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हरितालिका तीज का व्रत करने से होती है अखंड सौभाग्य की प्राप्ति, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि

नई दिल्लीः हरितालिका तीज का त्योहार प्रत्येक भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, त्योहारों में हरितालिका सबसे बड़ी तीज होती है। यह व्रत सर्वप्रथम मां पार्वती ने किया था। इसलिए इसे बेहद खास व्रत माना गया है। सुहागिनों को ये व्रत करने से भगवान शिव-मां पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। चूंकि मां पार्वती ने ये व्रत करते हुए अन्न-जल त्याग दिया था, इसलिए इस व्रत को करने वाली महिलाएं अन्न-जल ग्रहण नहीं करती हैं।

मान्यता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए रखती हैं। इस व्रत को सभी व्रतों में सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि यह व्रत निर्जला रखा जाता है। कुंवारी कन्याएं हरितालिका तीज व्रत को सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए रखती हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों मे वर्णन किया गया है कि भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने इस व्रत को किया था। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम के वक्त भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। इस व्रत का विधान आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति की प्राप्ति, चित्त और अन्तरात्मा की शुद्धि, संकल्प शक्ति की दृढ़ता, वातावरण की पवित्रता के लिए लाभकारी माना जाता है।

हरितालिका तीज का शुभ मुहुर्त
ज्योतिषियों के अनुसार हरितालिका तीज का शुभ मुहूर्त 9 सितम्बर को है। पूजा मुहूर्त प्रातः 6.03 बजे से प्रातः 8.33 बजे तक है। सांध्य पूजा मुहूर्त सायं 6.33 बजे से 8ः51 बजे तक है। ज्योतिषियों के अनुसार तृतीया तिथि प्रारम्भ 8 सितम्बर की रात्रि 2.34 बजे तथा तृतीया तिथि समाप्त 9 सितम्बर है।

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हरितालिका तीज की पूजा विधि
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही जागकर नित्यकर्मों से निवृत्त होने के बाद पूजा की तैयारियां शुरू करनी चाहिए। इस दिन महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां और मेंहदी लगाती हैं। मेंहदी सुहाग का प्रतीक है। हरितालिका तीज में श्रीगणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। सर्वप्रथम मिट्टी से तीनों की प्रतिमा बनाएं। शिव-पार्वती एक ही विग्रह में होते हैं। साथ ही देवी पार्वती की गोद में भगवान गणेश भी विराजमान रहते हैं। भगवान गणेश को तिलक करके दूर्वा अर्पित करें। माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें, और पीताम्बर रंग की चुनरी चढ़ायें। इस प्रकार षोडशोपचार पूजन के उपरांत कलश स्थापन करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा में फूल, बेलपत्र, शमिपत्री, धूप, दीप, गन्ध, चन्दन, चावल, विल्वपत्र, पुष्प, शहद, यज्ञोपवीत, धतूरा, कमलगट्टा, आक का फल या फूल का प्रयोग करें।

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