अश्विन पूर्णिमा की महिमा

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अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की विशेष महिमा पुराणों में बताई गई है। अश्विन मास की पूर्णिमा को भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाला कोजागर व्रत किया जाता है एवं शरत्पूर्णिमा का व्रत किया जाता है। अश्विन मास की पूर्णिमा की रात्रि में भगवती लक्ष्मी हर गृहस्थ के गृह में विचरण करती हैं। जो गृहस्थ मनुष्य भगवती लक्ष्मी का रात्रि जागरण कर ‘कोजागर व्रत’ करता है, भगवती लक्ष्मी उसे धन-धान्य से समृद्ध बनाती हैं। इस व्रत में निशीथव्यापिनी अर्थात रात्रि में प्राप्त होने वाली पूर्णिमा तिथि को ऐरावत पर बैठकर इन्द्र और महालक्ष्मी का पूजन कर उपवास करना चाहिए।

रात्रि में शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए अथवा यथा शक्ति एकसौ या अधिक दीपकों को प्रज्ज्वलित कर देव मंदिरों, बाग-बगीचों, तुलसी, पीपल, वटवृक्ष के नीचे दीपदान करना चाहिए। प्रातःकाल होने पर स्नानादि से निवृत्त होकर इन्द्र एवं महालक्ष्मी का पूजन करके ब्राह्मणों को घी, शक्कर मिश्रित ‘खीर’ का भोजन कराकर वस्त्रादि, दक्षिणा और स्वर्ण व दीपक दान करने से महालक्ष्मी की प्रसन्नता होती है एवं दरिद्रता का शमन होता है व अनन्त पुण्य फल की प्राप्ति होते है।

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अश्विन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा शरत्पूर्णिमा कहलाती है। इस दिन पूर्ण चन्द्रमा के मध्य आकाश में स्थित होने पर उनका पूजन कर अर्ध्य प्रदान किया जाता है। शरत्पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की किरणों एवं प्रकाश ने अमृत निवास रहता है, इसलिए उसकी किरणों से अमृतत्व रूपी आरोग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने रासलीला की थी, इसलिए व्रज में इस पर्व को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस तिथि को रासोत्सव भी कहा जाता है। इस शरत्पूर्णिमा को भगवान श्री राधाकृष्ण का विशेष पूजन किया जाता है एवं उनके निमित्त यथा शक्ति दीपदान किया जाता है। इस दिन अर्धरात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर भगवान को भोग लगाना चाहिए। खीर से भरे पात्र को रात में चन्द्रमा के प्रकाश में रखना चाहिए। इसी शरत्पूर्णिमा की रात्रि के समय चन्द्र किरणों के द्वारा अमृत गिरता है। इस खीर को प्रसाद रूप में सेवन करने से आयु, आरोग्य एवं श्री लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन कांसे के पात्र में घी भरकर स्वर्ण सहित ब्राह्मण को या मंदिर में दान करने से आयु, तेज, स्वास्थ्य रक्षा एवं सुख शांति की प्राप्ति होती है।