20 फरवरी को कहा था कि पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमत को तार्किक स्तर पर लाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को साथ बैठकर तंत्र विकसित करना होगा। ऐसा लग रहा है कि सरकार का अभी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में राहत देना का कोई इरादा नहीं है। वहीं दूसरी ओर आम जनता लगातार बढ़ रहीं कीमतों के बोझ में दबकर बेहाल हुई जा रही है। हालांकि, चुनावों को देखते हुए कुछ गैर-बीजेपी राज्यों ने अपने टैक्स में मामूली कटौती करके जनता को थोड़ी बहुत राहत दी है, लेकिन केंद्र सरकार अभी भी मौन साधे हुए है। जिसके चलते विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है।

आरोप-प्रत्यारोप तो चलता रहता है लेकिन सौ बातों की एक बात ये है कि अगर केंद्र और राज्य सरकारें चाहें तो जीएसटी के दायरे में लाकर एक झटके में ही पेट्रोल-डीजल की कीमत 30 फीसद तक कम हो सकती हैं, लेकिन सरकार के ऐसा न करने की वजह जो है वो ये है कि ऐसा करने से केंद्र व राज्य के राजस्व पर बड़ा असर पड़ेगा, जिससे सरकारी खर्च घट सकता है और ये सरकारों को मंज़ूर नहीं है। यानि कि जनता पर लाख महंगाई की मार पड़े उससे सरकारों को कोई फर्क नहीं। ये तो साफ है कि पेट्रोल-डीजल से आने वाले टैक्स से केंद्र और राज्य सरकारों को भारी मुनाफा होता है। जबकि जीएसटी की पिछली बैठकों में भी इस मुद्दे को लेकर चर्चा हो चुकी है लेकिन कोई हल निकल कर सामने नहीं आ पाया है। पिछली बैठकों में विपक्षी दलों की ओर से इसका जमकर विरोध किया गया, लेकिन ये भी सच है कि भाजपा-शासित राज्यों ने भी इसको लागू करने के लिए अपनी हामी नहीं भरी बल्कि मौन रहे। ऐसे में अब ये कहना नाइंसाफी ही होगी कि विपक्ष ही इसके समर्थन में नहीं है, क्योंकि अगर मौजूदा स्थिति को देखा जाए तो बदले हुए राजनीतिक माहौल में अब विपक्षी राज्यों की संख्या बहुत नहीं है। अब अधिकतर राज्यों में भाजपा की ही सरकार है, ऐसे में अगर केंद्र सरकार चाहे तो वो इसे आसानी से लागू कर सकती है और जनता को एक बड़ी राहत प्रदान कर सकती है यानि कि केंद्र अब विपक्ष के सिर पर ही सारा ठीकरा नहीं फोड़ सकता। अब सब कुछ निर्भर करता है केंद्र सरकार पर, लेकिन फिलहाल तो इसके कोई भी आसार नज़र नहीं आ रहे हैं।

यहां समझिये जीएसटी और टैक्स का पूरा गणित

केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले टैक्सों से भारी राजस्व की प्राप्ति होती है। इसी का नतीजा है कि कोरोना जैसी महामारी के भारी आघात के चलते जब देश में हर प्रकार के टैक्स का कलेक्शन नकारात्मक रहा था, तब भी पेट्रोलियम से आने वाले टैक्स में 40 फीसद से ज्यादा बढ़ोतरी थी। इससे ये ज़ाहिर है कि पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले टैक्स सरकारों के लिए कितने असरदार हैं। वहीं अगर इसे जीएसटी के सबसे ऊंचे स्लैब 28 फीसद में रखा जाए और अतिरिक्त 5 फीसद सेस भी लगा दिया जाए तो भी टैक्स 33 फीसद तक ही रहेगा। इस मुकाबले में अभी केंद्र व राज्य सरकारें पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमत पर लगभग 65 फीसद तक टैक्स वसूल रही हैं।अब अगर जीएसटी और इसके पूरे गणित को समझें तो पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमतों में लगभग दो तिहाई हिस्सा टैक्स का है।
केंद्र का उत्पाद शुल्क पेट्रोल पर प्रति लीटर 32.98 रुपये है, जबकि डीजल पर 31.83 रुपये है। वहीं राज्यों के वैट की औसत दर 15-25 फीसद है। फिलहाल जो व्यवस्था है उसमें भी केंद्र अपने हिस्से का एक अंश भी राज्यों को देता है। ऐसे में मोटे तौर पर केंद्र और राज्यों की हिस्सेदारी लगभग आधी-आधी होती है। यानि कि साफ है कि सरकारों को इसके जीएसटी के दायरे में आने से क्यों इतनी दिक्कत है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014-15 में केंद्र को पेट्रोल व डीजल से उत्पाद शुल्क के रूप में 1.72 लाख करोड़ रुपये मिले, जो वर्ष 2019-20 में 94 फीसद की भारी मात्रा में बढ़कर 3.34 लाख करोड़ रुपये हो गया। वैसे ही, वैट के रूप में राज्यों को वर्ष 2014-15 में 1.60 लाख करोड़ रुपये मिले जो वर्ष 2019-20 में 37 फीसद बढ़कर 2.21 लाख करोड़ रुपये हो गया। अब इससे ये तो जाहिर है कि जीएसटी जनता को तो राहत दे सकता है, लेकिन सरकारों के लिए बोझहै। अब केंद्र सरकार का ये कहना बिल्कुल समझ से परे है कि सरकार पेट्रोल-डीजल के लगातार बढ़ रहे दामों में कुछ नहीं कर सकती यानि कि सिर्फ बैठ कर तमाशा देख सकती है।

13 दिनों में पेट्रोल 03.63 और डीजल 03.84 रुपये हुआ महंगा

पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर इतना हाहाकार इसलिए मचा है और इसलिए आज सरकार आम जनता के निशाने पर है क्योंकि पिछले 13 दिनों से लगातार पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी हो रही है। आलम ये है कि पिछले 13 दिनों में पेट्रोल के दामों में कुल 03.63 रुपये की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। मुंबई में तो पेट्रोल की कीमतें आसमान छू रही हैं। मायानगरी में पेट्रोल 97.34 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। वहीं अगर सिर्फ साल 2021 तक की बात करें यानि कि सिर्फ जनवरी-फरवरी भर में ही 24 दिनों मे ही पेट्रोल की कीमतें 7.12 रुपये तक बढ़ चुकी हैं।महंगाई की ये मार सिर्फ पेट्रोल पर ही नहीं पड़ी है, बल्कि डीजल पर भी इसका गहरा आघात हुआ है। अगर डीजल की पिछले 13 दिन में हुई बढ़ोत्तरी पर नज़र डालें तो 13 दिनों में डीजल की कीमतों में 3.84 रुपये की भारी बढ़ोत्तरी हुई है। पेट्रोल के साथ-साथ डीजल ने भी नये साल का स्वागत महंगाई की मार के साथ ही किया है। साल 2021 के बीते करीब डेढ़ महीने में सिर्फ 24 दिन में ही डीजल के दाम बढ़े हैं, लेकिन इन 24 दिनों में ही डीजल की कीमतों में 07.45 रुपये का इज़ाफा हुआ है। ऐसे में पेट्रोल-डीजल के लगातार बढ़ते दामों से देश में हाहाकार तो मचा है और मचना भी चाहिए क्योंकि कीमतों ने रिकॉर्ड तोड़ रखे हैं।

लागू हो जीएसटी तो यूनिवर्सल हो जाएगी दर

सीए जितेन्द्र कुमार सिंह का कहना है कि अगर डीजल-पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में ला दिया जाए तो पूरे देश में इसका रेट समान हो जाएगा। वर्तमान में देश के सभी राज्यों में टैक्स की दरें अलग-अलग हैं, इस वजह से पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें अनियंत्रित हो गई हैं। इसके साथ ही क्राॅस डिसएडवांटेज भी खत्म हो जाएगी। इसे एक उदाहरण के तौर पर समझें तो अगर दिल्ली में डीजल-पेट्रोल का रेट कम है और नोएडा में ज्यादा है। इससे दिल्ली की इंडस्ट्रीज को फायदा होगा जबकि नोएडा की इंडस्ट्रीज को नुकसान। ऐसे में अगर दाम बराबर होंगे तो सभी को लाभ भी बराबर मिलेगा। अगर हमने जीएसटी इस पर लागू कर दिया गया तो ऐसी जगहों पर ज्यादा लाभ मिलेगा, जहां डीजल-पेट्रोल राॅ मैटेरियल के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जो राज्य सरकारें रेवेन्यू के ऊपर निर्भर हैं, वह राजी नही हो रहे हैं और वह इसे सेफ प्राइसिंग पर रखना चाहती हैं।

यह भी पढ़ेंः-सीएम योगी ने किया टीकाकरण का निरीक्षण, लोगों की सुविधा को बढ़ाई जाएगी केंद्रों की संख्या

इसके लिए केंद्र सरकार अगर गंभीरता से इस पर काम करे तो इसका भी समाधान निकल सकता है। तमाम उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखा गया है, ऐसे में वन नेशन-वन टैक्स की बात भी करना बेमानी है। बताया कि विभिन्न उत्पादों पर जीएसटी लगाने का सीधा सा अर्थ था कि राज्यों में उत्पादों के दाम समान हों। शराब, तंबाकू, डीजल-पेट्रोल सहित कई उत्पादों को अभी जीएसटी से बाहर रखा गया है, लेकिन सरकार को यह कोषिष करनी चाहिए कि धीरे-धीरे इन्हें भी जीएसटी के दायरे में ले आ