मुरैनाः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (Dr. Mohan Bhagwat) ने कहा कि शरीर के हर अंग की जरूरत होती है। शरीर के हर अंग को सुरक्षित और स्वस्थ रखेंगे तभी शरीर स्वस्थ रहेगा। ऐसे में आइए हम सब मिलकर हिंदू समाज की चिंता करें। भले ही संघ में 2007 से सामाजिक समरसता का काम शुरू हो गया हो, लेकिन जाति आधारित भेदभाव शुरू से ही संघ में नहीं रहा है। संघ प्रारंभ से ही सामाजिक समरसता के लिए कार्य करता रहा है।
समाज प्रमुखों से मिले सरसंघचालक
सरसंघचालक डॉ. भागवत शनिवार को मुरैना जिले में आयोजित संघ के तीन दिवसीय प्रांतीय सम्मेलन के अंतिम दिन समाज प्रमुखों से मुलाकात और बातचीत कर रहे थे। इस दौरान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत वाल्मिकी समाज के भगवानदास वाल्मिकी, माहोर समाज के नत्थीलाल माहौर, प्रजापति समाज के आशाराम प्रजापति, नागर समाज के राजेंद्र नागर, श्रीवास समाज के मातादीन श्रीवास, राठौड़ समाज के श्यामलाल राठौड़, ब्राह्मण समाज के सुरेश शास्त्री, मांझी समाज के प्रमोद मांझी, वैश्य समाज के डॉ. अनिल गुप्ता, जैन समाज के मनोज जैन, स्वर्णकार समाज के मदनलाल वर्मा, सिंधी समाज के प्रताप राय और कायस्थ समाज के दिनेश भटनागर ने उनसे मुलाकात कर चर्चा की।
कुरीतियों को खत्म करने की जरूरत
डॉ. भागवत ने समाज प्रमुखों से कहा कि हम सबको मिलकर अपने हिंदू समाज को अच्छा और सुंदर बनाना है। सभी जाति समुदायों को महीने में एक बार बैठकर योजना बनानी चाहिए और विचार करना चाहिए कि हम समरसता के इस काम को ब्लॉक, डिवीजन और कॉलोनी तक कैसे ले जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि 22 जनवरी को श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा उत्सव के दौरान अयोध्या में लघु भारत का दर्शन हो रहा था और पूरे भारत में अयोध्या की अनुभूति हो रही थी। यह भावना स्थाई रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक समय भारत में जाति व्यवस्था थी, जो जन्म के आधार पर नहीं बल्कि काम और व्यापार के आधार पर थी।
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उन्होंने कहा कि आज भी हम देखते हैं कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनना पसंद करता है और वकील का बेटा वकील बनना पसंद करता है। मुगलों के आक्रमण के दौरान जाति व्यवस्था ने अपने हिंदू समाज के लोगों की रक्षा की। लेकिन समय के साथ यह जाति व्यवस्था एक बुराई में बदल गई। पूज्य संतों ने भी अनेक अवसरों पर हमें यह समझाने का प्रयास किया है। आज जरूरत है कि हम सब मिलकर छुआछूत को खत्म करें।
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