Monday, January 20, 2025
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आजादी के दिवाने : अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति के लिए “हेमचंद्र कानूनगो” ने विदेश में ली थी ट्रेनिंग

 

कोलकाता: आजादी का दिन करीब आ रहा है और जश्न की तैयारियां चल रही हैं। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को तो हर साल याद किया ही जाता है लेकिन आजादी के इतिहास में कई ऐसे गुमनाम चेहरे दफन कर दिए गए, जिन्होंने न केवल इस अनमोल आजादी के लिए अपनी सांसों को दफन किया था, बल्कि अंग्रेजों के मन में खौफ पैदा करने के लिए सशस्त्र क्रांति की नींव डाली थी। ऐसे क्रांतिकारियों में सबसे पहला नाम है “हेमचंद्र कानूनगो” का। वे पहले क्रांतिकारी थे, जिन्होंने सैन्य और अन्य हिंसक क्रांति के लिए प्रशिक्षण के लिए विदेश यात्रा की थी। वंदे मातरम लिखा हुआ भारत का पहला ध्वज जो कि 1906 में भीकाजी कामा द्वारा फहराया गया था, उसके निर्माता भी वही थे। हेमचंद्र का जन्म 12 जून 1871 को तत्कालीन बंगाल प्रान्त के मिदनापुर जिले में हुआ था।

क्रांति के लिए धन की जरूरत पड़ने पर बेच दिया था घर

देश के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प उनके मन में बहुत पहले से था, लेकिन वो जानते थे कि बिना तकनीकी सहायता के हम अंग्रेजों को नहीं हरा सकते हैं। हेमचंद्र तकनीकी ज्ञान के लिए यूरोप गए। यात्रा के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए उन्होंने कलकत्ता में अपना घर भी बेच दिया।

1906 के अंत में मार्शिले (फ्रांस) पहुंचकर उन्होंने वहां कुछ महीने बिताए और स्विट्जरलैंड, फ्रांस और इंग्लैंड में उन लोगों से संपर्क में आने की कोशिश कर रहे थे, जो या तो स्वयं क्रांतिकारी थे या क्रांतिकारियों को जानते थे। उन्होंने पेरिस में एक रूसी प्रवासी से बम बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। हेमचंद्र जनवरी 1908 में यूरोप से आधुनिक तकनीकी साहित्य के साथ लौटे, जिनमें बम बनाने की सत्तर पृष्ठ का मैनुअल, जिसका अनुवाद रूसी से किया गया था।

खुदीराम बोस को बम बनाकर कानूनगो ने ही दिया था

उन्होंने कलकत्ता के मानिकतल्ला में एक गुप्त बम फैक्ट्री “अनुशीलन समिति” खोली, जिसके संस्थापक सदस्य हेमचंद्र कानूनगो, अरबिंदो घोष (श्री अरबिंदो) और बरिंद्र कुमार घोष थे। इसी मानिकतला में सबसे पहले वंदे मातरम लिखा हुआ भारत का ध्वज फहराया गया था। क्रूर ब्रिटिश जज किंग्सफोर्ड को मारने के लिए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने जो बम फेंका था, वो हेमचंद्र ने ही बनाया था। किंग्सफोर्ड को मारने की योजना विफल हो गयी थी, इस कारण खुदीराम बोस तो पकड़े गए थे लेकिन प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली थी। इस घटना के बाद हेमचंद्र की गुप्त बम फैक्ट्री पर ब्रिटिश पुलिस ने छापा मारा और बंद कर दिया। इस योजना में शामिल लगभग सभी क्रांतिकारी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

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इतिहास में क्रांतिवीर को कभी नहीं मिला सम्मान, गुमनामी में हुई मौत

हेमचंद्र कानूनगो का ज्ञान भारत के साथ-साथ विदेशों में स्थित भारतीय राष्ट्रवादी संगठनों में भी फैला हुआ था। 1908 में हेमचंद्र अलीपुर बम मामले (1908–09) में अरबिंदो घोष के साथ मुख्य सह-अभियुक्त थे। उन्हें अंडमान जेल में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उन्हें 1921 में रिहा कर दिया गया। वर्ष 1926 में उनकी एक पुस्तक एकाउंट ऑफ दि रिवोल्यूशनरी मूवमेंट इन बंगाल प्रकाशित हुई थी। हेमचंद्र ने इस पुस्तक में बंगाल में पहली सशस्त्र राजनीतिक क्रांति के इतिहास का एक तटस्थ विश्लेषण प्रस्तुत किया था। जीवन के अंतिम दिन हेमचंद्र ने राधानगर में बिताए। चूंकि उन्हें पेंटिंग और फोटोग्राफी का भी शौक था इसलिए अपना अधिकतर समय इन्ही कार्यों में व्यतीत करते थे। 08 अप्रैल 1951 को इस क्रांतिकारी की गुमनामी में ही मौत हो गई।

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