ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों के लिए वरदान बनेगी DRDO की ये दवा, DCGI ने दी मंजूरी

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नई दिल्लीः कोरोना के बढ़ते संकट के बीच एक राहत भरी खबर आई है। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए एक दवा के आपातकालीन उपयोग के लिए अनुमति दे दी है। दावा किया जा रहा है कि इस दवा से कोरोना के गंभीर और मध्य लक्षण वाले मरीजों की तेजी से रिकवरी होती है। ये दवा डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलायड साइंसेस (INMAS) और हैदराबाद सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (CCMB) के साथ मिलकर बनाई है। इस दवा को 2-deoxy-D-glucose (2-DG) नाम दिया गया है और इसकी मैनुफैक्चरिंग की जिम्मेदार हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डी लैबोरेट्रीज को दी गई है।

सफल रहा क्लीनिकल ट्रायल

डॉक्टरों ने दावा किया है कि जिन मरीजों पर इस दवा का ट्रायल किया गया है, उनमें अन्य मरीजों की अपेक्षा तेजी से रिकवरी देखी गई है। इतना ही नहीं मरीजों की ऑक्सीजन पर निर्भरता भी कम हो गई। ये भी दावा है कि दवा के इस्तेमाल से मरीजों की कोरोना रिपोर्ट बाकी मरीजों की तुलना में जल्दी निगेटिव हो रही है। यानी, वो जल्दी ठीक भी हो रहे हैं।

बता दें कि डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने अप्रैल 2020 में लैब में इस दवा पर एक्सपेरिमेंट किए थे। तब पता चला कि ये दवा कोरोना वायरस को रोकने में मदद करती है। इसके आधार पर DCGI ने मई 2020 में फेज-II ट्रायल्स करने की मंजूरी दी थी। डीआरडीओ ने इस बात की जानकारी दी। यह दवा पाउडर के रूप में आती है और इस पानी के साथ या पानी में घोलकर लिया जा सकता है। यह दवा वायरस संक्रमित कोशिकाओं में जमा हो जाती है और वायरस के विकास को रोकता है। 

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क्लीनिकल ट्रायल्स में क्या सामने आया?

मई से अक्टूबर के बीच 11 अस्पतालों के 110 मरीजों पर किए गए ट्रायल में सामने आया कि जिन मरीजों पर इस दवा का ट्रायल किया गया, वो बाकी मरीजों की तुलना में कोरोना से जल्दी ठीक हुए। ट्रायल में शामिल मरीज दूसरे मरीजों की तुलना में 2.5 दिन पहले ठीक हो गए। दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच देशभर के 27 अस्पतालों में 220 मरीजों पर इसका ट्रायल किया गया जिसमें जिन लोगों को 2-DG दवा दी गई, उनमें से 42% मरीजों की ऑक्सीजन की निर्भरता तीसरे दिन खत्म हो गई। लेकिन, जिन्हें दवा नहीं दी गई, ऐसे 31% मरीजों की ही ऑक्सीजन पर निर्भरता खत्म हुई। यानी, दवा से ऑक्सीजन की जरूरत भी कम हुई। एक अच्छी बात ये भी रही कि यही ट्रेंड 65 साल से ऊपर के बुजुर्गों में भी देखा गया।