Dhanvantari – हिन्दू धर्म में वैसे तो बहुत सारे त्योहार होते हैं, जो हर्षोउल्लास के साथ मनाए जाते हैं। लेकिन हिन्दू धर्म में दिवाली का त्योहार सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। धनतेरस (Dhanteras) से ही दिवाली की शुरुआत हो जाती है। त्रयोदशी यानी धनतेरस हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। धनतेरस पर मां लक्ष्मी और कुबेर देवता की पूजा का विधान है, साथ ही यह दिन भगवान धन्वंतरि के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। इस दिन श्रद्धापूर्वक भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से लंबी आयु और आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। इस साल धनतेरस का त्योहार 10 नवंबर को मनाया जाएगा। धनतेरस पर सोने व चांदी से बनी वस्तुएं या स्टील के बर्तन खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन खरीदारी से साल भर धन में वृद्धि होती है।
Lord Dhanvantari की इसलिए होती है पूजा
धन्वंतरि को भगवान विष्णु माना जाता है। वो श्रीहरि विष्णु के 24 अवतारों में से एक हैं। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। समुद्र मंथन के दौरान चौदह प्रमुख रत्न निकले जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृतलाश लेकर प्रकट हुए थे। चार भुजाओं वाले भगवान धन्वंतरि एक हाथ में आयुर्वेद शास्त्र, दूसरे में औषधि कलश, तीसरे में जड़ी-बूटियां और चौथे हाथ में शंख होता है।
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इसलिए धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्मोउत्सव मनाया जाता है। भगवान धन्वंतरि को महान चिकित्सक माना जाता है। उनका जन्म लोक कल्याण के उद्देश्य से हुआ था। धनतेरस पर इनकी आराधना से आरोग्य की प्राप्ति होती है। धन्वंतरि की पूजा विशेष फलदायी होती है। इस दिन खरीदी गई चीजें बहुत शुभ होती हैं। माना जाता है कि इस दिन खरीदारी करने से उसमें कई गुना बढ़ोतरी होती है।
धन्वंतरि और धनतेरस में क्या अंतर है?
भारतीय दर्शनशास्त्र के अनुसार आमतौर पर लोग धनतेरस के दिन सोने-चांदी की वस्तुएं या नए बर्तन खरीदकर और लक्ष्मी जी की पूजा करके इतिश्री मान लेते हैं, लेकिन देव वैद्य (आयुर्वेद चिकित्सक) धन्वंतरि और लक्ष्मी जी के कोषाध्यक्ष कुबेर के बारे में भूल जाते हैं। हैं। कुबेर देव को धन का देवता माना जाता है। कुबेर देव को यक्षों का राजा भी कहा जाता है। कुबेर देव उत्तर दिशा के दिक्पाल हैं और महर्षि विश्रवा एवं माता देववर्णिनी के पुत्र हैं।
कुबेर देव शिव के बहुत बड़े भक्त हैं और माता लक्ष्मी के सहायक भी माने जाते हैं। जबकि भगवान धन्वंतरि का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। समुद्र मंथन के दौरान चौदह प्रमुख रत्न निकले, जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। एक ओर धनतेरस पर जहां भगवान कुबेर की पूजा करने से व्यक्ति को धन, वैभव, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। तो वहीं भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
दरअसल, धनतेरस समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि की उत्पति के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, लेकिन धीरे-धीरे इस दिन भगवान कुबेर की पूजा की परंपरा भी शुरू हो गई। धनतेरस के दिन दोनों देवताओं की पूजा करने से स्वास्थ्य और धन की दोनों की प्राप्ति होती है।
Dhanvantari Puja Vidhi, भगवान धन्वंतरि की पूजा विधि
- धनतेरस पर प्रदोष काल में पूजा करने की परंपरा है। इस दिन न केवल धन बल्कि परिवार और स्वास्थ्य के लिए भी भगवान धन्वंतरि की पूजा करनी चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य मनुष्य की सबसे बड़ी संपत्ति है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
- उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा चौकी रखें और उस पर श्री हरि विष्णु की मूर्ति या धन्वंतरि देव की तस्वीर स्थापित करें।
- अगर आप किसी मूर्ति की पूजा कर रहे हैं तो भगवान धन्वंतरि का स्मरण करें और उनका अभिषेक करें। षोडशोपचार विधि से पूजन करें।
- दीपक जलाने से पहले नीचे चावल या नया धान रखें। अब तांबे के जल में रखे कलश के जल से सभी देवी-देवताओं को जल अर्पित करें। सभी स्थापित देवी-देवताओं को रोली कुमकुम, हल्दी, पीले चावल, फूल, दूर्वा, पान के पत्ते, फूल, श्री फल और नैवेद्य चढ़ाकर प्रणाम करें।
- इसके अलावा अच्छे स्वास्थ्य और रोगों के नाश की प्रार्थना करते हुए ‘ओम नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नम:’ का 108 बार जाप करें।
Dhanteras का शुभ पूजा मुहूर्त
बता दें कि इस साल धनतेरस का त्योहार 10 नवंबर को मनाया जाएगा। पूजा का मुहूर्त शाम 5:47 बजे शुरू होगा जो शाम 7:43 बजे तक रहेगा। पूजा का समय करीब दो घंटे के लिए होगा। इसलिए कुबेर और धन्वंतरि दोनों ही देवताओं की एकसाथ पूजा करें।
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