लखनऊः प्रथम पूज्य, विघ्नहर्ता श्री गणेश के पूजन को समर्पित गणेश चतुर्थी पर हर ओर ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया’ जैसे जयकारे गूंज रहे हैं। शहर के हर इलाके में स्थापित किए गए पंडालों में जहां सुबह-शाम शंख, घंटे व खंजरी की गूंज सुनाई दे रही है, वहीं श्री राधामाधव देवस्थानम् मंदिर में श्रद्धालु बप्पा के दर्शनों के लिए उमड़ रहे हैं।
सुबह से लेकर शाम तक लग रहा श्रद्धालुओं का तांता
वसुप्रधा फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा माधवग्रीन्स, गोमतीनगर में स्थापित श्री राधामाधव देवस्थानम् मंदिर अपनी अलौकिक छटा के लिए जाना जाता है। यहां पर वर्ष भर विभिन्न धार्मिक आयोजन चलते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म व छठी उत्सव के संपन्न होने के बाद इन दिनों यहां गणेशोत्सव की धूम मची हुई है। सुबह से लेकर शाम तक यहां पर श्रद्धालु गणपति बप्पा के पूजन-अर्चन करने के लिए उमड़ रहे हैं। यहां पर स्थापित गजानन की मूर्ति का अनुपम श्रृंगार हर किसी को मंत्रमुग्ध कर रहा है और सुबह-शाम की आरती में हजारों लोग सम्मिलित होकर बप्पा को अपने-अपने तरीके से रिझा रहे हैं। मंदिर प्रबंधन द्वारा भी उमड़ रही भक्तों की भारी भीड़ को लेकर विशेष प्रबंध किए गए हैं और दर्जनों पुजारी व्यवस्था को दुरूस्त करने में लगे हुए हैं। यहां पर गणपति बप्पा के दर्शन कर भक्त निहाल हो रहे हैं। इसी तरह शहर के पत्रकारपुरम, अलीगंज, जानकीपुरम, राजाजीपुरम, मड़ियांव, तेलीबाग सहित विभिन्न इलाकों में भक्तों द्वारा गणेश चतुर्थी उत्सव पर भगवान श्रीगणेश की विशालकाय प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं और यहां भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। प्रतिमाओं का श्रृंगार हर किसी को अपनी ओर मंत्रमुग्ध कर रहा है और भक्तगण गणपति बप्पा को एकटक निहारते नजर आ रहे हैं।
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हरितालिका तीज पर भी मंदिर में उमड़े श्रद्धालु, किए दर्शन
पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए महिलाओं द्वारा रखे जाने वाले हरितालिका तीज व्रत पर भी श्री राधामाधव देवस्थानम् मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। यहां शाम छह बजे से ही सुहागिन महिलाएं भगवान भोलेनाथ का विधि-विधान से पूजन-अर्चन करती नजर आईं। शाम के समय देवाधिदेव महादेव का श्रृंगार देखने लायक था और हर कोई भोले बाबा की भक्ति में लीन नजर आया।
शिव पुराण की कथा के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय में गंगा तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया, काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटा और कई वर्षों तक केवल हवा पीकर ही जीवन व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे। इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से माता पार्वती के विवाह का प्रस्ताव लेकर पिता हिमवान के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। सखी के पूछने पर पार्वती ने बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही है, जबकि उसके पिता विष्णु से विवाह कराना चाहते हैं। सहेली की सलाह पर पार्वती घने जंगल के गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई।
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन पार्वती ने रेत से शिवलिंग बनाए और स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट होकर पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। तभी से यह व्रत का विधान चल रहा है तथा मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि और पूर्ण निष्ठा से व्रत करती है, वह अपने मन के अनुरूप पति और पति का दीर्घायु जीवन को प्राप्त करती है।
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