Saturday, January 18, 2025
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हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियल झील की वजह से आने वाली बाढ़ ने बढ़ायी वैज्ञानिकों की चिंता

नई दिल्लीः हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियल झील की वजह से आने वाली बाढ़ और उससे होने वाले नुकसान पर वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है। इसी साल फरवरी में हुई उत्तराखंड आपदा को देखते हुए मानसून के मौसम की समयसीमा का विस्तार किये जाने की भी आवश्यकता बताई गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सेटेलाइट से मॉनिटरिंग करके ही अचानक बाढ़ आने के खतरों से बचा जा सकता है। साथ ही बाढ़ आने से पहले चेतावनी देकर मानव जीवन को बचाने में मदद मिल सकती है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने ग्लेशियल झील की वजह से बाढ़ के दौरान मानव जीवन की क्षति कम करने के लिए भविष्य की रणनीति तय करने का भी सुझाव दिया है।

आईआईटी, कानपुर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.तनुज शुक्ला और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से किए गए अध्ययन को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान बढ़ने के साथ ही अत्यधिक वर्षा में भी बढ़ोतरी हुई है। पृथ्वी के ‘थर्ड पोल’ कहे जाने वाले हिमालयी क्षेत्र ग्रह के ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर सबसे बड़े हिमपात का कारण बनते हैं। हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघलकर नई झीलें बना रहे हैं। इसके अलावा तापमान बढ़ने और अत्यधिक वर्षा से हिमालयी क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक खतरों का डर बना रहता है जिसमें ग्लेशियल झील का प्रकोप यानी बाढ़ भी शामिल है। अध्ययन में कहा गया है कि ग्लेशियल झील में बाढ़ का प्रकोप तब होता है जब या तो हिमाच्छादित झील के साथ प्राकृतिक बांध फट जाता है या जब झील का स्तर अचानक बढ़ जाता है। झील के किनारे ओवरफ्लो हो जाने से भी विनाशकारी पानी का बहाव होता है। उदाहरण के रूप में बताया गया है कि 2013 में हिमस्खलन के कारण उत्तर भारत की चोराबाड़ी झील से अचानक आई बाढ़ से बोल्डर और मलबे के कारण नदी की घाटी नीचे बह गई जिसके परिणामस्वरूप 5,000 से अधिक लोग मारे गए। जलवायु परिवर्तन के साथ हिमालय क्षेत्र में इस तरह की घटनाओं के बार-बार होने की संभावना जताई गई है। हालांकि इस बात पर भी चिंता जताई गई है कि दूरस्थ, चुनौतीपूर्ण हिमालयी इलाके और पूरे क्षेत्र में संचार कनेक्टिविटी की कमी ने प्रारंभिक बाढ़ चेतावनी प्रणाली के विकास को लगभग असंभव बना दिया है।

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अपने हालिया शोध के बाद वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि मानसून के मौसम (जून-जुलाई-अगस्त) के दौरान पर्वतीय जलधाराओं में पिघले पानी का बहाव सबसे अधिक होता है। उत्तराखंड में चमोली जिले के जोशीमठ में 7 फरवरी को हुए हिमस्खलन के बाद गंगा, धौली गंगा की सहायक नदी में ग्लेशियर के पिघले पानी का अचानक उछाल बताता है कि मानसून के मौसम की समयसीमा का विस्तार करने की आवश्यकता है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने इस शोध के बाद सुझाव दिया है कि भविष्य में ग्लेशियल झील में बाढ़ का खतरा कम करने के प्रयासों में उपग्रह आधारित निगरानी स्टेशनों के नेटवर्क का निर्माण शामिल होना चाहिए जो समय से जोखिम और वास्तविक समय की जानकारी दे सकें।

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