अमेरिका का साथ देने चीन सागर पहुंचा फ्रांस, हक्का-बक्का रह गया चीन

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वाशिंगटनः अमेरिका का साथ देते हुए फ्रांस ने दक्षिण चीन सागर में अपनी एक परमाणु पनडुब्‍बी को तैनात कर दिया है। इससे सीधे तौर पर चीन को चुनौती मिली है। इससे चीन हक्का-बक्का है। हाल में ही अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ प्रतिस्‍पर्धा चरम पर है। बाइडेन ने इसके साथ यूरोप और एशिया में समान विचारधारा वाले सहयोगी देशों का आह्वान किया था।

फ्रांस के इस कदम को बाइडेन के आह्वान से जोड़कर देखा जा रहा है। फ्रांस के इस कदम से दक्षिण चीन सागर में संघर्ष की आशंका तेज हो गई है। बाइडेन की अपील का असर अन्य यूरोपीय देशों पर भी पड़ा है। अब दक्षिण चीन सागर में चीन की अगली रणनीति इंतजार किया जा रहा है। फ्रांस के रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पारली ने अपने एक ट्वीट में कहा था कि पेरिस का यह कदम अंतर्राष्‍ट्रीय विधि के अनुरूप है और यह फ्रांसीसी नौसेना की क्षमता का भी प्रमाण है। उन्‍होंने कहा कि हमारी नौसेना लंबे समय तक ऑस्‍ट्रेलिया, अमेरिका और जापान की रणनीतिक साझेदार है।

रक्षा मंत्री पारली ने जोर देकर कहा कि फ्रांस की यह कार्रवाई एक व्‍यापक अंतर्राष्‍ट्रीय प्रयास का हिस्‍सा है। यह वैधानिक है। इसका मकसद अंतर्राष्‍ट्रीय कानून के तहत समुद्री सीमा की सुरक्षा करना है। हालांकि, उन्‍होंने अपने ट्वीट में कहीं भी चीन के खतरों का जिक्र नहीं किया।

अब ब्रिटेन और जर्मनी की भी दिलचस्‍पी बढ़ी

एशिया टाइम ने यह जानकारी साझा की है कि फ्रांस के इस कदम के बाद यूरोप के अन्‍य देश भी ऐसा कदम उठा सकते हैं। इसमें कहा गया है कि यूनाइटेड किंगडम (यूके) और जर्मनी भी दक्षिण चीन सागर में अपने युद्धपोतों की तैनाती कर सकते हैं।

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एशिया टाइम ने बताया कि यहां अब यूरोपीय ताकतों की सक्रियता बढ़ने के पूरे आसार हैं। यूरोपीय देशों के इस कदम से दक्षिण चीन सागर में बीजिंग की समुद्री महत्‍वाकांक्षाओं को बड़ा झटका लग सकता है। खास बात यह है कि दक्षिण चीन सागर में यूरोपीय शक्तियों की बढ़ती भागीदारी बाइडेन प्रशासन की रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप है।