Monday, December 16, 2024
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सुख-सौभाग्य की प्राप्ति के जरूर करें ऋषि पंचमी का व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

नई दिल्लीः भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा का विधान है। इन सप्त ऋषियों के नाम कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ है। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार ऋषि पंचमी के दिन व्रत कर सप्त ऋषियों की श्रद्धा के साथ पूजन करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी भी मान्यता है कि जो महिला इस दिन भक्तिभाव के साथ व्रत कर पूजन करती हैं उनके जाने-अनजाने में हुए पापों का भी नाश हो जाता है और सुख-समृद्धि और सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है। यह भी कहा जाता है यदि किसी महिला से माहवारी के दौरान धर्म के क्षेत्र में कोई भूल हो जाए तो इस व्रत को करने से उसका दोष भी समाप्त हो जाता है। ऋषि पंचमी के दिन गंगा स्नान और दान का भी विशेष महत्व है। इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी ब्राह्मण को केला, शक्कर, घी का दान देने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

ऋषि पंचमी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचाग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 31 अगस्त की शाम 03 बजकर 22 मिनट से शुरू हो चुकी है और 1 सितंबर (गुरूवार) की दोपहर 02 बजकर 49 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि मान्य होने के कारण ऋषि पंचमी का व्रत गुरूवार को ही रखा जाएगा। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 05 मिनट से लेकर 01 बजकर 37 मिनट तक है।

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ऋषि पंचमी की कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक विदर्भ में उत्तक नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहते थे। उनकी दो संताने थी एक पुत्र और एक पुत्री। ब्राह्मण की पुत्री जब विवाह योग्य हुई तो उन्होंने वर की तलाश कर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद ऋषि के दामाद की अकाल मृत्यु हो गयी और बेसहारा पुत्री फिर से ब्राह्मण के घर में रहने लगी। एक बार की बात है कि ऋषि उत्तक की पुत्री अपने घर में सो रही थी तब उसकी मां ने देखा कि उसकी बेटी के शरीर से कीड़े उत्पन्न हो रहे हैं। यह देख कर ऋषि की पत्नी आश्चर्यचकित हो गयी। परेशान होकर उसने यह बात अपने पति को बतायी। तब ऋषि ने ध्यान लगाया तो उन्हें यह ज्ञात हुआ कि उनकी पुत्री ने पूर्व जन्म में माहवारी के दौरान घर के बर्तनों को छू लिया था और ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया। इस कारण उसे यह दुख उठाना पड़ रहा है। तब उन्होंने अपनी पुत्री को ऋषि पंचमी के व्रत के बारे में बताया और उससे यह व्रत करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा मानकर उनकी पुत्री ने पूरी श्रद्धा के साथ ऋषि पंचमी का व्रत कर पूजन किया। जिससे वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गयी।

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