लखनऊ: सामूहिक रूप से, दुनिया भर में 200-400 मिलियन लोग किसी न किसी दुर्लभ बीमारी के साथ जी रहे हैं। अस्सी प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ आनुवंशिक (genetic) प्रकृति की होती हैं। इसका मतलब है कि वे क्रोमोसोम या जीन में दोष के कारण होते हैं।
संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ के मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के ने शुक्रवार को बताया कि 29 फरवरी को पूरे विश्व में दुर्लभ रोग दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन दुर्लभ बीमारी को जीवन भर कमजोर करने वाली बीमारी या विकार के रूप में परिभाषित करता है, जिसका प्रसार प्रति 1000 जनसंख्या पर एक या उससे कम होता है।
नए उपचार हुए उपलब्ध
फड़के ने कहा कि संजय गांधी पीजीआई में मेडिकल जेनेटिक्स विभाग देश का पहला ऐसा विभाग है। पिछले 35 वर्षों से इन विकारों के लिए नैदानिक सेवाएं, प्रबंधन और रोकथाम प्रदान कर रहा है। इसने भारत के अधिकांश चिकित्सा आनुवंशिकीविदों को भी प्रशिक्षित किया है। इन दुर्लभ बीमारियों के लिए अब कई नए उपचार उपलब्ध हैं। कुछ नए उपचारों की लागत निषेधात्मक है और आम तौर पर रोगियों की वित्तीय पहुंच से परे है। वर्तमान में, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति-2021 लॉन्च की है और पूरे भारत में सात उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए हैं। इनमें से एक है संजय गांधी पीजीआई।
उत्कृष्टता केंद्र के रूप में, सरकार ने दुर्लभ बीमारियों वाले रोगियों के इलाज के लिए शुरुआत में एसजीपीजीआई को 6.4 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इस नीति के तहत गौचर रोग और स्पाइनल मस्कुलर रोग के मरीजों को अब मुफ्त इलाज मिल रहा है। विल्सन रोग, टायरोसिनेमिया, ग्रोथ हार्मोन की कमी, इम्युनोडेफिशिएंसी विकार आदि कई अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों को जल्द ही मुफ्त दवाएं मिलनी शुरू हो जाएंगी।
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एसजीपीजीआई में शनिवार को दुर्लभ बीमारियों पर कार्यशाला का आयोजन किया गया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आरके धीमान ने की। इस मौके पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन यूपी की निदेशक पिंकी जोवेल मौजूद रहीं।
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