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चार दशक पहले भी इसी मुद्दे पर गिर चुकी है पवार की सरकार, लगा था राष्ट्रपति शासन

मुंबईः महाराष्ट्र में उद्धव सरकार बनाने में सबसे अहम रोल शरद पवार का ही माना जाता है, लेकिन इन दिनों महाराष्ट्र सरकार पर संकट के बादल घिरते नजर आ रहे हैं। एनसीपी नेता और राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते पार्टी के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उनकी पार्टी के नेताओं ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को सीलबंद लिफाफा सौंप कर सीबीआई जांच की मांग उठाई है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था को लेकर सरकार और विपक्ष में खींचातानी हुई हो करीब चार दशक पहले भी कानून व्यवस्था के मामलों में घिरी शरद पवार की सरकार को राज्यपाल ने बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था।

भाजपा नेता मुनगंटीवार ने परमबीर सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों को गंभीरता से लेने की बात कहते हुए वर्तमान सरकार की तुलना 1980 से की जब महाराष्ट्र में शरद पवार की प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।

यहां बता दें कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर जिलेटिन से भरी स्‍कॉर्पियो मिलने के मामले में हर रोज हो रहे खुलासों से महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार घिरती जा रही है। मुंबई के पुलिस कमिश्‍नर पद से हटाए गए परमबीर सिंह ने महाराष्‍ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ रुपये महीने की वसूली के गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसे लेकर बीजेपी ने मोर्चा खोल दिया है।

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कानून व्यवस्था ही बनी थी वजह

महाराष्ट्र की सियासत में ऐसे ही कानून व्यवस्था का मामला चार दशक पहले भी सामने आया था, जिसे लेकर उस समय राज्य के विपक्षी दल कांग्रेस ने तत्कालीन राज्यपाल सादिक अली से मुलाकात कर महाराष्ट्र की बिगड़ी स्थिति से उनको वाकिफ कराया था। कांग्रेस नेताओं की शिकायत पर राज्यपाल ने शरद पवार सरकार से मौजूदा कानून व्यवस्था की हालत पर रिपोर्ट मांगी थी। इसके बाद गवर्नर ने 17 फरवरी 1980 को शरद पवार की अगुवाई वाली प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश कर दी थी। इस तरह से राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा था।

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