धमतरी : खरीफ फसल (kharif crop) की खेती के समय पर किसानों को डीएपी उर्वरक नहीं मिल पाने से खेती का कार्य प्रभावित हो रहा है। ऐसे में कृषि विभाग ने अच्छे उत्पादन के लिए डीएपी के बदले जैविक खाद व अन्य उर्वरक का उपयोग करने की सलाह दी है। साथ ही कहा गया है कि हरी खाद का ज्यादा से ज्यादा उपयोग, रोपा वाले धान क्षेत्र में नर्सरी के साथ ही अन्य रकबे में हरी खाद की फसल लगाई जाए।
देश में डीएपी उर्वरक की कम उपलब्धता के मद्देनजर किसानों को इसके विकल्प के संबंध में कृषि विभाग ने सम सामयिक सलाह दी है। किसान हरी खाद का ज्यादा से ज्यादा उपयोग, रोपा वाले धान क्षेत्र में नर्सरी के साथ ही अन्य रकबे में हरी खाद की फसल लगाएं। किसान अधिक से अधिक कल्चर का उपयोग करें। कहा गया है कि इसे 10-15 किलोग्राम फास्फेटिकि और नाइट्रोजीनस कल्चर से 10-15 किलोग्राम नाइट्रोजन पौधों (plants) को उपलब्ध हो सकता है, जिससे उसी अनुपात में उर्वरक कम डालना पड़ेगा। नर्सरी उखाड़ने के बाद पौधों को 10-12 घंटे कल्चर घोल में रखने और उसके बाद रोपाई करने की सलाह दी गई है। साथ ही मवेशियों को खुला नहीं छोड़ने, उन्हें बांधकर रखने की सलाह दी गई है। इससे खुले चराई का बचाव तो होगा ही, उपलब्ध गोबर को गोठानों में बेचा जा सकेगा।
ये भी पढ़ें..दिल्ली के डॉक्टर सुसाइड मामले में पांच गवाहों के बयान कोर्ट…
धान के बदले दलहन-तिलहन फसलों के क्षेत्र विस्तार की जानकारी देते हुए उप संचालक ने बताया कि राजीव गांधी न्याय योजना के तहत प्रति एकड़ दस हजार रुपये शासन की ओर से प्राप्त होगा। अरहर, मूंग एवं उड़द समर्थन मूल्य में समितियों में क्रय करने से विक्रय की समस्या नहीं होगी। साथ ही मूल्य अधिक, लागत व्यय कम होने तथा वर्तमान स्थिति के अनुसार श्रमिक, मजदूर उपलब्ध नहीं हो पाने की समस्या का निदान होगा, जिससे धान की तुलना में शुद्ध लाभ अधिक होगा। इसे किसानों के भोजन में उपयोग करने से उन्हें पौष्टिक आहार भी मिलेगा। धान के बदले कोदो, रागी फसलों के क्षेत्र विस्तार के संबंध में बताया गया कि राजीव गांधी न्याय योजना का लाभ मिलेगा। समर्थन मूल्य में वन समितियों द्वारा खरीदने की वजह से इनकी बिक्री की समस्या खत्म हो गई है। इनमें प्रति एकड़ 6-8 क्विंटल उत्पादन मिल रहा है। इससे किसान को शुद्ध लाभ नगद फसल के तौर पर मिल रहा है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कुपोषण की समस्या इन फसलों की उच्च पोषण मूल्य होने से दूर हो रही है। कोदो के साथ मक्का अथवा अरहर लगाने से दो फसल एक ही अवधि लेकर उत्पादित किया जा सकता है, जो कि अतिरिक्त शुद्ध लाभ देगा।
वर्मी कंपोस्ट से होती है जमीन की जलधारण क्षमता में बढ़ोत्तरी –
कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार यदि खेत में वर्मी कंपोस्ट का उपयोग किया जाए तो इससे जमीन की जलधारण क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है, साथ ही जड़ों का विकास होता, जिससे सूखा सहन करने की क्षमता में वृद्धि होती है। बोता वाले खेतों में यदि बोते समय कल्चर नहीं डाला गया है, तो नमी खेत में वर्मी कंपोस्ट के साथ मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। इससे भी उर्वरक के खर्च को कम किया जा सकता है। डीएपी उपलब्ध नहीं होने पर किसान यूरिया एवं सिंगल सुपर फास्फेट का समानुपातिक मिश्रण बनाकर भी उपयोग कर सकते हैं। इससे पौधों की वृद्धि में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और अतिरिक्त रूप से सल्फर, पौधों को उपलब्ध होगा।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)