लखनऊः सरकार जिन लोगों की आमदनी बढ़ाने के लिए दावे कर रही है, उनमें केवल खेतों में काम करने वाले ही नहीं हैं बल्कि तालाबों में मछली और बत्तख पालने वालों की भी गिनती की जा रही है। यह लोग भी किसानों की श्रेणी में आते हैं। इनकी आमदनी को लेकर सरकार की ओर से जो बातें की जा रही हैं, उनकी परतें तो गांवों में ही खुल रही हैं। मछली पालन को लेकर जितनी तेजी पिछले साल दिखाई गई थी, उतनी अब नहीं दिख रही है।
तालाबों में मछली पालने वाले सालों पहले इससे अच्छी कमाई करते थे, लेकिन अब इसमें कमाई नही हो पा रही है। साल 2022 के बजट में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए यूपी सरकार ने मदद का ऐलान किया था, ताकि यह व्यवसाय अन्य लोगों तक भी पहुंच सके। इसके बाद भी नए तालाबों की संख्या नगण्य है। लखनऊ जिले में भी ऐसे तालाबों की संख्या नहीं बढ़ी है। साल 2023 में सरकार ने इस मद में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं की है। इसी तरह से बत्तख पालन पर भी कोई खास सफलता नहीं मिल सकी है। दबी जुबान कुछ किसान विशेषज्ञ खुद सरकारी योजनाओं को लेकर संतुष्ट नहीं हैं जबकि मछली पालन के साथ बत्तख पालन बड़े व्यवसाय के रूप में उभर सकता है।
आलम यह है कि बत्तख पालन के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी भी नहीं हैं। गांवों में आज भी बुजुर्ग बताते हैं कि बतख के अंडे और बत्तख के मांस से लोगों को अच्छी कमाई होती थी। मछली सह बत्तख पालन से प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष 2500-3000 किलोग्राम मछली, 15000-18000 अण्डे तथा 500-600 किलोग्राम बत्तख के मांस का व्यापार आसानी से किया जा सकता है। मछली पालन जल क्षेत्र में खाद आदि डालने की आवश्यकता नहीं रहती है। इससे 60 प्रतिशत खर्च कम हो जाता है।
एक-दूसरे का अनुपूरक होती हैं मछलियां व बत्तख –
मछलियां और बत्तखें एक-दूसरे की अनुपूरक होती हैं। बत्तखें तालाबों में से कीड़े-मकोड़े आदि जलीय वनस्पति खाती हैं। इनके पानी में तैरने से ऑक्सीजन की घुलनशीलता बढ़ती है, जो मछलियों के लिए जीवनदायी साबित होती है। बीते साल की अपेक्षा इस साल राज्य सरकार की ओर से मछली और बत्तख पालन के लिए विशेष व्यवस्था तो नहीं दी गई है, लेकिन राज्य सरकार के केंद्रों से ही केंद्र सरकार की योजनाएं इन दोनों व्यवसायों के लिए संचालित हैं। किसान इनके लिए लिए इच्छुक होने पर अनुदान की मांग कर सकते हैं।
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किसानों तक पहुंचने की जरूरत नहीं –
बत्तख दिन के समय पानी में चलती रहती हैं। रात में इनको बाड़े की जरूरत रहती है जबकि मछलियों को इधर-उधर करने की जरूरत नहीं पड़ती है। मछली हो या बत्तख, इनके पालन से किसानों को सीधा लाभ मिलता है लेकिन सवाल यह है कि ऐसी क्या दिक्कतें आईं कि जिम्मेदार केंद्रों के लोग किसानों तक नहीं पहुंच पाए। अलीनगरखुर्द और अनौरा गांवों में पारंपरिक खेती से हटकर काम करने वालों की संख्या तो है, लेकिन इनके पास कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी नहीं पहुंचा है। यह लोग प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत लाभ पाए हुए हैं। इन लोगों को भी बतख पालन का ज्ञान नहीं है यानी जो योजनाएं चलाई जा रही हैं, वह कागजों पर ही हैं।
– शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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