हिंदी दर्शकों की चहेती “रूप की रानी” श्रीदेवी ने तीन लम्बे दशक (1967-97) तक कैमरे के सामने रहने के बाद ऋषि कपूर के साथ “कौन सच्चा कौन झूठा” की रिलीज के बाद ब्रेक ले लिया था। तब बोनी कपूर के साथ शादी करके वे गर्भवती भी थीं। आज यह यकीन करना जरा मुश्किल है कि श्रीदेवी जैसी एक्ट्रेस, जिसने चार साल की उम्र से ही कैमरे से दोस्ती कर ली थी, फिल्मों से इतना लम्बा ब्रेक लेंगी। पन्द्रह साल लम्बा...। इस बीच श्रीदेवी ने अपने आप को पेरेन्ट्स टीचर्स मीटिंग और अपनी दोनों बेटियों की अच्छी परवरिश करने में पूरी तरह व्यस्त कर लिया। ऐसा नहीं कि इस बीच श्रीदेवी को मिलने वाले वापसी के ऑफरों में कोई कमी आई हो। मिसाल के तौर पर सुभाष घई से मिलने वाला एक ऑफर, जिसमें वे यादें (2001) फिल्म में जैकी श्रॉफ के साथ श्रीदेवी को एक छोटा सा कैरेक्टर रोल देना चाहते थे। इसे श्रीदेवी के मना करने पर रति अग्निहोत्री ने किया। बी.आर. चोपड़ा श्रीदेवी को अमिताभ बच्चन के साथ बागवान (2003) के लिए साइन करना चाहते थे, लेकिन श्रीदेवी को नहीं लगा कि ये उनकी वापसी के लिए सही फिल्म है। उनकी जगह हेमा मालिनी को साइन कर लिया गया। वे एक और फिल्म अपने ही प्रोडक्शन के लिए करते-करते रह गईं। शक्ति (2002) नाम की ये फिल्म उनके दुबारा गर्भवती होने की वजह से करिश्मा कपूर को मिली। इस बीच वापसी के लिए श्रीदेवी ने टीवी पर मालिनी अय्यर (2004) नाम के एक सीरीज के साथ शुरुआत की। इस शो को बोनी कपूर प्रोड्यूस कर रहे थे, जिसमें श्रीदेवी एक पंजाबी पति (महेश ठाकुर) की दक्षिण भारतीय पत्नी बनी थी। दंपति के पंजाब आकर रहने की यह कहानी दर्शकों को बिल्कुल भी रास नहीं आई।
यह भी पढ़ेंः-लखनऊ में दिखेगा मध्य प्रदेश का लोकनृत्य
अभिनेत्रियों की वापसी हमेशा से मुश्किल रही है। माधुरी दीक्षित ने 2007 में आजा नचले के साथ वापसी की, लेकिन फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही। जूही चावला, करिश्मा कपूर, काजोल और ऐश्वर्या राय सभी हीरोइनों को वापसी के लिए संघर्ष करना पड़ा है, इसलिए शायद श्रीदेवी की वापसी का इकलौता रास्ता एक्टिंग के दम पर, किसी दमदार रोल के दम पर ही संभव था। दर्शक उन्हें स्टार के तौर पर शायद तभी स्वीकार कर सकते थे। जब इंग्लिश विंग्लिश रिलीज हुई, तो लगा कि जैसे ये रोल श्रीदेवी के लिए ही बना था। फिल्म में श्रीदेवी ने शशि गोडबोले नाम की एक महाराष्ट्र की महिला का किरदार निभाया, जिसे अंग्रेजी बोलने में दिक्कत आती है। एक ऐसी औरत की कहानी, जिसका डर ये है कि वो एक ऐसी भाषा नहीं बोल पाती जिसे ‘कूल’ समझा जाता है। फिल्म में कई ऐसे लम्हे थे, जो दर्शकों को अपने से लगें। श्रीदेवी ने इस रोल को नई ऊंचाई दे डाली। भीड़ में खो जाने और गलत समझ लिए जाने वाले ये अहसास सबके जाने-पहचाने थे। फिल्म के आखिर में अपनी भांजी की शादी में दिए गए छोटे से भाषण के साथ वे दर्शकों के दिमाग में अटक कर रह गईं। फिल्म की सफलता से यह सिद्ध हुआ कि 15 साल के बाद भी श्रीदेवी में अपने कंधों पर किसी फिल्म को खींच ले जाने का माद्दा था। फिल्म को जितना आलोचकों ने पसंद किया, उतना ही दर्शकों ने। ये फिल्म हिन्दुस्तान के बढ़ते मिडिल क्लास को भी खूब पसंद आई, जो अभी भी अंग्रेजी को सामाजिक पायदान पर ऊपर चढ़ने का जरिया मानता है। देश-विदेश में भी ये फिल्म खूब सराही गई। इंग्लिश विंग्लिश सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म की श्रेणी में अकादमी अवॉर्ड के लिए भारत की ओर से आधिकारिक रूप से नामांकित की गई। 39 साल की अभिनेत्री के लिए इससे शानदार वापसी और क्या होती। काश वे हमारे बीच और लंबे समय तक रही होती।