Friday, November 8, 2024
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Homeउत्तर प्रदेशलखनऊ की हवा में सबसे अधिक जहर घोल रहे सरकारी विभाग

लखनऊ की हवा में सबसे अधिक जहर घोल रहे सरकारी विभाग

लखनऊः उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विकास कार्यों की रफ्तार पिछले कुछ सालों में कई गुना बढ़ गई है। इससे शहर का फैलाव भी तेजी से बढ़ा है। शहर में चारों ओर ऊंची इमारतों और सड़कों का जाल तो बिछाया जा रहा है, लेकिन किसी ने नहीं सोचा कि शहर को आकर्षक और सुंदर बनाने की होड़ में आम आदमी के स्वस्थ रहने की आवश्यकताओं पर प्रदूषण की फैक्ट्रियों ने कब्जा जमा लिया है। आज प्रदूषण के मामले में शहर की हालत नाजुक है। सरकारी और गैर-सरकारी कंस्ट्रक्शन कम्पनियों के नियम विरूद्ध निर्माण कार्यों के चलते आसमान तक धुआं और धूल पहुंच रहा है। यहां ऐसे भी विभाग काम कर रहे हैं, जिन्हें खुद एक नजीर पेश करनी होती है लेकिन वह भी जमकर मनमानी कर रहे हैं।

स्मार्ट सिटी के रूप में चयनित होने के बाद लखनऊ में तेजी से विकास कार्य चल रहे हैं। तमाम विभागों की अलग-अलग निर्माण परियोजनाएं शहर के विभिन्न इलाकों में चल रही हैं। इससे शहर के विकास की रफ्तार तो बढ़ रही है, लेकिन यहां का पर्यावरण दिन-ब-दिन जहरीला होता जा रहा है। हर साल सर्दी के मौसम में राजधानी की हवा इस कदर प्रदूषित हो जाती है कि लोगों को मास्क लगाकर निकलने की सलाह देनी पड़ती है और अस्पतालों में भी सांस के मरीजों की कतार लग जाती है। फौरी तौर पर दिखावे के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शहर के अलग-अलग इलाकों में चल रही फैक्ट्रियों पर शिकंजा कसता है, लेकिन उसकी नजर निर्माण कार्य में मानकों की धज्जियां उड़ाने वाले सरकारी विभागों पर नही पड़ती है। इन दिनों शहर में कई जगहों पर सरकारी निर्माण कार्य चल रहे हैं।

इनमें रेल विभाग, लोक निर्माण विभाग, मेट्रो काॅर्पोरेशन, एयरपोर्ट, नगर निगम, सेतु निगम, जल निगम और स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत कराए जा रहे काम शामिल हैं। यदि कवर्ड एरिया में निर्माण कार्य हों तो इससे प्रदूषण की रफ्तार पर ब्रेक लगाया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जल्दी का पूरा करने की होड़ में जेसीबी और बुलडोजर के जरिए तोड़-फोड़ से भी ज्यादा दूर तक धूल के कण फैलते रहते हैं। मिट्टी की खुदाई में उड़ने वाली धूल की रोकथाम के लिए न तो पानी का छिड़काव सही से हो रहा है और न ही खोदी गई मिट्टी को ढकने की व्यवस्था की जा रही है। यहां ग्रीन नेट और बैरिकेडिंग बोर्ड भी नदारद रहता है। खास बात यह है कि वायु प्रदूषण परखने के लिए तमाम स्थानों पर पीटी जेड कैमरा भी नहीं लगाया है। कई जगहों पर तो बिना पूरी तैयारी के काम शुरू कर दिया गया और बीच में रोक देने से भी लोगों को ज्यादा दिनों तक दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

स्मार्टनेस के नाम पर दे रहे प्रदूषण की सौगात

स्मार्ट सिटी योजना के अंतर्गत कराए जा रहे अमीनाबाद और लाटूश रोड में सीवर व पाइप लाइन के काम प्रदूषण फैलाने का सबसे ताजा उदाहरण हैं। यहां बारिश के दौरान लोगों को बड़ी दिक्कतें उठानी पड़ी थीं। लम्बे समय के अंतराल में थोडी राहत हुई तो फिर खुदाई तेज कर दी गई। आखिर जब बजट की कमी नहीं थी, तो काम को टुकड़ों में क्यों किया जा रहा है। जिस समय नाली की खुदाई और उसका निर्माण किया गया था, उसी समय पाइप भी डाली जा सकती थी। आज शहर प्रदूषण की चपेट में है, लेकिन यहां की खुदाई भी बिना ग्रीन नेट से कवर किए हो रहा है। राणा प्रताप चैराहा तक सड़क के दोनों किनारों पर अतिक्रमण, जाम और निर्माण सामग्री है। आम आदमी इससे महीनों से परेशान है।


पुल निर्माण में जमकर बरती जा रही अनियमितता

मुंशी पुलिया में दो पुलों का निर्माण कार्य चल रहा है। यहां पिछले साल नवम्ंबर माह में सम्बंधित कम्पनी पर प्रदूषण फैलाने को लेकर कार्रवाई भी की गई थी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नजरें इंदिरा नगर और मुंशी पुलिया में बन रहे दो पुलों के निर्माण पर हैं, इसके बावजूद नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। 21 और 25 नवम्बर को फ्लाईओवर के निर्माण कार्य का निरीक्षण भी किया गया था। यह पुल जीएस प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बना रही है। इंदिरा नगर सेक्टर-25 चैराहा से खुर्रम नगर चैराहा तक बन रहे पुल के निर्माण कार्य में भी कई खामियां देखने को मिल जाएंगी। यहां विजय कंस्ट्रक्शंस (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड पुल का निर्माण कर रही है। मिट्टी की खुदाई और सर्विस लेन की धूल हमेशा उड़ती रहती है।

निर्माण कार्य की धीमी गति प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण

शहर के टीपी नगर में भी अमौसी एयरपोर्ट के पास की हालत ठीक नहीं है, यहां भी हवा में धूल के कण उड़ते रहते हैं। शहीद पथ फ्लाईओवर का काम काफी समय से चल रहा है। हालांकि, अब उम्मीद की जा रही है कि जी20 सम्मेलन से पहले इसे शुरू करा दिया जाएगा। वैसे भी काॅमर्शियल एरिया होने की वजह से यहां प्रदूषण काफी रहता है, जबकि ऐसे निर्माण कार्य समय पर न होने से दिक्कत बढ़ जाती है। शहर में जाम और प्रदूषण को कम करने के लिए सांसद और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का यह ड्रीम प्रोजेक्ट भी इसी साल 2023 में पूरा किया जाना है। आउटर रिंग रोड की लम्बाई 104 किलोमीटर है। पीजीआई से कानपुर रोड, बिजनौर और मोहान रोड पर दौड़ रहे डम्पर अपने साथ काफी धूल हवा में उड़ाते रहते हैं। हालांकि, इसका विस्तार काफी है लेकिन पानी का छिड़काव तो किया ही जा सकता है। इसके साथ ही यह तय है कि धीमी गति से यदि काम हुआ तो ज्यादा दिन तक वातावरण में धूल पहुंचता रहेगा।

रूमी गेट के पास वैकल्पिक रास्ता बना मुसीबत

दिसम्बर 2022 में रूमी गेट के सौंदर्यीकरण के लिए अचानक बिना तैयारी के डायवर्जन लागू कर दिया गया। इस दौरान भारी वाहनों को बंधा रोड जबकि छोटे वाहनों के लिए वैकल्पिक रास्ता बनाया गया। इस दौरान पत्थरों के टूटने और गड्ढे होने से धूल उड़ती रहती है। इस रास्ते से दिन भर में हजारों वाहनों का आवागमन होता है, ऐसे में लगातार धूल हवा में मिलती रहती है। इसके अलावा आरडीएसओ से तालकटोरा प्लाईओवर पर भी बिना कवर व मानकों की निगरानी के काम चल रहा है।

कल्ली पश्चिम में कई कम्पनियों ने बड़े पैमाने पर जमीन खरीद रखी है। यहां जेसीबी से खुदाई तथा डम्परों से मिट्टी की भराई व ढुलाई लोगों के लिए मुसीबत बनी हुई है। यह तो सिर्फ कुछ उदाहरण हैं। अभी शहर में सात प्लाईओवर बनने हैं। इनके लिए सरकारी स्तर पर पैसों का प्रबंध भी करा दिया गया है। इनमें भरवारा, दिलकुशा, मोहनलालगंज क्राॅसिंग, तेलीबाग चैराहा पुल, अनूपगंज क्राॅसिंग पुल आदि पर काम होना है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में तालाब-पोखरों, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर भी काम चल रहा है। यह ऐसे काम हैं, जिनमेें भारी वाहनों तथा मशीनों का उपयोग किया जा रहा है, ऐसे में हर दिन हवा जहरीली हो रही है।

नई काॅलोनियों में जमकर उड़ रहा माखौल

लखनऊ शहर में तेजी से चारों ओर नई-नई काॅलोनियां बनाई जा रही हैं। इनमें ज्यादातर तो अनियोजित तरीके से बसाई जा रही हैं। कुछ रेरा की रजिस्टर्ड हैं, तो कुछ लोग किसानों की जमीन को खरीदकर या एग्रीमेंट कराकर प्लाटिंग करा रही हैं। इससे शहर तो फैलता जा रहा है लेकिन जिस गति से मकान और आबादी बढ़ रही है, उस गति से पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। सरकारी मानकों को भी दरकिनार कर दिया जा रहा है और इसमें तमाम विभागों के अफसरों की मिलीभगत रही है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे ही जरूरतें भी बढ़ती जा रही हैं। इनकी पूर्ति करने में भी मनमानी चल रही है और इसका परिणाम भुगतने को लोग मजबूर हैं।

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