Monday, December 23, 2024
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeउत्तर प्रदेशनवजात के लिए डिब्बे वाले दूध से कई गुना बेहतर है मां...

नवजात के लिए डिब्बे वाले दूध से कई गुना बेहतर है मां का दूधः Dr. Piyali

लखनऊः लखनऊ में हाल के वर्षों में फॉर्मूला मिल्क या डिब्बे वाले दूध की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, जिससे नवजातों की सेहत को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है। पिछले पांच वर्षों में बेबी मिल्क पाउडर की मांग दोगुनी हो गई है। हालांकि, चिकित्सा विशेषज्ञ इसे नवजातों के लिए अनुकूल नहीं मानते हैं।

लगातार बढ़ रही डिमांड

दवा विक्रेता वेलफेयर समिति के हेड विनय शुक्ला ने बताया कि राजधानी में बेबी मिल्क पाउडर की वार्षिक बिक्री 5-6 करोड़ रुपए के आस-पास है। पहले जहां लोग खुद बेबी मिल्क पाउडर खरीदते थे, अब डॉक्टरों द्वारा लिखे गए पर्चे पर इसे अधिक मात्रा में खरीदा जा रहा है। इसके अलावा, इस पर 28 प्रतिशत जीएसटी भी लगता है, जिससे सरकार को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होता है। इतना ही नहीं मिल्क पाउडर के दाम भी बढ़ गए हैं।

400 ग्राम के नॉर्मल पाउडर की कीमत 450 रुपये से बढ़कर 485 रुपये तक हो गई है, जबकि नॉन प्रो पाउडर की कीमत 800 रुपये से बढ़कर 845 रुपये हो गई है। सबसे सस्ता पाउडर भी 270 रुपये का है और एक महीने में औसतन 3-4 डब्बे इस्तेमाल हो जाते हैं। संजय गांधी पीजीआई के पीडियाट्रिक डॉ. पियाली भट्टाचार्या का कहना है कि फॉर्मूला मिल्क ब्रेस्ट फीडिंग का विकल्प नहीं हो सकता है। वे बताती हैं कि मां का दूध बच्चे के हिसाब से बनता है। मां का दूध तो बच्चे के लिंग पर भी निर्धारित करता है। मां का दूध प्राकृतिक रूप से बना हुआ होता है जबकि डिब्बा वाले दूध को बनाना पड़ता है, जिससे पानी या अन्य चीजों के साथ गंदगी जाने का खतरा रहता है। इससे इन्फेक्शन की संभावना में भी वृद्धि होती है।

बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग कराने से बच रहीं माताएं

डिब्बे वाले दूध महंगे भी होते हैं इसलिए जब भगवान ने हमें जरूरी तापमान में बिना इन्फेक्शन के व सस्ता व बच्चों के ग्रोथ के लिए जरूरी, इसमें एंटी बॉडी युक्त, विटामिन युक्त दूध प्राकृतिक रूप से उपलब्ध करवा रखा है, तो डिब्बे वाले दूध की तरफ जाने का कोई अर्थ नहीं है। डॉ. पियाली के अनुसार डिब्बे वाला दूध बच्चों को बहुत ही विशेष परिस्थितियों में दिया जाता है। दूध को पिलाने से आजकल की मांए सोचती हैं कि उससे उनका फिगर खराब हो सकता है, जिसकी वजह से वह बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग कराने से बचती हैं जबकि असल में होता बिल्कुल इसके उलट है। मां का दूध असल में पानी में घुला हुआ फैट है। यह लिक्विड मां के शरीर से आता है। जब मां के शरीर से निकलकर फैट बच्चे के शरीर में जा रहा है तो मां का फैट कम हो रहा है, इससे तो मां का फिगर बनना चाहिए। जब तक डॉक्टर प्रिस्काइब्ड न करें, तब तक बच्चे को डिब्बे वाले दूध से दूर रखें। इसके अलावा यह भी भ्रम है कि ब्रेस्ट फीडिंग से बच्चों का पेट नहीं भर पाएगा, इसलिए वे फॉर्मूला मिल्क का उपयोग करने लगती हैं। कंपनियां यह दावा करती हैं कि उनके प्रोडक्ट्स मां के दूध के समान न्यूट्रीशियंस प्रदान करते हैं, लेकिन यह महंगा विकल्प है।

डॉ. पियाली ने चेतावनी दी कि फॉर्मूला मिल्क से नवजातों में कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि बोतल से दूध पिलाने पर इंफेक्शन, डायरिया और एलर्जी। ऊपरी दूध, जैसे गाय या भैंस का दूध, नवजात के लिए कठिन हो सकता है और इससे उनका मोटापा बढ़ सकता है। इसके अलावा, ब्रेस्ट फीडिंग से बच्चे की इम्युनिटी बढ़ती है, जो इंफेक्शन से लड़ने में मदद करती है, जबकि फॉर्मूला मिल्क से यह लाभ नहीं मिलता। ओपीडी में प्रतिदिन 5-10 ऐसे नवजात बच्चे देखे जाते हैं, जिन्हें इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विशेषज्ञों की सलाह है कि नवजातों को केवल ब्रेस्ट फीडिंग ही करनी चाहिए, ताकि उनकी सेहत बेहतर बनी रहे।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें