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ब्रिटेन में आई पहली कोरोना वैक्सीन, भारत को इसलिए नहीं मिल पाएगा फायदा

लंदन: ब्रिटेन ने बुधवार को अपनी दवाओं के नियामक की सलाह पर फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन को मंजूरी दे दी। वैक्सीन अगले सप्ताह से पूरे ब्रिटेन में उपलब्ध कराया जाएगा। ब्रिटेन के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड सोशल केयर के मीडिया के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, "सरकार ने आज स्वतंत्र मेडिसिन एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) की सिफारिश पर फाइजर-बायोएनटेक के कोविड-19 वैक्सीन को इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी है।"

एमएचआरए के विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकाला है कि वैक्सीन सख्त क्लिनिकल ट्रायल के महीनों के बाद सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावशीलता के अपने सख्त मानकों और डेटा के गहन विश्लेषण पर खरा उतरा है। केयर होम के निवासियों, स्वास्थ्य और देखभाल कर्मचारियों, बुजुर्गो और नैदानिक रूप से बेहद कमजोर लोगों को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन प्राप्त होगा।

भारत के लिए चुनौती

इस वैक्सीन को -70 डिग्री सेल्सियस पर रखना होता है और इस तापमान को वैक्सीन के लाने ले जाने और वैक्सीन दिए जाने तक बनाए रखना पड़ता है। वहीं mRNA तकनीक बेहद मुश्किल होती है, लिहाजा इस तरीके से बनी वैक्सीन काफी महंगी होती है। ब्रिटेन जैसे विकसित और ठंडे देश के लिए ऐसे इंतज़ाम करना और इतना खर्च उठाना बहुत अधिक मुश्किल नहीं है। ऐसे में वैक्सीन के आने की खबर जहां ब्रिटेन और दुनिया के कई देशों के लिए अच्छी है। वहीं जानकारों के मुताबिक ऐसी वैक्सीन भारत की परिस्थितियों में कारगर नहीं है।

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भारत भी वैक्सीन की रेस में

इस सबके बावजूद भारत के लिए ये खबर अच्छी है कि कोरोना वायरस के खिलाफ आखिरकार एक वैक्सीन आ गई है। भारत भी वैक्सीन लाने की रेस में ज़्यादा पीछे नहीं है। देश में कुछ वैक्सीन ट्रायल के अंतिम चरण में हैं। फरवरी तक देश को अपना वैक्सीन मिल जाने की उम्मीद है। देरी होने की वजह एक ही है कि ये वैक्सीन असरदार भी हों और सुरक्षित भी।