लखनऊः केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के देश के ताप बिजली घरों के लिए कोयला आयात की अवधि बढाए जाने का विरोध ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने किया है। साथ ही फेडरेशन ने कोयला आयात का खर्च केंद्र सरकार द्वारा उठाए जाने की मांग की है। फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने कोयला आयात करने की अवधि मार्च 2024 तक बढ़ा दी है। कोयला मंत्रालय के मुताबिक बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष कोयले का उत्पादन बढा है। ऐसे में कोयला आयात करने का निर्देश वापस लिया जाना चाहिए।
आवश्यकता से अधिक किया जा रहा कोयले का उत्पादन
वहीं केंद्रीय विद्युत मंत्रालय इस आदेश को वापस नहीं लेता है तो उसे आयातित कोयले का अतिरिक्त खर्च खुद वहन करना चाहिए। फेडरेशन ने आंकड़े देते हुए बताया कि चालू वित्तीय वर्ष में 21 अक्टूबर तक 71.35 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया गया है जो इस अवधि तक बीते वर्ष किए गए 60.44 मिलियन टन कोयला उत्पादन की तुलना में 12.73 प्रतिशत अधिक है। वहीं बिजली की बढ़ी मांग को देखते हुए बिजली घरों को जरूरत के मुताबिक आवश्यकता से अधिक कोयले का उत्पादन किया जा रहा है।
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7 से 10 गुना महंगा कोयला
इस स्थिति में सभी ताप बिजली घरों के लिए छह प्रतिशत कोयला आयात करने का निर्देश 31 मार्च 2024 तक जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। आयातित कोयला भारतीय कोयले की तुलना में 7 से 10 गुना महंगा होता है। इसके चलते छह प्रतिशत आयातित कोयले का इस्तेमाल करने पर बिजली की उत्पादन लागत 70 पैसे से 1.10 पैसे प्रति यूनिट तक बढ़ जाएगी। जिसका भार सीधे उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।
फेडरेशन ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि केंद्रीय विद्युत मंत्रालय, केंद्रीय कोयला मंत्रालय और रेल मंत्रालय के बीच सामंजस्य की कमी है, जिससे ताप बिजली घरों तक कोयला नहीं पहुंच पा रहा है।ं बीते 24 अक्टूबर को केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार देश के 74 ताप बिजली घरों में कोयले का स्टॉक क्रिटिकल स्टेज पर पहुंच गया है। केंद्रीय मंत्रालयों के बीच समन्वय न होने का खामियाजा अंततः आम विद्युत उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा।
(रिपोर्ट- पंकज पांडेय, लखनऊ)
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