Friday, January 3, 2025
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दिलीप घोष ने साधा ममता पर निशाना, राज्यपाल की प्रधान सचिव नंदिनी चक्रवर्ती के मुद्दों पर कही ये बात

कोलकाता: भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने बुधवार को दिल्ली के लिए उड़ान भरी। इससे पहले भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने एयरपोर्ट पर पत्रकारों के कई सवालों के जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा। दिलीप घोष ने राज्यपाल की प्रधान सचिव नंदिनी चक्रवर्ती से डीए के मुद्दों के बारे में खुलकर बात की।

नंदिनी चक्रवर्ती के राजभवन से नहीं जाने के सवाल पर दिलीप घोष ने कहा कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री की मानसिकता है कि सब कुछ उनके हिसाब से चलेगा। उन्हें लगता है कि राज्यपाल को भी उनके बताए रास्ते पर चलना चाहिए। यहीं से समस्या शुरू होती है। जब से राज्यपाल ने सत्ता पक्ष के कहे अनुसार काम करने से इनकार किया है तब से उनका अनादर होने लगा है। धमकियां मिलने लगी हैं। राज्यपाल एक संवैधानिक पद है। राजभवन उनका क्षेत्र है। राज्यपाल जिसे भी उपयुक्त समझेंगे, उसका चयन कर सकते हैं।

वहीं राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच संबंधों के बारे में उनका कहना है कि ऐसा लगता है कि हनीमून पीरियड खत्म हो गया है। नहीं तो भाषा अचानक कैसे बदल गई? सब अच्छा चल रहा था। चाय पियो प्रेस में मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवाना। लेकिन जैसे ही उन्होंने सही बात कही, हवा बदल गई।

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डीए की मांग कर रहे सरकारी कर्मचारियों का धरना जारी है। ऐसे में डीए के मुद्दे को लेकर दिलीप घोष ने कहा कि इस सरकार ने एक के बाद एक चुनाव इन्हीं लोगों के कंधे पर बंदूक रखकर जीते हैं। सरकार की कई राजनीतिक परियोजनाओं को भी इन्हीं सरकारी कर्मचारियों ने सफल बनाया है। इससे सरकार को मुनाफा भी हुआ। लेकिन जैसे ही सरकारी कर्मचारियों को उनका अधिकार देने की बात आई तो राज्य सरकार पलट गई। यही कारण है कि उन्होंने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए यह कदम उठाया है। मांगे पूरी न होने पर राज्य सरकार के कर्मचारियों ने चुनावी ड्यूटी ना करने की बात कही है। इस पर दिलीप घोष ने कहा कि उनके बिना कुछ नहीं हो सकता। वे राज्य सरकार के हाथ-पांव हैं। इनके बिना सरकार कैसे चलेगी? सरकार की स्थिति पहले से ही डामाडोल है।

अनशन पर बैठे सरकारी कर्मचारियों से सरकार की ओर से कोई मिलने नहीं गया। इस संदर्भ में दिलीप घोष ने कहा फिरहाद हाकिम इनलोगों पर माकपा का होने का पहले ही मुहर लगा चुके हैं। इससे अधिक तृणमूल से और क्या उम्मीद की जा सकती हैं। लेकिन सत्ता पक्ष को पता होना चाहिए जो धरने पर बैठे हैं, वे सरकारी लोग हैं। सरकार को उनकी बातें सुननी होगी।

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