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शीतलहर की आगोश में मरूभूमि, जमाव बिंदु के पार पहुंचा पारा

जयपुरः उत्तरी भारत से आ रही सर्द हवा के रूप में शीतलहर ने पूरी मरुभूमि को अपनी चपेट में ले लिया है। शीतलहर के प्रकोप से प्रदेश के कई स्थानों बर्फ की परतें जम गई। जयपुर के जोबनेर कस्बे में न्यूनतम तापमान ने अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। कस्बे में पहली बार रविवार को न्यूनतम तापमान माइनस 5 डिग्री पर पहुंच गया। शीतलहर के कारण धोरों की धरती पर सफेद चादर सी बिछने लगी है। पारा जमाव बिंदु को पार कर चुका है। कई जिलों में शनिवार की ही तरह रविवार को भी तापमान माइनस में रिकॉर्ड किया गया है। जयपुर के जोबनेर कस्बे में न्यूनतम तापमान ने अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। कस्बे में पहली बार तापमान माइनस 5 डिग्री पर पहुंच गया। श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय की मौसम वैधशाला में ओपन पैन में रखा पानी पूरी तरह से बर्फ बन गया। खुले खेतों में झाड़ियों की घास फूस पर बर्फ की सफेद परत जम गई। हाड़ कंपाने वाली ठंड के चलते लोगों का घर से निकलना भी मुहाल हो गया। इस सीजन में जोबनेर कस्बे में दूसरी बार लगातार तापमान माइनस में गया है।

शनिवार को तापमान माइनस 2 डिग्री दर्ज किया गया था। गत 10 सालों में दिसंबर के शुरुआती 20 दिनों में पहली बार ऐसा हुआ है कि 2 दिन तक लगातार तापमान माइनस में गया है। प्रदेश में कई जगह पर तेज कड़ाके की ठंड के साथ बर्फ की परत जमने से फसलों को नुकसान हुआ है। कड़ाके की ठंड और बर्फ ने किसानों का हाल बेहाल कर दिया है। सब्जी और अन्य फसलें प्रभावित हुई हैं। अब खेतों में धुंआ करके और सिंचाई करके फसलों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। मौसम विभाग ने आज प्रदेश के 5 जिलों में अति शीतलहर को लेकर ऑरेंज अलर्ट जारी किया है।साथ ही 20 जिलों में शीतलहर को लेकर यलो अलर्ट जारी किया है। विभाग ने अलवर, भीलवाड़ा, झुंझुनूं, सीकर और चूरू जिले में अति शीतलहर को लेकर ऑरेंज अलर्ट जारी किया है, वहीं, बारां, बूंदी, चित्तौड़गढ़, जयपुर, दौसा, भरतपुर, धौलपुर, करौली, कोटा, सवाई माधोपुर, प्रतापगढ़, टोंक, बीकानेर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर और नागौर जिले में शीतलहर की संभावना जताई है।

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क्या होता है पाला और उसके लक्षण?
जब वायुमंडल का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या फिर इससे नीचे चला जाता है तो हवा का प्रवाह बंद हो जाता है। इस वजह से पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर का पानी जम जाता है। जमा हुआ पानी ठोस बर्फ की पतली परत बना देता है। इसे ही पाला पड़ना कहते हैं। इससे पौधों की कोशिकाओं की दीवारों को नुकसान होता है। पाला पड़ने की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और वाष्प की विनियम प्रक्रिया भी बाधित होती है। इससे फलदार पेड़ों की उत्पादन क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है। पत्तियां झूलसने लगती हैं। पत्ते, टहनियां और तने के नष्ट होने से पौधों में अधिक बीमारियां लगने का खतरा रहता है। सब्जियों, पपीता, आम और अमरूद पर पाले का प्रभाव अधिक पड़ता है। टमाटर, मिर्च, बैंगन, पपीता, मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि फसलों पर पाला पड़ने के दिन में ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है, जबकि अरहर, गन्ना, गेहूं व जौ पर पाले का असर कम दिखाई देता है।

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