लखनऊः उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी कल्याण निगम के कर्मचारियों को जुलाई 2017 से अभी तक वेतन नहीं मिला हैं। साढ़े चार वर्षो से वेतन का इंतजार कर रहा निगम का कर्मचारी प्रदेश सरकार की ओर देख रहा है। एक जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होने पर राज्य के कर कानून को समाप्त किया गया और इसका सीधा असर कर्मचारी कल्याण निगम के उन डिपो पर पड़ा, जहां कर मुक्त वस्तुओं को राज्य कर्मचारियों को विक्रय किया जाता था। जीएसटी लागू होते ही राज्य स्तर पर कर मुक्त सभी वस्तुएं जीएसटी के दायरे में आ गयी। डिपो पर बिकने वाली वस्तुओं का मूल्य, बाजार में बिकने वाली वस्तुओं के बराबर हो गया।
राज्य कर्मचारियों को पहले सस्ती वस्तुएं उपलब्ध कराने वाले डिपो से लोगों ने सामान लेना कम किया और बाद में पूरी तरह से घाटा होने लगा। उत्तर प्रदेश में 160 डिपो संचालित हैं और जहां 865 कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। डिपो पर कार्यरत कर्मचारियों के हित में कर्मचारी संगठन के पदाधिकारियों ने कई बार आवाज उठायी है और प्रमुख सचिव को पत्र भेजकर इसका संज्ञान लेने की अपील की है। कर्मचारी संगठन के सक्रिय सदस्य शैलेष यादव ने बताया कि पिछले दिनों कोविड के वक्त तो कर्मचारियों को भीख मांगने तक की नौबत आ गयी। 2017 से अभी तक साढ़े चार वर्षो के भीतर कुछ कर्मचारी गुजर भी चुके हैं, जिनको वेतन नहीं मिला है।
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खाद्य एवं रसद विभाग के अंतर्गत आने वाले राज्य कर्मचारी कल्याण निगम के कर्मचारियों ने वेतन के लिए शासन से अनुदान की मांग की है। उन्होंने बताया कि शासन स्तर तक कर्मचारियों की फाइल गयी है और प्रमुख सचिव वित्त के पास तक पहुंची हैं। आगे का फैसला कर्मचारी के हित में होगा, इसकी उम्मीद ही की जा सकती है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी कल्याण निगम बनाने के लिए 1965 में पहल की गयी थी, पहले सोसायटी बनी और बाद में निगम बनाया गया। निगम के कर्मचारियों के वेतन और डिपो संबंधित खर्च के लिए अभी तक शासन से कोई अनुदान नहीं मिलता है।
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