Glory of Somnath: शिव पुराण में कोटिरुद्र संहिता के अनुसार सूतजी ने शिवलिंगों की महिमा का वर्णन किया है। महर्षियों के द्वारा ज्योतिर्लिंगों की महिमा के विषय में प्रश्न पूछने पर सूतजी कहते हैं, सम्पूर्ण तीर्थ लिंगमय हैं। सब कुछ लिंग में ही प्रतिष्ठित है। भगवान शिव ने सब लोगों पर अनुग्रह करने के लिए ही देवता, असुर और मनुष्यों सहित तीनों लोकों को लिंग रूप में व्याप्त कर रखा है। समस्त लोकों पर कृपा करने के उद्देश्य से ही भगवान महेश्वर तीर्थ-तीर्थ में और अन्य स्थलों में भी नाना प्रकार के लिंग धारण करते हैं। जहां-जहां जब-जब भक्तों ने भक्तिपूर्वक भगवान शम्भु का स्मरण किया, तहां-तहां, तब-तब अवतार लेकर वे अवस्थित हो गये, लोकों का उपकार करने के लिए स्वयं अपने स्वरूपभूत लिंग की कल्पना की। सूतजी कहते हैं कि ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहले सोमनाथ का नाम आता है।
क्या है इस मंदिर की पौराणिक कहानी
सोमनाथ ज्योतिर्लिंगों के प्रादुर्भाव की कथा प्रसंग में महामना प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्विनी आदि 27 कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ किया था। चन्द्रमा को स्वामी के रूप में पाकर वे दक्ष कन्याएं विशेष शोभा पाने लगीं तथा चन्द्रमा भी उन्हें पत्नी के रूप में पाकर निरंतर सुशोभित होने लगे। उन सब पत्नियों में भी जो रोहिणी नाम की पत्नी थी, एक मात्र वही चन्द्रमा को जितनी प्रिय थी, उतनी दूसरी कोई पत्नी कदापि प्रिय नहीं हुई, इससे दूसरी पत्नियों को बड़ा दुख हुआ। वे सब अपने पिता की शरण में गयीं। वहां जाकर उन्होंने जो भी दुख था, उसे पिता को निवेदन किया।
वह सब सुनकर दक्ष भी दुखी हो गये और चन्द्रमा के पास आकर शांतिपूर्वक बोले, तुम्हारे आश्रम में रहने वाली जितनी स्त्रियां हैं, उन सबके प्रति तुम्हारे मन में न्यूनाधिक भाव क्यों है? तुम किसी को अधिक और किसी को कम प्रेम क्यों करते हो? अब तक जो किया, सो किया, अब आगे फिर कभी ऐसा विषमतापूर्वक बर्ताव तुम्हें नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसे नरक देने वाला बताया गया है। सूतजी कहते हैं कि महर्षियों! अपने दामाद चन्द्रमा से स्वयं ऐसी प्रार्थना करके प्रजापति दक्ष घर को चले गये। उन्हें पूर्ण निश्चय हो गया था कि अब फिर आगे ऐसा नहीं होगा, पर चन्द्रमा ने प्रबल भावों से विवश होकर उनकी बात नहीं मानी। वे रोहिणी में इतने आसक्त हो गये थे कि दूसरी किसी पत्नी का कभी आदर ही नहीं करते थे।
इस बात को सुनकर दक्ष दुखी हो फिर स्वयं आकर चन्द्रमा को उत्तम नीति से समझाने तथा न्यायोचित बर्ताव के लिए प्रार्थना करने लगे। इस पर भी चन्द्रमा के बर्ताव में कोई परिवर्तन नहीं आया तो दक्ष चन्द्रमा से बोले, फिर तुमने मेरी बात नहीं मानी। इसलिए आज श्राप देता हूं कि तुम्हें क्षय का रोग हो जाये। दक्ष के इतना कहते ही क्षण भर में चन्द्रमा क्षय रोग से ग्रस्त हो गये। उनके क्षीण होते ही उस समय सब ओऱ हाहाकार मच गया। सब देवता औऱ ऋषि बड़े दुखित होकर चन्द्रमा के ठीक होने का उपाय खोजने लगे। चन्द्रमा ने इन्द्र आदि सब देवताओं तथा ऋषियों को अपनी अवस्था के बारे में सूचित किया। तब इन्द्र आदि देवता तथा वशिष्ठ आदि ऋषि ब्रह्माजी की शरण में गये। उनकी बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि चन्द्रमा के कष्ट निवारण के लिए एक उत्तम उपाय बताता हूं।
चन्द्रवात देवताओं के साथ प्रभास नामक शुभ क्षेत्र में जायें और वहां मृत्युंजय मंत्र का विधिवत अनुष्ठान करते हुए भगवान शिव की आराधना करें। अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके वहां चन्द्रदेव नित्य तपस्या करें, इससे प्रसन्न होकर शिव उन्हें क्षयरहित कर देंगे। तब देवताओं तथा ऋषियों के कहने से ब्रह्माजी की आज्ञा के अनुसार चन्द्रमा ने वहां छह महीने तक निरंतर तपस्या की, मृत्युंजय मंत्र से भगवान शिव शंकर का पूजन किया। दस करोड़ मंत्र का जप और मृत्युंजय भगवान का ध्यान करते हुए चन्द्रमा वहां स्थिर चित्त होकर लगातार खड़े रहे। उन्हें तपस्या करते देखकर भक्तवत्सल भगवान शंकर प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हो गये और अपने भक्त चन्द्रमा से बोले-चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो, मैं प्रसन्न हूं, तुम्हें सम्पूर्ण उत्तम वर प्रदान करूंगा। चन्द्रमा ने कहा कि यदि आप प्रसन्न हैं तो मेरे लिए क्या असाध्य हो सकता है। हे शंकर प्रभो! आप मेरे शरीर के इस क्षयरोग का निवारण कीजिये। मुझसे जो अपराध बन गया हो उसे क्षमा कीजिये।
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शिवजी ने कहा, हे चन्द्रदेव! एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण हो औऱ दूसरे पक्ष में फिर वह निरन्तर बढ़ती रहे। तदनन्तर चन्द्रमा ने भक्तिभाव से भगवान शंकर की स्तुति की, तो वे भगवान शिव साकार प्रकट हो गये। देवताओं पर प्रसन्न हो उस क्षेत्र के महात्म्य को बढ़ाने तथा चन्द्रमा के यश विस्तार करने के लिए भगवान शंकर उन्हीं के नाम पर वहां सोमेश्वर कहलाये और सोमनाथ के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हुए। सोमनाथ का पूजन करने से वे उपासक के क्षय तथा कोढ़ आदि रोगों का नाश कर देते हैं। वहीं सम्पूर्ण देवताओं ने सोमकुण्ड की भी स्थापना की है, जिसमें शिव औऱ ब्रह्मा का सदा निवास माना जाता है। चन्द्रकुण्ड इस भूतल पर पापनाशन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। जो मनुष्य उसमें स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। क्षय आदि जो असाध्य रोग होते हैं, वे सब उस कुण्ड में छह मास तक स्नान करने मात्र से नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य जिस फल के उद्देश्य से इस उत्तम तीर्थ का सेवन करता है, उस फल को सर्वथा प्राप्त कर लेता है।
लोकेन्द्र चतुर्वेदी